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कहां गये अच्छे दिन?
दो साल पहले जिस पार्टी ने बड़े-बड़े विज्ञापनों द्वारा पूरे भारत में अच्छे दिन लाने का वादा किया था, उसने सरकार में दो वर्ष पूरे कर लिये हैं, लेकिन पूरे देशभर में कही भी अच्छे दिनों की सुगबुगाहट नहीं है. आम आदमी को सपना दिखाया गया कि अगर हमें आप सत्ता में आने का मौका […]
दो साल पहले जिस पार्टी ने बड़े-बड़े विज्ञापनों द्वारा पूरे भारत में अच्छे दिन लाने का वादा किया था, उसने सरकार में दो वर्ष पूरे कर लिये हैं, लेकिन पूरे देशभर में कही भी अच्छे दिनों की सुगबुगाहट नहीं है.
आम आदमी को सपना दिखाया गया कि अगर हमें आप सत्ता में आने का मौका देते हैं तो हम आपके तमाम दुःख-दर्द दूर कर देंगे, देश को महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को आते ही खत्म कर देंगे़ आम जनता वैसे ही पूर्व सरकार की मार से त्रस्त थी, उन्हें लगा कि यह सरकार हमारे जख्म भरेगी, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं.
आज भी लोगों को अच्छे दिनों की आस है. सरकार में आते ही अपने सारे वादे भूल कर कड़वी दवाई की बातें की जाने लगी़ आखिर कड़वी दवाई हमेशा आम आदमी को ही क्यों पीनी पड़ती है? त्याग हमेशा आम जनता को ही क्यों करना पड़ता है? चाहे आज के हालात कुछ भी हों, लेकिन एक सीख तो जरूर मिली है कि कभी भी विज्ञापनों के झांसे में न आयें.
सुमंत चौधरी, जमशेदपुर
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