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प्रमुख स्वामी की अमर्त्य काया

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा भारत का सबसे बड़ा रक्षा कवच सेना नहीं संत शक्ति है, जिन्होंने निस्पृह, वीतरागी भाव से यहां के समाज और संस्कारों की सुगंध मिटने नहीं दी. गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय ने हिंदुओं में नव-चैतन्य न भरा होता, तो वहां हिंदू ढूंढने कठिन हो जाते- ऐसा था विदेशी धन और मन […]

तरुण विजय

राज्यसभा सांसद, भाजपा

भारत का सबसे बड़ा रक्षा कवच सेना नहीं संत शक्ति है, जिन्होंने निस्पृह, वीतरागी भाव से यहां के समाज और संस्कारों की सुगंध मिटने नहीं दी. गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय ने हिंदुओं में नव-चैतन्य न भरा होता, तो वहां हिंदू ढूंढने कठिन हो जाते- ऐसा था विदेशी धन और मन वाले मिशनरियों का षड्यंत्र. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के छपैया गांव से गुजरात की पावन धरती पर आये ‘नीलकंठ’ का वह चमत्कारी प्रभाव था कि इस धरती ने उन्हें भगवान माना और उनकी परंपरा ने देश-विदेश में हिंदू धर्म की ऐसी गौरव गाथा रची कि आज यदि कहा जाये कि स्वामीनारायण पंथ हिंदू धर्म का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व करता है, तो अितशयोक्ति नहीं होगी.

स्वामीनारायण पंथ के 67 वर्ष तक लगातार अध्यक्ष रहे पूज्य प्रमुख स्वामी गत 13 अगस्त को गुजरात के सारंगपुर में ब्रह्मलीन हो गये. केवल 28 वर्ष की आयु में 1950 में उन्हें विश्वव्यापी भक्तों की अपार निष्ठा से अलंकृत स्वामीनारायण (बोचासण वासी अक्षर पुरुषोत्तम संस्था) का प्रमुख पद मिला था. उनका मूल संन्यस्त नाम था शास्त्री नारायण स्वरूप दास.

उनके मार्गदर्शन में केवल विश्व के प्रमुख 15 देशों में विराट और भव्य हिंदू मंदिरों की उच्च शिक्षित, विभिन्न विधाओं में युवा संन्यासियों की बहुत बड़ी संख्या उनके मार्गदर्शन में हिंदू धर्म की रक्षा, प्रचार-प्रसार में जुटी. आज 980 से अधिक ऐसे धर्मनिष्ठ विद्वान, शास्त्र मर्मज्ञ, अस्पृश्यतर को नकारनेवाले आधुनिक संन्यासियों की एकजुटता वस्तुत: राष्ट्र धर्म के नये अभ्युदय का संकेत देती है.

प्रमुख स्वामी जी ने बहुत गौरव और सुसंस्कृत भाव से हिंदू धर्म के नवीन, सर्वव्यापी स्वरूप को प्रतिष्ठित किया. वेद, उपनिषद् एवं अनेकों धर्मशास्त्रों का अध्ययन और पारायण प्रोत्साहित किया. गांधी नगर और नयी दिल्ली में स्थापित अक्षरधाम वास्तव में भारतीय सभ्यता के उत्कर्ष की गाथा सुनाते हैं.

दिल्ली के अक्षरधाम में प्रतिष्ठित पचास हजार से ज्यादा दर्शनों का अर्थ, भगवान नीलकंठ की प्रेरक संन्यास यात्रा, प्रचीन भारत में आयुर्वेद, खगोल शास्त्र, भौतिक एवं रसायन शास्त्र, गणित, बीजगणित, ज्यामिति और विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में हुए शोध का रोमांचक-प्रेरक-मनोहर परिचय करानेवाले स्वामीनारायण पंथ के मंदिर भारत-माता के भाल पर चंदन के तिलक समान सुशोभित है. धर्म को राष्ट्र के हित से जोड़ कर प्रमुख स्वामी ने नवीन राष्ट्र धर्म को परिभाषित किया.

और भविष्य का भारत, आधुनिक टेक्नोलॉजी के ज्ञान से सज्जित मनुष्य की सेवा में विज्ञान को लगानेवाला होगा. इस दृष्टि से प्रमुख स्वामी ने अपने नवीन युवा संन्यासियों को प्रवृत्त किया.

विश्व की नवीनतम आधुनिकतम टेक्नोलॉजी का उपयोग कर धर्म को ‘जनरेशन एम्स’ के सामने इतने प्रभावी ढंग से रखा कि आज उनके अनुयायियों में युवाओं की संख्या सर्वाधिक है. विश्व को अचंभित करनेवाले फ्रांसीसी डिजाइनर यूव्ज पेपीन गांधीनगर रहे और स्वामीनारायण के भक्तिभाव से प्रेरित होकर अपनी करोड़ों डॉलर की फीस भी नहीं ली.

उससे बढ़ कर प्रमुख स्वामी जी का योगदान रहा नौजवानों में नशे की लत को छुड़ा कर भगवद् भजन में लगाने का. उनके युवा संन्यासी रवि-सभाओं तथा बीएपीओ (बोचारूण वासी अक्षर पुरुषोत्तम संस्था) द्वारा नगरों-गांवों में हजारों टोलियों द्वारा नशामुक्ति का विशाल अभियान चलाते हैं. धर्मपुर, डांग जैसे जनजातीय क्षेत्रों में वनवासियों की कुटियों में जाकर धर्म प्रसार के साथ-साथ अच्छे जीवन द्वारा आर्थिक विकास का रास्ता दिखानेवाले युवा संन्यासी राष्ट्र प्रेम को भगवद् प्रेम का ही हिस्सा मानते हैं.

स्वच्छ, सुंदर भव्य मंदिर पुजारियों की दक्षिणा और पैसे की छाया से परे शांति और वीतरागी भाव ओढ़े वातावरण उस हिंदू धर्म का सनातन रूप प्रकट करता है, जो हिंदू समाज के संगठन और राष्ट्र के अभ्युदय से जुड़ा है.

दिल्ली के अक्षरधाम का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था और एलके आडवाणी व नरेंद्र मोदी की उसमें महती भूमिका रही. नरेंद्र भाई तो उस समय भी प्रचारक जैसे ही रहते थे. प्रमुख स्वामी के आग्रह पर वे आये और उद्घाटन पूजा में बैठे, तो यह जान कर कि नरेंद्र भाई की जेब में कदाचित पूजा की थाली में चढ़ाने के लिए भी पैसे न हों, प्रमुख स्वामी ने विवेक सागर स्वामी से कह कर चुपचाप नरेंद्र भाई की जेब में पैसे डलवा दिये.

जब गंभीर रुग्णावस्था में प्रमुख स्वामी ने अन्न त्यागा, तो ब्रह्म बिहारी स्वामी ने नरेंद्र भाई को फोन किया. नरेंद्र भाई ने बड़ी आत्मीयता और बालहठ से प्रमुख स्वामी से कुछ-कुछ भाेजन शुरू करने का आग्रह किया, तो ही वे माने. श्रद्धांजलि देते हुए सारंगपुर में अविरल अश्रुधारा बहाते हुए नरेंद्र भाई ने कहा, ‘आखिर अपने पुत्र का आग्रह पिता क्यों नहीं मानता! वे मेरे पिता समान थे.’

प्रमुख स्वामी की अमर्त्य मानस काया भारत के उत्कर्ष हेतु समर्पित संन्यासियों व भक्तों के रूप में सदा जीवित रहेगी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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