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पार्टियों का सच

नोटबंदी पर संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे एवं मुख्तार नकवी को पूरे देश ने लड़ते हुए देखा. फिर श्री राहुल गांधी को बैंक एटीएम पर लाइन लग कर प्रधानमंत्री को कोसते हुए देखा. ये देख लोगों को लगा होगा कि मेरा नेता एक दम सच्चा है. मगर जब इन समर्थकों को मालूम चलेगा की दोनों पार्टियों […]

नोटबंदी पर संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे एवं मुख्तार नकवी को पूरे देश ने लड़ते हुए देखा. फिर श्री राहुल गांधी को बैंक एटीएम पर लाइन लग कर प्रधानमंत्री को कोसते हुए देखा. ये देख लोगों को लगा होगा कि मेरा नेता एक दम सच्चा है. मगर जब इन समर्थकों को मालूम चलेगा की दोनों पार्टियों ने, एक साथ गलबहियां करते हुए, सुप्रीम कोर्ट में फाइल, उस अपील को वापस ले लिया, जिसमें हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गयी थी, जिसके तहत इन दोनों बड़ी पार्टियों, कांग्रेस और बीजेपी पर, विदेशी कंपनी से चंदा लेने का दोषी ठहराया गया था.
विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 1976 को, इनलोगों ने संशोधन करके, उच्च न्यायालय का आदेश को निरस्त कर दिया. जब इन दोनों की मित्रता पर सवाल तीसरी पार्टी से की जाती है, तो वे भी ‘नो कॉमेंट’ कहकर खामोश हो जाते हैं. इसका मतलब साफ है कि जितने राजनीतिक दल हैं, वे इस देश के राजा हैं और जनता प्रजा. हमलोग बेवकूफों की तरह कांग्रेस-बीजेपी के तरफ होकर लड़ते रहते हैं.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी

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