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नये विश्व-नेतृत्व का उभार
तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी जनता के सामने संदेश रखा अमेरिकी ध्वज के गौरव को बचाने का, जिसने अमेरिकी मतदाताओं को अचंभित कर दिया. वहीं हिलेरी के उन बयानों ने निराश किया, जिनमें वह विश्व शांति, मैत्री जैसे शाब्दिक अलंकरणों का चित्र बना रही थीं, जिसमें आतंकवाद एवं आर्थिक समृद्धि मुख्य […]
तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी जनता के सामने संदेश रखा अमेरिकी ध्वज के गौरव को बचाने का, जिसने अमेरिकी मतदाताओं को अचंभित कर दिया. वहीं हिलेरी के उन बयानों ने निराश किया, जिनमें वह विश्व शांति, मैत्री जैसे शाब्दिक अलंकरणों का चित्र बना रही थीं, जिसमें आतंकवाद एवं आर्थिक समृद्धि मुख्य बिंदु नहीं थे.
किसी भी व्यक्ति, देश या नेता को समर्थन देने की कसौटी क्या हो सकती है? यह कि एक व्यक्ति या देश कितनी भली-भली बातें करता है या यह कि उससे मेरे देश को कितना लाभ होगा? कूटनीति धार्मिक चंदे देने का काम नहीं है, बल्कि उसका आधार विशुद्ध राष्ट्रहित ही हो सकता है.
अमेरिकी राष्ट्रवाद के प्रखर ध्वज को थामे, कठोर वाणी प्रहार से अमेरिकी शत्रुओं को भयाक्रांत करनेवाले ट्रंप को अमेरिकी नागरिकों ने इसलिए चुना कि वे शत्रु को क्षमा नहीं करेंगे और मित्र का साथ निभायेंगे. इसी कारण अमेरिका में भारतीय मूल के हिंदुओं ने हिलेरी के बजाय ट्रंप को चुना. ट्रंप की जीत ने आतंकवाद समर्थकों और दोगले हिंदू-विरोधियों को हराया. अब ट्रंप-मोदी और पुतिन का त्रिकोण नयी विश्व व्यवस्था को उभारेगा.
यहां यह सवाल लाजिमी है कि आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय मूल के हिंदू अमेरिकी नागरिक ट्रंप की ओर क्यों आकृष्ट हुए? इसका उत्तर है कि ट्रंप इसलामी बर्बर जेहाद और आतंकवाद के विरुद्ध हैं. वह प्रखर भारतीय मित्र हैं और हमारे कश्मीर में हिंदुओं के विरुद्ध इसलामी अत्याचार के विरुद्ध बोल चुके हैं. भारत इसलामी आतंकवाद का सबसे बड़ा निशाना है. जेहाद, तालिबान, आइएस, हिजबुल, लश्कर जैसे नाम भारतीयों के जनमानस में पाश्विकता, बर्बरता के पर्याय के नाते पैठे हुए हैं.
ऐसे में भारतीयों के लिए मित्रता एवं समर्थन का हाथ बढ़ाने के लिए क्या कसौटी और प्राथमिकता होनी चाहिए? क्या वह जो कभी भारत का मित्र और सहयोगी नहीं रहा, जिसका अतीत भ्रष्ट तरीके से कमाये धन की कथा बताता है, जो सदा भारत विरोधी कूटनीति को अपनाता रहा- लेकिन सेक्युलर पाखंड के भाषण देता है या वह जो स्पष्ट शब्द प्रयोग कर भारत के प्रति सदाशयता और आतंक के विरुद्ध कठोर नीति को दर्शाता है?
अमेरिकी निवासी हिंदू-अमेरिकी मतदाता किसी संशय में नहीं है कि ट्रंप का निर्वाचन भारत हित में है. हिलेरी और उनके पति बिल क्लिंटन प्रछन्न तौर पर पाकिस्तान समर्थक एवं भारत विरोधी रहे हैं. बिल क्लिंटन वह पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने भारतीय सेना के विरुद्ध हिंदू-आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल किया था- तत्कालीन विदेश मंत्री मैडेलीन अलब्राइट की पुस्तक की भूमिका में. बिल क्लिंटन ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल में एक साल तक भारत में राजदूत नियुक्त करने की जरूरत नहीं समझी, तथा रूस को क्रायोजनिक इंजन देते समय शर्त लगायी कि यह तकनीक भारत को स्थानांतरित नहीं की जायेगी.
लेकिन, जन-स्मृति बहुत कमजोर होती है. भारत में कांग्रेस, कम्युनिस्ट व अन्य कथित सेक्युलरों ने क्लिंटन के कहने के बाद ही, हिंदू-आतंकवाद शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया.
यह वही वर्ग है, जो मोमबत्ती जलाने वाघा सरहद पर जाता है और भारतीय सैनिकों की बहादुरी का अपमान करते हुए उनके दुख को राजनीति का उपकरण बनाने से नहीं चूकता. इनकी भारतीयता पासपोर्ट तक सीमित है, लेकिन मीडिया पर इनका वर्चस्व है. इसलिए वे हिलेरी के समर्थन में लिखते हैं और यदि कोई ट्रंप के साथ केवल दो शब्द अपने देश-हित की कसौटी पर कहना चाहे, तो उसे युद्ध समर्थक, अतिरेक वगैरह शब्दों से विभूषित कर मजाक उड़ाते हैं.
राजनीति और कूटनीति धर्मादा कार्य नहीं. यह केवल और केवल देश-हित, विदेश नीति और मैत्री संबंध व्याख्यायित करने का आधार हो सकता है. लेकिन, इस देश का इतिहास रहा है कि विदेशी हमलावरों के साथ भारत के ही महत्वाकांक्षी राजनीतिक क्षुद्र लाभ से ग्रस्त लोग मिलते रहे और उनके जैसे रायबहादुरों, रायसाहबों के कारण भारत गुलाम होता रहा. दरबान से दीवान तक इन्हीं भारतीयों ने अंगरेजों का साथ दिया और भगत सिंह को फांसी पर लटकवाया. आज भी देश में भगत सिंह के खिलाफ गवाही देनेवाले आतंकवादियों की मौत का मातम मनाते हैं, देशभक्त सुरक्षा बलों का अपमान करते हैं और सरकार पर हमला करने के लिए सैनिक सम्मान से खिलवाड़ करते हैं.
अमेरिकी चुनाव अमेरिका का विषय है. वहां किसे राष्ट्रपति बनना चाहिए, यह तय करना अमेरिकी नागरिकों का ही एकमेव अधिकार है.लेकिन, इस चुनाव ने स्वाभाविक तौर पर जो विश्वव्यापी दिलचस्पी और उत्सुकता पैदा की, उस चुनावी शोर में अमेरिकी हिंदुओं की मानसिकता स्वाभाविक तौर पर अपनी मूल पुण्यभूमि के प्रति निष्ठा का उदाहरण बन कर सामने आयी है. भारत के कथित सेक्युलरों का हिलेरी को समर्थन वैसा ही है, जैसे उन्होंने जंगलराज का प्रतीक बने नेता का समर्थन किया था. उनके सामने भारत-हित महत्वपूर्ण नहीं- यह साफ हो गया.
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