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लाचार नहीं, सशक्त मुख्यमंत्री चाहिए

झारखंड के मुख्यमंत्री खुद फरमाते हैं कि हमारी सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में अक्षम है. मंत्री न काम करते हैं और न करने देते हैं. ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि ऐसी सरकार चलाने का फायदा क्या? यदि सरकार के मुखिया लाचार हैं और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोग बेलगाम हैं, तो इनसे आम जनता के […]

झारखंड के मुख्यमंत्री खुद फरमाते हैं कि हमारी सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में अक्षम है. मंत्री न काम करते हैं और न करने देते हैं. ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि ऐसी सरकार चलाने का फायदा क्या? यदि सरकार के मुखिया लाचार हैं और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोग बेलगाम हैं, तो इनसे आम जनता के हित में काम करने की क्या उम्मीद की जा सकती है?

ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आज हर कोई मांग रहा है. दूसरी ओर मुख्यमंत्री यह कहते भी नहीं थक रहे हैं कि गांवों से विकास की लकीर खींचेंगे. ये विरोधाभास नहीं तो और क्या है? कहीं आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तो मुख्यमंत्री अपना सुर नहीं बदल रहे हैं. सरकार ईमानदार पहल करे, तो उसे अपनी कर्तव्यनिष्ठता का प्रचार करने की जरूरत नहीं है.

तमाम चुनावी पैंतरेबाजी के बाद भी सरकार को विकास पर ही अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए. प्रदेश में इन दिनों काम कम, बातें ज्यादा हो रही हैं. सरकार में शामिल सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग अलाप रहे हैं. गंठबंधन की सरकार आपसी तालमेल और सामंजस्य के भरोसे चलती है. लेकिन यहां तो स्थिति इसके उलट है. सरकार में शामिल लोग ही विपक्ष की भूमिका में दिख रहे हैं.

जिस तरह से मंत्री ददई दुबे की विदाई हुई है, उससे कोई सबक नहीं ले रहा है. कांग्रेस के एक सांसद कहते हैं कि मार्केटिंग बोर्ड चोर-दलालों का अड्डा बन गया है. सहयोगी ही मुख्यमंत्री की टांग खींचने में लगे हैं. गंभीर सवाल यह है कि ऐसे बिखराव के बीच झारखंड केंद्र से अपने हक की लड़ाई कैसे लड़ पायेगा? सीमांध्र का उदाहरण लें, तो वहां विशेष राज्य का दरजा दिलाने के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों एकजुट हो गया.

इससे हमें सबक लेना चाहिए. झारखंड में जनता के विकास का एजेंडा गायब हो गया है. नेता हो या नौकरशाह किसी को कोई चिंता नहीं है. जनता के सपने धूमिल हो रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है. मुख्यमंत्री गंठबंधन को संभाल पाने में विफल हो रहे हैं. सरकार की खामियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए. सिर्फ जनसभाओं में अपनी मजबूरी गिनाने से जनता का भला नहीं हो सकता है. युवा मुख्यमंत्री को मौका मिला है, उन्हें राज्य को विकास के रास्ते पर ले जाना चाहिए.

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