संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है और उम्मीद जतायी है कि इस घटना को अंजाम देनेवालों की पहचान की जायेगी, उन्हें सजा दी जायेगी. मतलब, संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पक्ष भारत के प्रति सहानुभूति दिखाने का है, लेकिन शब्दों की चतुराई से यह भी जताया गया है कि घटना को अंजाम देनेवालों के नाम और पहचान प्रमाणित करना अभी भारत के लिए शेष है. कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया अमेरिका और ब्रिटेन की भी रही है.
भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने भारत के दुख के साथ सहानुभूति दिखायी है, लेकिन दोषियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. हालांकि ब्रिटेन के विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत को सहयोग देने की बात कही है, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया के संकेत यह भी हैं कि ब्रिटेन भारतीय सैनिकों की शहादत को एक आतंकवादी घटना मान रहा है, भारत के विरुद्ध पाकिस्तान प्रेरित छद्म-युद्ध नहीं. चीन की प्रतिक्रिया भी इसी कोटि की है, जिसमें कश्मीर में बढ़ते तनाव पर चिंता जताते हुए भारत-पाकिस्तान को सलाह दी गयी है कि वे आतंकी घटनाओं पर लगाम कसने के लिए परस्पर सहयोग करें. इन सबके बीच अगर कोई खुल कर भारत के पक्ष में खड़ा हुआ है, तो वह केवल रूस है.
उसने भारत के आग्रह पर न केवल पाकिस्तान के साथ होनेवाले संयुक्त सैन्य-अभ्यास को रोक दिया है, बल्कि उसे एमआइ-35 हेलीकॉप्टर बेचने से भी इनकार कर दिया है. प्रमुख देशों की इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि भारत यदि संयुक्त राष्ट्र में सीमा-पार के आतंकवाद को शह देने के लिए पाकिस्तान के विरुद्ध कोई निंदा-प्रस्ताव लाता है या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गुहार लगाता है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी समूह पर कार्रवाई की जाये, तो उसे रूस जैसे परंपरागत मित्र का तो साथ मिल सकता है, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन या चीन जैसे देशों से समर्थन जुटाने के लिए भारत को अभी बहुत ज्यादा कूटनीतिक कोशिशें करनी होंगी.