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आत्मनिर्भरता में बैंकों का योगदान

अधिकतर लघु उद्योग प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण की वजह से चल रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार, इस योजना की मदद से देश में 3.5 करोड़ से अधिक लोग रोजगाररत हैं.

सतीश सिंह, वरिष्ठ अधिकारी, भारतीय स्टेट बैंक

satish5249@gmail.com

बैंक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. यह लोगों की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने और रोजगार सृजन का बड़ा माध्यम है. कोरोना महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत खस्ताहाल हो गयी है. नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 21 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों को आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए कहा है. घोषित पैकेज के तहत कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों, ग्रामीण क्षेत्र में किफायती आवास आदि के लिए अनेक प्रावधान हैं. नीतिगत उपायों के जरिये भी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की पहल की गयी है.

इन पहलों को कारगर बनाने की दिशा में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख बैंक स्टेट बैंक ने योनो डिजिटल मंच पर किसान ई-स्टोर खोला है, जहां किसानों के लिए जरूरी कई उत्पाद ऑनलाइन एवं सस्ती दर पर उपलब्ध हैं. स्टेट बैंक किसानों के लिए मंडी, मित्र और कृषि गोल्ड ऋण आदि की सुविधा भी उपलब्ध करा रहा है. मंडी के अंतर्गत किसानों की गैर बैंकिंग जरूरतों को पूरा किया जा रहा है तथा उन्हें बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है, जहां किसान बिना किसी बिचौलिये के लेन-देन कर रहे हैं. बैंक ने किसानों को अन्य फोरम भी उपलब्ध कराया है, जिसके तहत वे बीज, उर्वरक, कृषि उत्पाद आदि सस्ती दरों पर खरीद रहे हैं. इससे जुड़े किसान इनकी खरीददारी के लिए बैंक से ऋण भी ले सकते हैं.

यह मंच रियल टाइम बेसिस पर किसानों को बाजार में चल रहे फसलों के भाव, फसल प्रबंधन, फसल बीमा, कृषि तकनीकी समस्याओं का समाधान, कोल्ड स्टोरेज आदि की जानकारियां भी उपलब्ध करा रहा है. योनो के अन्य मंचों के जरिये किसान कृषि उपकरण खरीद रहे हैं. एग्रोस्टार भारत का पहला तकनीकी स्टार्टअप है, जो कृषि से जुडी समस्याओं का समाधान पेश करता है. इस पर मिस्डकाल या एप के जरिये किसान अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं. इनके अलावा मौसम संबंधी जानकारियों को हासिल करने के लिए स्काइमेटवेदर मंच उपलब्ध है.

बैंक छोटे और मझोले कारोबारियों को संपत्ति के एवज में ऋण, ग्रामीण क्षेत्र में पेट्रोल पंप डीलरों एवं अन्य डीलरों को ऋण, वेयरहाउस रिसीट पर ऋण अर्थात वेयरहाउस में रखे अनाज के बदले ऋण, दाल, चावल, चीनी, कपडा आदि मिलों के लिए ऋण, शिक्षा ऋण, दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वैयक्तिक ऋण, ग्रामीण क्षेत्र में क्लिनिक खोलने के लिए डॉक्टर प्लस ऋण, स्कूल या महाविद्यालय खोलने के लिए ऋण आदि भी मुहैया करा रहे हैं. ग्रामीण कॉर्पोरेट टाई-अप के जरिये अपनी फसलों या कृषि उत्पादों को सीधे कॉर्पोरेट को बेच रहे हैं, जिससे उन्हें स्थानीय मंडी जाने की जरूरत नहीं होती है.

उन्हें बिचौलियों से भी छुटकारा मिल जाता है. इससे किसानों के दुलाई और भाड़े पर होने वाले खर्च बच रहे हैं. बैंक किसानों को जमीन खरीदने, एग्री किलीनिक खोलने, पॉली हाउस बनाने, कंबाइंड हार्वेस्टर खरीदने, पशुपालन, मछलीपालन, मशरूम की खेती करने, कुक्कट पालन, सुअर पालन, हार्टीकल्चर, बकरीपालन, सेरीकल्चर, भेड़ पालन, मधुमक्खी पालन, ट्रैक्टर, पंपसेट व पाइपलाइन खरीदने आदि के लिए भी ऋण दे रहे हैं.

कोरोना काल में प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना से अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हों, इसके लिए सरकार ने 1,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. यह लाभ शिशु मुद्रा ऋण लेनेवाले लगभग तीन करोड़ लाभार्थियों को कम ब्याज दर के रूप में देने का प्रस्ताव है. इसके तहत तीन प्रकार के ऋण, यथा, शिशु, किशोर और तरुण दिये जाते हैं. शिशु योजना के तहत पचास हजार रुपये तक का ऋण कम ब्याज दर और आसान शर्तों पर दिया जाता है.

किशोर योजना के तहत स्वरोजगार शुरू करने वाले व्यक्ति को पचास हजार रुपये से पांच लाख रुपये तक तक ऋण दिया जाता है और तरुण योजना के तहत कारोबार शुरू करने के लिए पांच लाख से दस लाख रुपये तक का ऋण जरुरतमंदों को दिया जाता है. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (सांख्यिकी मंत्रालय) के 2018 में जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, देश में करीब छह करोड़ लघु उद्योग हैं, जिनमें 12 करोड़ से अधिक लोग कार्यरत हैं. अधिकांश लघु उद्योग प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण की वजह से चल रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार, इस योजना की मदद से देश में 3.5 करोड़ से अधिक लोग रोजगाररत हैं.

ग्रामीणों को बैंक से जोड़ने, महिलाओं का सशक्तीकरण करने, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण या सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे ग्रामीणों के खाते में डालने, डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देकर ग्रामीणों की पहुंच दुनिया के बाजार तक करने, बिचौलिये की भूमिका को खत्म करने आदि का काम भी किया जा रहा है. देश में लगभग 1.30 लाख से अधिक बैंक शाखाओं का नेटवर्क है. प्रधानमंत्री जन-धन योजना की मदद से लगभग 40 करोड़ लोग बैंक से जुड़ चुके हैं. इस वजह से बैंक ज्यादा किसानों और लघु, छोटे एवं मझौले कारोबारियों को ऋण दे पा रहे हैं. बैंक, ग्रामीणों को वित्तीय रूप से साक्षर भी बना रहे हैं. बैंक देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आत्मनिर्भरता का भाव समाज में भी उत्पन्न होना चाहिए, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए सरकार के साथ समाज के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है.

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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