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जख्मी होती चीन की अर्थव्यवस्था

चीन में उत्पन्न वायरस ने पूरी दुनिया में उपद्रव मचा दिया है.कोविड-19 ने यूरोप, ब्रिटेन और अमेरिका को विक्षत कर दिया है. इस युद्धका अंतिम आर्थिक परिणाम दो महाशक्तियों द्वारा तय किया जायेगा- भारतीयहाथी और चीनी ड्रैगन

प्रभु चावला, एडिटोरियल डायरेक्टर

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

prabhuchawla @newindianexpress.com

सत्ता एक अतृप्त भूखवाले जानवर की तरह होती है और अर्थव्यवस्था उसका चाराहोती है. चीन में उत्पन्न वायरस ने पूरी दुनिया में उपद्रव मचा दिया है.कोविड-19 ने यूरोप, ब्रिटेन और अमेरिका को विक्षत कर दिया है. इस युद्धका अंतिम आर्थिक परिणाम दो महाशक्तियों द्वारा तय किया जायेगा- भारतीयहाथी और चीनी ड्रैगन. चीन का 13 ट्रिलियन डॉलर का बटुआ अमेरिकीअर्थव्यवस्था से अधिक सिकुड़ सकता है, जबकि 21 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपीवाले अमेरिका को एक तिहाई नुकसान का अनुमान है. जर्मनी और जापान भीपरेशान हैं. दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत फिलहालएकमात्र देश है, जो न केवल कोविड-19 के सदमे को झेल सकता है, बल्किवाणिज्यिकी के लिए आकर्षक व लाभकारी पारितंत्र भी बन सकता है.

वुहानवायरस के खतरनाक असर ने अवसरवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में शक बढ़ा दियाहै, जो चीन के बंदी और सस्ते कामगारों का खूब लाभ लेती रही हैं. अब वेसुरक्षित निवेश की जगह की तलाश में हैं. तानाशाही कम्युनिस्ट ड्रैगन उग्रअंदाज में अपनी सैन्य ताकत (हालांकि पीएलए बनने के बाद से कभी पूर्णयुद्ध नहीं किया) और धूर्त राजनयिक आचरण से कॉरपोरेट खजाने के रूप मेंअपनी छवि को पेश किया है. चीनी संकट का आभास करते हुए भारतीय शक्ति केमहावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किया है कि धीमी और निरंतरता सेदौड़ को जीता जायेगा. मोदी ने भारतीय पूंजीपतियों से कहा है कि चीनछोड़नेवाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के धन को आमंत्रित करें. चीनीअर्थव्यवस्था जख्मी हो रही है.

जापान ने चीन छोड़नेवाली अपनी कंपनियों केलिए दो बिलियन डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है. ऐसा ही अमेरिकीऔर यूरोपीय कंपनियां भी कर रही हैं. पलायन इस आशंका के कारण बढ़ा है किचीन अपने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग स्टॉक मार्केट में तबाह हुए बड़ेकॉरपोरेशन पर कब्जा करने के लिए करेगा.दुनिया में विनिर्माण की आपूर्ति शृंखला के लगभग 50 प्रतिशत पर नियंत्रणकरनेवाला चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था को घुटने पर ला सकता है. इस देश केपास बहुत बड़ा घरेलू बाजार है, जिसे हर वैश्विक कंपनी कब्जा करना चाहेगी.कोरोना ने इस मौद्रिक भ्रम को ध्वस्त कर दिया है. बड़े बाजार के साथ भारतबेहतर स्थान है और यहां बेहतर कानूनी पारदर्शिता भी है.

जब हाथी बड़ा औरअसंदिग्ध बन रहा था, तो ड्रैगन ने अपने उद्यमियों को वैश्विक पूंजीपतिबनने के लिए प्रेरित किया, लेकिन घर में वह कॉमरेड रहा. उसने पश्चिमीतंत्र में मीडिया से लेकर राजनय तक में घुसने के लिए वित्तीय ताकत काइस्तेमाल किया. अमेरिका ने व्यावसायिक पद्धति से अंतरराष्ट्रीय आर्थिकनीतियों को प्रभावित किया, चीन ने इसके व्यापार डॉलर का इस्तेमाल किया.यहां तक कि भारत में डिजिटल भुगतान पोर्टल को चीनी नियंत्रित करते हैं.उन्होंने भारत की संरचनागत विकास में बहुत अधिक निवेश किया है. यहां तककि स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को भी बनाने में मदद की है.इतनी बड़ी पैठ से चीन को छोड़नेवाले उद्यमों को आकर्षक पेशकश कर पानाभारत के लिए मुश्किल हो सकता है. मीडिया के मुताबिक, आधा दर्जन से भी कमविदेशी कंपनियों ने भारत का रुख किया है. ऐसा लगता है कि निवेश आकर्षितकरने के प्रयासों को सरकार के कोविड-19 की रोकथाम की कोशिशों ने प्रभावितकिया है.

चीन के आर्थिक प्रभाव को चुनौती देने में भारत के सामनेसमस्याएं हैं. मोदी अकेले ही निवेश चुंबक नहीं बन सकते हैं. उनके उपकरणसमूह और सहयोगी ही उन्हें असफल कर रहे हैं. पारदर्शी सरकार होने केबावजूद भारत अभी भी नये कारोबार को शुरू करने के लिहाज से कठिन जगह है.प्रक्रियाओं को पूरा करने में तीन हफ्ते लग जाते हैं, जबकि विकसित देशोंमें औसत 12 दिनों का है. व्यापार इकाई को जीएसटी के अतिरिक्त 30 से अधिककरों और शुल्कों का भुगतान करना होता है. न्यायिक विवादों को हल करने मेंकम से कम पांच वर्ष लग जाते हैं. नौकरशाही ने अपने नियंत्रण को बदलने के बजाय निर्णय लेने पर अपनी पकड़को और मजबूत किया है.

मोदी की नवोन्मेषी प्रकार की सोच के साथ तालमेलबिठाने के बजाय वे इससे दूर हैं. जब उन्होंने ‘मिनिमम गवर्नमेंट एंडमैक्सिमम गवर्नेंस’ का वादा किया था, तो वैश्विक निवेशक भाव-विभोर हुएथे. उन्होंने अपने कार्यालय को एक इंजन में तब्दील कर दिया है, जो देश कोचला रहा है. ज्यादातर मंत्री और अधिकारी लंबित फाइलों के लिए पीएमओ काबहाना बनाते रहे हैं. भारत ने प्रभावी तरीके से कोरोना पर नियंत्रण कियाहै, लेकिन कई सूचनाओं और बाद में उसके स्पष्टीकरण असंवेदनशील नौकरशाही केछिपे हुए हाथ को इंगित करते हैं. न्यूनतम सरकार के बजाय बाबुओं,कार्यालयों, व्यक्तिगत स्टाफ और भत्तों में बेतहाशा वृद्धि हुई है.अधिकतर सेवानिवृत्त नौकरशाह, रक्षा अधिकारी और राजनेता अप्रासंगिक ऊंचाओहदा प्राप्त करते हैं.

एक दशक पहले की तुलना में आज अधिक आयोग,ट्रिब्यूनल, विशेषज्ञ समूह और सलाहकार परिषद हैं. यहां मंत्रियों,वैधानिक एवं अनौपचारिक संगठनों के प्रमुखों के लिए विशाल अधिष्ठान बनेहैं. वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए बड़े आवासों का निर्माण होता है.अनाधिकारिक अनुमान के मुताबिक, केंद्र सरकार के कार्यालय और कर्मचारियोंकी जगह नागालैंड मिजोरम जैसे राज्यों से भी अधिक है. लालफीताशाही औरअवरोधक नियमों को बनाने में नौकरशाही आगे है. कुछ मंत्रियों के पास कईविभागों का प्रभार होता है. स्टाफ में चपरासी से लेकर निजी सचिव तक खुदके डेस्कों के बीच फाइलें घुमाते रहते हैं. चीन अपने शीर्ष नेतृत्व केआदेशों को नौकरशाहों पर सख्ती से लागू करता है. कॉरपोरेट भ्रष्टाचार कोमिटाने के लिए कड़ी कार्रवाई करता है. यहां तक सेलिब्रिटी और अरबपति भीआदेश के उल्लंघन पर सरकार के कोप से नहीं बच पाते. आधिकारिक गोपनीयता केबावजूद वायरस ने दुर्जेय ड्रैगन को कमजोर कर दिया है. अब समय आ गया है किदुनियाभर में हाथी की आवाज गूंजे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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