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स्वास्थ्य नीति से उम्मीदें
जन स्वास्थ्य से संबंधित आंकड़े बीमारियों से जूझते भारत की भयावह तसवीर पेश करते हैं. वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं पर औसत खर्च कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का छह फीसदी है. ब्रिक्स देशों में ब्राजील अपनी जीडीपी का 3.8 प्रतिशत, रूस 3.7 प्रतिशत और चीन 3.1 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं. विश्व बैंक […]
जन स्वास्थ्य से संबंधित आंकड़े बीमारियों से जूझते भारत की भयावह तसवीर पेश करते हैं. वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं पर औसत खर्च कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का छह फीसदी है. ब्रिक्स देशों में ब्राजील अपनी जीडीपी का 3.8 प्रतिशत, रूस 3.7 प्रतिशत और चीन 3.1 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं.
विश्व बैंक के मुताबिक, 2014 में इस मद में भारत का खर्च मात्र 1.4 प्रतिशत था. आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप में जन स्वास्थ्य पर जीडीपी का मात्र 1.3 प्रतिशत ही खर्च किया गया. इससे स्पष्ट है कि बीमारियों से जूझती और इलाज करा पाने में असमर्थ बड़ी आबादी की बुनियादी सुविधाओं को नजरअंदाज करने की एक परिपाटी बन गयी है.
अब केंद्रीय कैबिनेट द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2015 को दो वर्ष बाद आखिरकार मंजूरी मिलने से उम्मीदें बढ़ी हैं. इसके तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने, मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने, दवा और इलाज के खर्चों को मुफ्त करने जैसे लक्ष्य रखे गये हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में इस प्रकार की व्यवस्थागत सुधार की मांग बहुप्रतीक्षित थी. मसौदे में सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को कुल जीडीपी के 1 प्रतिशत से बढ़ा कर और 2.5 प्रतिशत करने और स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागदारी को बढ़ाने का प्रस्ताव स्वागतयोग्य है. दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना में भारत के सामने स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियां कहीं बड़ी हैं.
जानलेवा बीमारियों के हमले पर मरीजों के पास इलाज के विकल्प सीमित हैं और ज्यादातर मामलों में तो इलाज का खर्च उठा पाना संभव नहीं होता है. ब्रुकिंग इंडिया की रिपोर्ट ‘हेल्थ एंड मोर्बिडिटी इन इंडिया (2004-14)’ के अनुसार, वर्ष 2014 में देश की मात्र 15.2 प्रतिशत आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा था.
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत की बड़ी आबादी स्वास्थ्य खर्च को वहन कर पाने में समर्थ नहीं है, ऐसे में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक नीतिगत प्रयासों पर ही भरोसा टिका हुआ है. गरीबी, भुखमरी, कुपोषण और असमानता के खिलाफ हमारी सुनियोजित जंग ही सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करेगी और नागरिकों के मानवीय अधिकारों को पोषित करेगी. आशा है कि सरकार नयी नीति के तहत स्वास्थ्य लाभों को आबादी के बड़े हिस्से तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेगी.
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