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भारत से बेहतर संबंध रूस की जरूरत

Russia : मोदी-पुतिन मुलाकात के दौरान आर्थिक सहयोग बढ़ाने की भी बात हुई है. वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर करने पर सहमति बनी है, सो आर्थिक मामलों में भी भारत को संतुलन बनाने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि जहां टैरिफ को लेकर अमेरिका के साथ भारत की बातचीत चल रही है, वहीं यूरोपीय संघ के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर बातचीत चल रही है.

Russia : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान भारत-रूस के बीच कुशल कामगारों के रूस जाने की प्रक्रिया को आसान बनाने, यूरिया उत्पादन को लेकर दोनों देशों की कंपनियों के बीच करार, सूचनाओं के आदान-प्रदान, शिपिंग व ट्रांसपोर्ट, मीडिया सहयोग, खाद्य उत्पादों की सुरक्षा व गुणवत्ता में सहयोग, स्मार्ट पोर्टेबल परमाणु तकनीक देने पर सहमति समेत 10 से भी अधिक महत्वपूर्ण समझौते हुए. हालांकि हथियारों व मिसाइलों की खरीद पर समझौता नहीं हुआ, पर पुतिन ने कहा कि वह भारत को ईंधन की निर्बाध आपूर्ति जारी रखेंगे. उन्होंने असैन्य परमाणु समझौता जारी रहने की भी बात कही.


मोदी-पुतिन मुलाकात के दौरान आर्थिक सहयोग बढ़ाने की भी बात हुई है. वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर करने पर सहमति बनी है, सो आर्थिक मामलों में भी भारत को संतुलन बनाने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि जहां टैरिफ को लेकर अमेरिका के साथ भारत की बातचीत चल रही है, वहीं यूरोपीय संघ के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर बातचीत चल रही है. अगले सप्ताह अमेरिकी प्रतिनिधि टैरिफ पर बात करने, जबकि संभवत: जनवरी में ईयू के प्रतिनिधि भारत आने वाले हैं. सो भारत के लिए यहां चुनौती तो है, पर अमेरिका के साथ टैरिफ पर जो बातचीत चल रही है, उसे अंतिम रूप देने में अभी समय लगेगा, साथ ही भारत-ईयू के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए जो भी समझौते होंगे, उसमें भी समय लगेगा.

इस बीच उम्मीद है कि भारत बीच का कोई रास्ता निकाल लेगा, क्योंकि भारत केवल रूस से ही नहीं, बल्कि कई देशों के साथ अपना निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. भारत की कोशिश यही है कि वह यूरोप, अमेरिका और रूस के साथ अपने हितों को देखते हुए आर्थिक समझौता करता रहेगा. ऊर्जा और उर्वरक के क्षेत्रों में रूस के साथ हमारा समझौता बहुत महत्व रखता है. इंटरनेशनल मोबिलिटी एग्रीमेंट भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस तरह अमेरिका भारतीय पेशेवरों को अपने यहां से निकाल रहा है, ऐसे में रूस का यह कहना कि, उसे भारतीय कुशल कामगारों की जरूरत है, हमारे लिए महत्वपूर्ण है. हमारे यहां हर वर्ष दो लाख इंजीनियर निकलते हैं. इनमें से अनेक की आकांक्षा भारत से बाहर जाकर काम करने की होगी, तो उनके लिए रूस रास्ता बना रहा है.


प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन के प्रति गर्मजोशी दिखा कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध हमारे लिए जरूरी हैं. रूस भी चाहता है कि भारत के साथ उसके संबंधों की मजबूती बनी रहे. तो पुतिन का यह दौरा रूस की ओर से भारत को यह जताने की कोशिश है कि भारत भी हमारा उतना ही अच्छा दोस्त है, जितना चीन है, क्योंकि चीन के साथ रूस की असीमित मित्रता (नो लिमिट पार्टनरशिप) है. उधर भारत यह भी जताना चाहता है कि वह न केवल अमेरिका और ईयू के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है, बल्कि एशिया-प्रशांत, अपने पड़ोस और, वैश्विक दक्षिण के देशों के साथ भी मजबूत संबंध बनाना चाहता है.

एशिया-प्रशांत के जिन देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध हैं, उसमें भी जरूरी है कि भारत रूस के साथ एक दूसरा वैकल्पिक साझीदार बनकर उभरे, ताकि रूस की चीन के साथ जो असीमित मित्रता है, उसमें एक सीमा निर्धारित हो. यदि रूस चीन का शत-प्रतिशत भागीदार बन जाता है, तो हमें दिक्कत होगी, क्योंकि चीन आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का हमेशा साथ देता आया है. भारत के हितों की रक्षा के लिए भी रूस की मित्रता की जरूरत है, क्योंकि भारत-रूस की दोस्ती समय की कसौटी पर हमेशा खरी उतरी है.


दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर काम करने की जो प्रतिबद्धता जतायी है, वह भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अमेरिका जिस तरह पाकिस्तान, खासकर फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है, उससे आतंकवाद को मिटाने की भारतीय कोशिशों को धक्का लगा है. ऐसे में जरूरी है कि जो भी देश आतंकवाद के खिलाफ भारत का साथ दें, भारत उनके साथ दोस्ती मजबूत करे. भारत-रूस ने असैन्य परमाणु ऊर्जा समझौते के जारी रहने की बात कही, जो महत्वपूर्ण है, क्योंकि अमेरिका भी यूरेनियम और परमाणु ऊर्जा के लिए जरूरी चीजें रूस से खरीद रहा है. पुतिन चार वर्ष बाद भारत दौरे पर आये. आजकल वह विदेश यात्रा पर कम ही जाते हैं. ऐसे में, उनकी भारत यात्रा दिखाती है कि रूस के लिए भी भारत के साथ अपनी दोस्ती को आगे बढ़ाना आवश्यक है.

बीते कुछ समय से जिस तरह की भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया है, खास तौर से रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर जिस तरह आपूर्ति-शृंखला प्रभावित हुई है, वैसे में भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बनाना रूस की जरूरत है. चूंकि यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देश रूस के खिलाफ हैं, ऐसे में, पश्चिमी देशों के कई राजनयिकों ने पुतिन के दौरे को लेकर हमारी सरकार को चिट्ठी भी लिखी कि हम पुतिन से युद्ध रोकने को कहें. यहां यह बात भी महत्व रखती है कि आखिर पश्चिमी देश- यूरोपीय संघ और अमेरिका- भारत के साथ किस तरह पेश आ सकते हैं और भारत कैसे इन परिस्थितियों के बीच संतुलन बनायेगा. हो सकता है कि अमेरिका ने पहले से भारत पर 25 प्रतिशत का जो अतिरिक्त टैरिफ लगाया हुआ है, उसे न हटाए. ऐसे में, भारत अमेरिका को बता सकता है कि उसने चीन पर अतिरिक्त टैरिफ नहीं लगाया है, जबकि वह हमसे कहीं अधिक तेल रूस से खरीद रहा है. अमेरिका ने यूरोप पर भी अतिरिक्त टैरिफ नहीं लगाया है, जबकि वह हमसे कहीं अधिक गैस रूस से खरीदता है.


भारत अमेरिका को यह भी कह सकता है कि उसके कारण ही वह ईरान से तेल नहीं खरीद रहा है और उसे महंगा तेल खरीदना पड़ा है. तो अमेरिका के कारण जो बोझ भारत पर पड़ा है, उसे वह क्यों नहीं देख रहा? उसके बदले अमेरिका ने भारत को राहत नहीं दी, उल्टे 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया. भारत तेल के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार पर नजर बनाये रखता है और जहां से उसे दीर्घावधि में सस्ता तेल मिलेगा, वह उसे वहां से खरीदेगा. इसके साथ ही भारत यह भी कोशिश करता है कि अमेरिका के साथ उसका व्यापार संतुलन बना रहे. इसी क्रम में भारत ने गैस की अपनी जरूरतों का 10 प्रतिशत अमेरिका से आयात करने का निर्णय किया है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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