18 दिसंबर को पुण्यतिथि के अवसर पर झारखंड आंदोलन के जनक बिनोद बिहारी महतो को समर्पित विशेष आलेख व जानकारी से भरे कवरेज के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद. वस्तुतः बिनोद बाबू सच्चे अर्थों मे एक व्यक्ति नहीं बल्कि समग्र विचारधारा थे. वे शोषणमुक्त झारखंड राज्य पाने हेतू आजीवन लड़ाई लड़े.
उनके जीते जी झारखंड नहीं बन पाया व उनके सपने अधूरे ही रह गये. यहां के लोगों के पिछड़ेपन को मिटाने के लिए उन्होंने ‘पढ़ो और लड़ो’ का अमोघ मंत्र भी दिया था. उनके प्रयास से इस क्षेत्र में अनेक स्कूल-कालेजों की स्थापना हुई. बिनोद बाबू का सपना आज भी अधूरा है जिसे पूरा करना हमसबों का परम कर्तव्य है.
महादेव डुंगरिआर, तालगड़िआ.
