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सुरक्षा परिषद् पर सवाल
आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में महीनों से लंबित है. इससे नाराज भारत ने सुरक्षा परिषद् को खूब खरी-खोटी सुनायी है. परिषद् की प्रतिबंध समिति में भारतीय प्रस्ताव को चीन ने इस वर्ष 31 मार्च को तकनीकी कारणों से रोक दिया था. उस समय […]
आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में महीनों से लंबित है. इससे नाराज भारत ने सुरक्षा परिषद् को खूब खरी-खोटी सुनायी है. परिषद् की प्रतिबंध समिति में भारतीय प्रस्ताव को चीन ने इस वर्ष 31 मार्च को तकनीकी कारणों से रोक दिया था. उस समय सुरक्षा परिषद् के अन्य सभी 14 सदस्यों ने मसूद अजहर को प्रतिबंध सूची में रखने के भारतीय प्रस्ताव का समर्थन किया था.
इस सूची में शामिल होने के बाद पाकिस्तान में ऐश फरमा रहे मसूद अजहर की संपत्ति और यात्राओं पर रोक लग जायेगी. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी संगठन घोषित होने के बावजूद सुरक्षा परिषद् ने बीते नौ महीनों में संगठन के नेताओं की पहचान कर उन्हें सूचीबद्ध करने की प्रकिया तक शुरू नहीं की है. सुरक्षा परिषद् की यह देरी इस महत्वपूर्ण इकाई के कामकाज और रवैये पर गंभीर टिप्पणी है.
आतंकवाद जैसे जरूरी मसले पर भी यदि यह विश्व-संस्था फैसले ले पाने में लचर और लापरवाह है, तो आतंक से लड़ने के इसके आह्वानों और प्रतिबद्धताओं पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है. अकबरुद्दीन ने उचित ही कहा है कि ‘सुरक्षा परिषद् हमारे समय की जरूरतों के प्रति अनुत्तरदायी और अपने समक्ष मौजूद चुनौतियों से निबटने में निष्प्रभावी हो चुकी है.’
बीते दिनों अमेरिका ने भी पाकिस्तान से संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी संगठनों और उसके नेताओं पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. इन संगठनों में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और उनके सहयोगी समूह शामिल हैं. हालांकि चीन और भारत ने कुछ दिन पहले ही आतंकवाद पर अंकुश लगाने और सुरक्षा बेहतर करने के मुद्दे पर पहली द्विपक्षीय वार्ता की है. लेकिन, हकीकत यही है कि चीन भारत के साथ सहयोग की चाहे जितनी बातें करे, पर पाकिस्तान के सैन्य तंत्र को संतुष्ट रखना उसकी पहली प्राथमिकता है.
ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि संयुक्त राष्ट्र में चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जाये, साथ ही कूटनीतिक प्रयासों के जरिये उसे भारत की चिंताओं के प्रति आगाह कर सही रवैया अपनाने के लिए तैयार किया जाये. विभिन्न बहुपक्षीय संगठनों और द्विपक्षीय व्यापार के जरिये भारत और चीन के संबंध सकारात्मक दिशा में अग्रसर हैं.
इस पृष्ठभूमि में चीन को भारत में आतंक फैलानेवाले तत्वों की तरफदारी से बचना ही चाहिए. सुरक्षा परिषद् को भी अपनी जिम्मेवारियों के प्रति गंभीरता दिखाते हुए आतंकी सरगनाओं पर प्रतिबंध का फैसला अविलंब लेना चाहिए, अन्यथा वह उत्तरोत्तर अप्रासंगिक होता जायेगा.
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