डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
भारत ने मॉरीशस के साथ अस्सी के दशक में दोहरे टैक्स की संधि की थी. इसका बड़े स्तर पर दुरुपयोग हो रहा था. शेयर बाजार में किये गये निवेश से दो प्रकार से लाभ हासिल होता है. कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष शेयर पर लाभ दिया जाता है. साथ-साथ शेयर की मूल्यवृद्धि से भी लाभ होता है. इस लाभ को कैपिटल गेंस कहा जाता है.
मॉरीशस के साथ हुए दोहरे टैक्स की संधि के अंतर्गत मॉरीशस से भारत में निवेश पर कैपिटल गेंस टैक्स भारत में देय नहीं होता था. केवल मॉरीशस द्वारा कैपिटल गेंस टैक्स वसूला जा सकता था.
लेकिन, मॉरीशस में कैपिटल गेंस टैक्स की दर शून्य थी, इसलिए भारत में किया गया निवेश कैपिटल गेंस से मुक्त हो जाता था. अत: दुनिया के तमाम निवेशक भारत में मॉरीशस के रास्ते निवेश करते थे. मसलन, अमेरिकी निवेशक भारत में सीधे निवेश करें, तो उसे भारत में कैपिटल गेंस टैक्स देना होगा. वही निवेशक मॉरीशस में एक कंपनी बनाये और इस कंपनी के माध्यम से भारत में निवेश करे, तो उस पर कैपिटल गेंस नहीं देना पड़ता था. तमाम भारतीयों ने भी इस रास्ते का दुरुपयोग किया.
हाल में इस दोहरे टैक्स की संधि में संशोधन कर दिया गया. अब मार्च 2017 तक मॉरीशस से भारत में किये गये निवेश में पूर्ववत् कैपिटल गेंस टैक्स नहीं देना होगा. 2017 से 2019 तक भारत में लागू कैपिटल गेंस टैक्स दर का आधा देना होगा. 2019 के बाद भारत में पूरा कैपिटल गेंस टैक्स देय होगा. मॉरीशस द्वारा इस संशोधन को स्वीकार कर लेने से 2019 के बाद मॉरीशस से भारत में केवल सच्चा निवेश आयेगा.
मॉरीशस के साथ इस संधि में संशोधन के बाद संभावना थी कि विदेशी निवेश का फर्जीवाड़ा अब साइप्रस के माध्यम से होने लगेगा. बीते सप्ताह कैबिनेट ने साइप्रस के साथ दोहरे टैक्स संधि में भी संशोधन को मंजूरी दे दी. सिंगापुर तथा नीदरलैंड के साथ इसी प्रकार के संपन्न हुए समझौतों में भी संशोधन किया जा रहा है. अत: अब इस प्रकार की संधि की छत्रछाया तले भारत में फर्जी विदेशी निवेश करने के सभी रास्ते बंद हो जायेंगे. इस साहसिक कदम को उठाने के लिए सरकार को बधाई.
इन कदमों के कारण फर्जी विदेशी निवेश पर ब्रेक लग जायेगा, लेकिन सच्चा विदेशी निवेश, आयेगा यह संदिग्ध है. इसका कारण यह है कि भूमंडलीकरण का सर्वत्र संकुचन हो रहा है. नीदरलैंड के ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक पॉलिसी के अनुसार, गत वर्ष विश्व व्यापार में 13.8 प्रतिशत की गिरावट आयी है.
सलाहकार एटी कीयरनी के अनुसार, वर्तमान में विश्व में हो रहा विदेशी निवेश वास्तव में भूमंडलीकरण से पीछे हटने को इंगित करता है. उनके अनुसार विश्व के तमाम देश मुक्त व्यापार से पीछे हट रहे हैं. वे आयात कर बढ़ा रहे हैं, जिससे घरेलू उद्यमों को संरक्षण मिले और अपने देश में ही माल का अधिकाधिक उत्पादन हो. संरक्षण की इन बढ़ती दीवारों को माल के आयात से पार करना कठिन होगा, इसलिए घरेलू बाजार में माल बेचने के लिए कंपनियों द्वारा मेजबान देशों में फैक्ट्री लगायी जा रही है. अर्थ हुआ कि विदेशी निवेशक भारत में माल का उत्पादन भारतीय बाजार में माल बेचने के लिए करना चाहते हैं. वे भारत में माल बना कर निर्यात करने के लिए भारत में निवेश नहीं कर रहे हैं, जैसा कि चीन में उन्होंने किया है.
पिछले 17 माह में हमारे निर्यातों में लगातार गिरावट आ रही है. इससे स्पष्ट होता है कि निर्यात के लिए भारत में विदेशी निवेश नहीं आयेगा. ‘मेक इन इंडिया’ के पीछे सोच थी कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में फैक्ट्री लगा कर विश्व बाजार में माल सप्लाइ करेंगी, जैसा कि उनके द्वारा चीन में किया गया था, लेकिन वह समय अलग था. उस समय दुनिया भूमंडलीकरण की तरफ बढ़ रही थी. पूरी दुनिया में बड़ी कंपनियों के लाभ बढ़ रहे हैं, जबकि आम आदमी के रोजगार घट रहे हैं. आनेवाले समय में विश्व व्यापार घटेगा, इसलिए ‘मेक इन इंडिया’ के फेल होने की संभावना बनती है.
अब बात विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में भारतीय बाजार के लिए माल बनाने की, जैसे मारुति द्वारा भारत में कार उत्पादन किया जा रहा है. यहां हमारे सामने दो परस्पर विरोधी लक्ष्य हैं. अक्सर विदेशी कंपनियों के पास उन्नत तकनीकें होती हैं. इससे वे उत्तम क्वाॅलिटी का सस्ता माल बना सकते हैं. इससे हमारे उपभोक्ता को लाभ होता है. दूसरी तरफ, इनके द्वारा मुख्य रूप से ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन किया जाता है. फलस्वरूप हमारे उद्यमियों और श्रमिकों को चोट पहुंचती है. सरकार को इन दोनों परस्पर विरोधी लक्ष्यों के बीच तालमेल बैठाना है.
यदि घरेलू उद्यमों को संरक्षण देंगे, तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार को माल सप्लाइ करने के लिए भी विदेशी निवेश नहीं लायेंगी. तब हर प्रकार का विदेशी निवेश कम हो जायेगा और भारत अपनी पूंजी से अपनी अर्थव्यवस्था को बनाने की ओर बढ़ेगा. मॉरीशस तथा साइप्रस से दोहरे टैक्स संधि में संशोधन करना इस सुदिशा की ओर पहला कदम है.