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त्वरित पहल जरूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में एक बार फिर सरकार के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा है कि कश्मीर में अमन-चैन की बहाली के लिए हरसंभव कदम उठाये जायेंगे. उन्होंने ‘एकता’ और ‘ममता’ के सूत्र के साथ पहल का भरोसा दिलाया है और हिंसा में हुई मौतों को पूरे […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में एक बार फिर सरकार के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा है कि कश्मीर में अमन-चैन की बहाली के लिए हरसंभव कदम उठाये जायेंगे. उन्होंने ‘एकता’ और ‘ममता’ के सूत्र के साथ पहल का भरोसा दिलाया है और हिंसा में हुई मौतों को पूरे देश का नुकसान बताया है. घाटी में बीते 50 दिनों से अधिक समय से अशांति के दौर चल रहा है.
प्रदर्शनों और कर्फ्यू का सिलसिला जारी है. अब तक 70 लोग मारे जा चुके हैं और घायलों की संख्या हजारों में है. संसद के दोनों सदनों में कई बार चर्चा हो चुकी है और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह दो बार श्रीनगर का दौरा भी कर चुके हैं. दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक भी हो चुकी है और प्रधानमंत्री से जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती मिल भी चुकी हैं. सभी चर्चाओं में इस बात पर जोर दिया गया है कि घाटी में संवाद की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जानी चाहिए. कश्मीर में तैनात सेना के उच्चाधिकारियों ने भी ऐसा ही आह्वान किया है. हालिया कश्मीर यात्रा में केंद्रीय गृहमंत्रीने घोषणा भी की है कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल घाटी का दौरा करेगा और सभी संबद्ध पक्षों से बातचीत की जायेगी.
प्रधानमंत्री ने सहानुभूति के साथ बातचीत के जरिये इस मुश्किल को हल करने की जो बात कही है, उससे यह उम्मीद बंधी है कि घाटी के असंतोष के समाधान के लिए राजनीतिक पहल में अब देरी नहीं होगी. कश्मीर के मुद्दे पर दुनियाभर में दुष्प्रचार करने के पाकिस्तान के ताजा उकसावे पर सरकार और विपक्षी पार्टियों के एक समान प्रतिक्रिया से भी यह संकेत स्पष्ट हैं कि ठोस और सकारात्मक पहल का माहौल तैयार हो रहा है. कश्मीर के लोगों, खासकर युवाओं को विश्वास में लेकर ही शांति स्थापित की जा सकती है और इस क्षेत्र में विकास की योजनाओं को फलीभूत किया जा सकता है. घाटी में सामान्य स्थिति की बहाली ही स्थिरता की गारंटी है और यही पाकिस्तान के नापाक मंसूबों का माकूल जवाब भी है. कश्मीर की समस्या बहुत पुरानी है. ऐसे में किसी त्वरित स्थायी समाधान की आशा उचित नहीं है. लेकिन, किसी ठोस लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता परस्पर संवाद और विश्वास के वातावरण से ही बन सकता है. इसके लिए हिंसा और असंतोष के मौजूदा माहौल को बदलना सबसे जरूरी काम है.
हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल की गतिविधियों या राजनीतिक प्रक्रिया का रोडमैप क्या होगा, लेकिन किसी भी पहल में खुले मन से अलगाववादियों समेत सभी संबद्ध पक्षों से बातचीत करना बुनियादी तत्व होना चाहिए. कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने का मतलब यही है कि हर तरह के विचार रखनेवाले कश्मीरियों के साथ तमाम तल्खियों के बावजूद अपनेपन की भावना रखते हुए बात की जाये और माहौल को बेहतर बनाया जाये.
इसी बीच जम्मू-कश्मीर में नये राज्यपाल की नियुक्ति की चर्चाएं भी गर्म हैं. मौजूदा राज्यपाल एनएन वोहरा ने 2008 में राज्यपाल का कार्यभार संभाला था, जब राज्य में लंबे समय तक अशांति व्याप्त थी. आज की परिस्थिति में अगर नये राज्यपाल की नियुक्ति होती है, तो यह निश्चित रूप से राज्यपाल बनाने की सामान्य परिपाटी से अलहदा मामला है. इस परिघटना को अन्य राज्यों में राज्य प्रमुख की नियुक्ति के समान नहीं माना जा सकता है. यदि सरकार नये राज्यपाल की नियुक्ति करने जा रही है, तो उसे कुछ बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए. कई दशकों से ऐसा देखा जाता है कि अशांत राज्यों में सेना, खुफिया एजेंसियों और नौकरशाही से सेवानिवृत्त व्यक्तियों को राज्यपाल बना दिया जाता है. किसी भी राजनीतिक विश्लेषण से यह सिद्ध नहीं किया जा सकता है कि ऐसी नियुक्तियों से शांति बहाली और सुरक्षा का माहौल बनाने में अनिवार्य रूप से मदद मिलती है.
जम्मू-कश्मीर का अनुभव भी यही इंगित करता है. वर्ष 1989-90 से अब तक के दौर में सभी राज्यपाल इन्हीं पृष्ठभूमियों से रहे हैं. दूसरी ओर, पंजाब और उत्तर-पूर्व में 1980 के दशक की अस्थिरता से निजात पाने में उन राज्यपालों की अहम भूमिका रही है जो राजनीतिक अनुभव और दक्षता से परिपूर्ण थे. आज जब घाटी के रोष को नरम करने के लिए राजनीतिक पहलों की बात हो रही है, तो राज्यपाल की नियुक्ति के अवसर को भी सकारात्मक संकेत के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है. ऐसे व्यक्ति को यह उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिए जिसकी छवि उदारवादी हो और जो हर तबके साथ बेहतर संबंध स्थापित कर राजनीतिक प्रक्रिया को गति प्रदान कर सके.
इस महती भूमिका के लिए अनुभवी और क्षमतावान राजनीतिक व्यक्तित्व ही सही चयन हो सकता है, जिसमें निर्णय ले पाने का साहस भी हो और जो किसी पूर्वाग्रह के बिना बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ने की यात्रा को नेतृत्व दे सके. उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार इन सभी पहलुओं पर गौर करते हुए समुचित राजनीतिक प्रक्रिया को बिना किसी देरी प्रारंभ करेगी.

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