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पीएम का अफ्रीका दौरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चार अफ्रीकी देशों- मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या- का दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब अर्थव्यवस्था के विकास की जरूरतों के मद्देनजर भारत और अफ्रीकी देशों के पास एक-दूसरे को देने के लिए काफी कुछ हैं. ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें भारत की महारत और अफ्रीकी देशों के […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चार अफ्रीकी देशों- मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या- का दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब अर्थव्यवस्था के विकास की जरूरतों के मद्देनजर भारत और अफ्रीकी देशों के पास एक-दूसरे को देने के लिए काफी कुछ हैं. ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें भारत की महारत और अफ्रीकी देशों के संसाधन एक-दूसरे के लिए पूरक बन सकते हैं और इस लिहाज से ये चारों देश ‘गेटवे’ माने जा रहे हैं.
अधिकारिक घोषणा के मुताबिक व्यापार और निवेश, कृषि और खाद्य पदार्थों का व्यापार, हाइड्रोकार्बन और समुद्री सुरक्षा आदि सहयोग के ऐसे क्षेत्र हैं, जो प्रधानमंत्री के गुरुवार से शुरू हो रहे दौरे के केंद्र में रहेंगे.
अफ्रीकी देशों के साथ राजनीतिक स्तर पर सहकार-संवाद का कोई अवसर हो, तो दो बातों का जिक्र अकसर होता है. एक तो यह कि अफ्रीका के साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं. औपनिवेशिक शक्तियों के भारत और अफ्रीका में पहुंचने से सदियों पहले भारत के पश्चिमी तट और अफ्रीका के पूर्वी तट के बीच व्यापार फल-फूल रहा था. दूसरी यह कि अफ्रीका से उपनिवेशवाद और रंगभेद की समाप्ति के प्रयासों में भारत सबसे आगे रहा है और लाखों भारतवंशी अफ्रीकी देशों में रहते हैं. अब पीएम के दौरे के मौके पर भी विश्लेषक इन बातों को याद कर रहे हैं.
हालांकि अफ्रीकी देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक जुड़ाव को याद करना इस समय भले प्रासंगिक हो, यह बात भी नोट की जानी चाहिए कि बीसवीं सदी के आखिरी दो दशकों में अफ्रीकी देशों के साथ जुड़ाव को मजबूत करने की दिशा में भारत ने विशेष प्रयास नहीं किये थे. भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी 1982 में मोजाम्बिक गयी थीं और उससे एक साल पहले 1981 में केन्या. अब साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का इन देशों का दौरा हो रहा है.
जाहिर है, यह भारत के लिए दुनियाभर में उपलब्ध रणनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक अवसरों को नये सिरे से संवारने के प्रधानमंत्री के विजन के अनुकूल है. महत्वपूर्ण यह भी है कि यह दौरा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के हालिया अफ्रीका दौरे के बाद हो रहा है.
प्रधानमंत्री का दौरे की कामयाबियों के बारे में कुछ अनुमान अभी से लगाये जा सकते हैं, क्योंकि इस संबंध की आधारशिला भारतीय विदेश नीति के भीतर काफी पहले रखी जा चुकी थी. अफ्रीकी मुल्कों के साथ तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के नाम से एक पहल 1960 के दशक में ही की जा चुकी है. इस पहल के जरिये अफ्रीकी देशों में मानव-संसाधन के विकास में भारत सहयोगी रहा है. फिर, 2008 से इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट का आयोजन हो रहा है.
यह फोरम स्थापना के बाद से ही भारत और अफ्रीकी देशों के बीच आर्थिक-व्यापारिक सहयोग के नये रास्ते खोल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नयी दिल्ली में आयोजित तीसरे इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट में पहली बार अफ्रीका के सभी 54 देशों के प्रमुखों के साथ-साथ अफ्रीकन यूनियन के प्रेसिडेंट को भी आमंत्रित किया था. इस अत्यंत महत्वपूर्ण वैश्विक आयोजन के दौरान भारत और अफ्रीकी देशों के बीच अगले पांच वर्षों के दौरान सहयोग बढ़ाने के लिहाज से कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गयी थीं.
इन दो महत्वपूर्ण औपचारिक नीतिगत पहलों के अतिरिक्त अफ्रीकी देशों के साथ भारत के जुड़ाव के पीछे चार अन्य बातें भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. पहली, वैश्विक मंच पर उभरने का भारत का स्वप्न अफ्रीकी देशों को साथ लेकर ही साकार किया जा सकता है.
ऐसे वक्त में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थायी सीट के लिए भारत प्रयासरत है, 50 से ज्यादा अफ्रीकी देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं. दूसरी, अफ्रीकी महादेश के किसी भी मुल्क के साथ या फिर इस महादेश के देशों के किसी भी समूह के साथ भारतीय हितों को कोई प्रत्यक्ष टकराव नहीं है, जो इन देशों के साथ संबंध बेहतर करने के लिहाज से सहायक है.
तीसरी, भारत के अनेक भूभाग तथा बहुत से अफ्रीकी देशों के सामाजिक-आर्थिक हालात तकरीबन एक जैसे हैं, इसलिए आपसी सहयोग से अफ्रीकी देश और भारत एक-दूसरे से काफी कुछ सीख सकते हैं. इस क्रम में चौथी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण, बात यह है कि जैसे भारत को तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में गिना जा रहा है, वैसे ही तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में 10 अफ्रीकी देश भी शामिल है, जिनमें मोजाम्बिक भी है. प्रधानमंत्री के दौरे से पहले केंद्रीय कैबिनेट ने मोजाम्बिक में भारत की ओर से दाल उत्पादन के लिए करार को मंजूरी दी है.
इसके तहत भारत सरकार मोजाम्बिक में दाल उत्पादन को वित्तीय सहायता देने के साथ-साथ वहां उत्पादित पूरी दाल खरीदेगी. उल्लेखनीय है कि भारत में दालों की लगातार बढ़ती कीमतें सरकार के लिए सिरदर्द साबित होती रही हैं. वित्त वर्ष 2015-16 में भारत में दालों का कुल उत्पादन 1.7 करोड़ टन हुआ, जबकि 57.9 लाख टन आयात करना पड़ा. इसके अलावा मोजाम्बिक प्राकृतिक गैस का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है. इस क्षेत्र में ओएनजीसी सहित कई भारतीय कंपनियों ने वहां भारी निवेश किया है.
प्रधानमंत्री अपने दौरे के दौरान अफ्रीकी देशों में रह रहे भारतीय मूल के कारोबारियों एवं अन्य लोगों को भी संबोधित करेंगे. उम्मीद करनी चाहिए कि यह दौरा अफ्रीका के साथ भारत के सहकार को एक नयी ऊंचाई प्रदान करने में मददगार होगा.

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