10.7 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

सामाजिक न्याय के कदम

नीतीश सरकार ने राज्य की न्यायिक सेवा में वंचित समुदायों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला कर फिर से जताया है कि बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति लोक-लुभावन जुमला भर नहीं, बल्कि ठोस हकीकत है. कई वजहों से इस फैसले को सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर माना जायेगा. पहली […]

नीतीश सरकार ने राज्य की न्यायिक सेवा में वंचित समुदायों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला कर फिर से जताया है कि बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति लोक-लुभावन जुमला भर नहीं, बल्कि ठोस हकीकत है. कई वजहों से इस फैसले को सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर माना जायेगा. पहली वजह तो यही है कि न्यायिक सेवा में वंचित वर्ग को आरक्षण देने की फरियाद ऊंची अदालतों में बार-बार ठुकरायी जाती रही है.
नवंबर, 2014 में निचली अदालतों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण देने के बिहार सरकार की अधिसूचना को पटना हाइकोर्ट ने निरस्त कर दिया था. साल भर पहले उत्तराखंड के एक जज की अर्जी सर्वोच्च न्यायालय में खारिज हुई, जिसमें उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षण की मांग की गयी थी. तब प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने कहा था- ‘किस कानून में लिखा है कि उच्च न्यायालय में इन वर्गों को आरक्षण मिलना चाहिए. आप इसका दावा किसी अधिकार के रूप में नहीं कर सकते.’ इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि न्यायिक सेवा में वंचित वर्ग को आरक्षण देने के मामले में ऊंची अदालतों का रवैया कैसा है.
जाहिर है, ऊंची अदालतों के इस बाधक रवैये के बावजूद नीतीश सरकार का फैसला सामाजिक न्याय की नयी लकीर खींचने में कामयाब हुआ है.
इसके ऐतिहासिक होने की दूसरी वजह है उसका नयी राह खोलनेवाला होना. ऊंची अदालतों में जजों की नियुक्त के लिए किसी भारतीय नागरिक का दस वर्षों तक न्यायिक सेवा में होना या फिर उच्च न्यायालय में 10 वर्षों तक बतौर अधिवक्ता रहने का अनुभव अनिवार्य है. नियुक्ति की इस प्रणाली में जज की सामाजिक पृष्ठभूमि को नजरअंदाज कर दिया गया है. इसी कारण अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग ने न्यायपालिक में आरक्षण पर केंद्रित अपनी रिपोर्ट में इस चलन को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में बाधक माना है. निचली अदालतों में वंचित वर्ग के लिए आरक्षण की राह खुलने से इस तबके के ज्यादा जजों के उच्च अदालतों में पहुंचने के रास्ते खुले हैं.
कैबिनेट के फैसले में चूंकि किसी भी श्रेणी की आरक्षित कुल सीटों में उसी श्रेणी की महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने की बात भी शामिल है, इसलिए अब यह उम्मीद लगायी जा सकती है दलित-वंचित वर्गों पर जातिगत कारणों से होनेवाले उत्पीड़न और महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामलों की सुनवाई में बिहार की अदालतें कहीं ज्यादा संवेदनशील होंगी और उन्हें न्याय देने में बिहार एक खास नजीर साबित होगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel