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मध्य-पूर्व में भारत

भारत द्वारा मध्य-पूर्व एशिया में रेल, सड़क और समुद्री मार्गों का नेटवर्क विकसित करना वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा कदम साबित हो सकता है.

ऐतिहासिक रूप से भारत और मध्य-पूर्व (पश्चिम) एशिया के बीच अच्छे संबंध रहे हैं. हाल के वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब समेत खाड़ी देशों, मिस्र, इजरायल आदि के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों में मजबूती आयी है. उल्लेखनीय है कि भारत ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों के साथ भी निकटता बढ़ाने के प्रयास कर रहा है. मध्य-पूर्व में भारत और अमेरिका के परस्पर सहयोग में भी गति आयी है.

इस दिशा में ‘आई2यू2’ समूह का गठन बड़ी पहल है, जो कुछ समय से कार्यरत है. इसमें भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल शामिल हैं. पिछले साल इस समूह की बैठक में भारत और मध्य-पूर्व से संपर्क घनिष्ठ करने के लिए रेल, सड़क और समुद्री मार्ग का नेटवर्क बनाने का विचार आया था. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के अपने समकक्ष पदाधिकारियों के साथ बैठक कर यातायात इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर चर्चा की है.

इस पहल का महत्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है कि उक्त बैठक में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भी भागीदारी की. उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब ‘आई2यू2’ समूह का सदस्य नहीं है क्योंकि उसके और इजरायल के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं. हाल के वर्षों में अमेरिका की कोशिशों से अरब देशों और इजरायल के आपसी रिश्तों में बड़ा सुधार आया है. सऊदी अरब और इजरायल के बीच भी संपर्कों में तेजी आयी है.

ऐसे में भारत द्वारा रेल, सड़क और समुद्री मार्गों का नेटवर्क विकसित करना वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेषकर पश्चिमी और दक्षिणी एशिया की आर्थिकी, के लिए बड़ा कदम साबित हो सकता है. मध्य एशिया और इजरायल के साथ चीन के भी अच्छे संबंध हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और पूंजी निवेश के माध्यम में चीन मध्य एशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास लंबे समय से कर रहा है.

विश्लेषकों का आकलन है कि ‘आई2यू2’ समूह के माध्यम से हो रही यह पहल भविष्य में हिंद-प्रशांत क्षेत्र और मध्य-पूर्व एशिया में चीन के दबदबे को बढ़ने से रोकने में बड़ी भूमिका निभा सकती है. चीन मध्य और मध्य-पूर्व एशिया से होते हुए यूरोप तक अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए बेल्ट-रोड परियोजना को विस्तार दे रहा है. स्वाभाविक रूप से इससे उसका राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक प्रभाव बढ़ा है, पर विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं चीनी कर्ज के दबाव में भी आ रही हैं. इस स्थिति में संतुलन स्थापित करने में भारत और ‘आई2यू2’ समूह की पहल महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है.

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