Heat Waves : हीट वेव यानी गर्म हवा चलने की बढ़ती अवधि और स्वास्थ्य तथा जीवन पर पड़ रहे इसके भीषण असर को देखते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार अपनी आपदा प्रबंधन योजनाओं में लू जैसी नयी और उभरती आपदाओं को शामिल करे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2013 से 10 साल की अवधि में भारत में अत्यधिक गर्मी और लू के कारण 10,635 लोगों की जान गयी. पिछले साल भारत में असाधारण रूप से भीषण गर्मी पड़ी थी और 36 दिन लू वाले दर्ज किये गये, जो 14 साल में सबसे अधिक थे.
इस साल भी 25 फरवरी को गोवा और महाराष्ट्र में साल की पहली हीटवेव दर्ज की गयी, सर्दी के मौसम में गर्म हवा चलने का देश में यह पहला और चौंकाने वाला उदाहरण था. स्वतंत्र शोध संस्था ‘सस्टेनेबल फ्यूचर कोलेबरेटिव’ की एक रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि भारत की 11 फीसदी आबादी उन शहरों में रहती है, जहां हीटवेव का खतरा सबसे अधिक है और इन हलाकों में आने वाले समय में स्वास्थ्य आपातकाल जैसे हालात बन सकते हैं.
गौरतलब है कि इस समय आपदाओं की अधिसूचित सूची में चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, बादल फटना, कीटों के हमले, पाला और शीतलहर शामिल हैं. पर्यावरण संगठन ‘ग्रीनपीस इंडिया’ के मुताबिक, लू को अधिसूचित आपदाओं को सूची में शामिल करने की सिफारिश इसकी बढ़ती गंभीरता को ही उजागर करती है. संगठन का यह भी कहना था कि इस कदम को वास्तव में प्रभावी बनाने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि वित्तीय पहलुओं और कार्यान्वय में कोई कमी न हो. केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में लोकसभा को बताया कि 15वें वित्त आयोग ने लू को शामिल करने के लिए अधिसूचित आपदाओं की सूची का विस्तार करने के राज्यों के अनुरोध पर विचार किया था.
गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने राज्यसभा में पेश की गयी रिपोर्ट में आपदाओं की आधिकारिक सूची की नियमित समीक्षा करने और इसे अपडेट करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने की भी सिफारिश की. उसने मंत्रालय से जलवायु परिवर्तन और आपदाओं को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक तैयारियों के लिए योजना बनाने का आग्रह किया और क्षति कम करने और पुनर्निर्माण में तेजी लाने के लिए अस्पतालों, स्कूलों और परिवहन प्रणालियों समेत आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश की सिफारिश भी की. जाहिर है, बढ़ता तापमान लोगों के साथ-साथ सरकार के सजग होने का भी अवसर है.