-हरिवंश-
इन सभी चीजों में बंगाल की शिक्षण संस्थाओं का अद्भुत योगदान रहा. लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी कलकत्ता यूनिवर्सिटी पूरे देश की बौद्धिक रहनुमाई का सेंटर बनी. नये विचारों के फैलाव का केंद्र.1977 में वामपंथ, बंगाल में सत्तारूढ़ हुआ. आज 32 वर्षों बात भी वह अभेद्य है. पर अब हालात बदले हैं. बुद्धदेव बाबू की छवि अच्छी है. वह ईमानदार हैं. उनकी गुडविल है. उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र में बंगाल की खोयी गरिमा लाने की ईमानदार कोशिश भी की.
फिर भी वाम मोर्चा उतार पर है. तटस्थ समीक्षक कहते हैं, बंगाल में वाम मोर्चा के सांसद अप्रत्याशित रूप से कम होंगे. कहां और कैसे चूका, यह वामपंथ, यह समझने के लिए राजनीति से अधिक, प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर संतोष भट्टाचार्य की पुस्तक मदद करती है. पुस्तक का नाम है ‘रेड हैमर ओवर कलकत्ता यूनिवर्सिटी’ (कलकत्ता विश्वविद्यालय पर लाल हथौड़ा). लगभग 700 पेजों की पुस्तक है. हार्ड बाउंड है. पुस्तक छापा है ‘द स्टेट्समैन’ अखबार ने. कीमत है 595 रूपये.
अनेक महत्वपूर्ण सरकारी समितियों में रहे. पर इससे भी महत्वपूर्ण परिचय उनका है कि वह छात्र जीवन में कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के ‘होल टाइमर’ (24 घंटे के समर्पित)काडर थे. बाद में भी कम्युनिस्ट पार्टी से भावनात्मक रूप से जुड़े रहे. पर तीखे अुनभवों के बाद, इस विचारधारा से अपना नाता तोड़ लिया. उन्होंने भूमिका में लिखा है, जब हम युवा थे, तो एडगर स्नो की मशहूर पुस्तक ‘रेड स्टार ओवर चाइना’ से हमारी पीढ़ी और हम सम्मोहित थे.
क्रांति के लिए कम्युनिस्टों के बलिदान का सार्वजनिक वर्णन. पर बाद में कम्युनिस्ट शासन में चीन में हुए जुल्म और बही खून की नदी के दस्तावेजों से वे अवगत हुए, तो उनका मोह भंग हुआ. तब प्रो भट्टाचार्य को लगा कि ‘पीपुल्स पावर’ (लोक शक्ति) के नाम पर जनता पर ‘रेड हैमर’ (लाल हथौड़ा) चला. जुल्म और उत्पीड़न का यह अध्याय, दुखों से भरा महाकाव्य है. फिर वह कहते हैं कि एडगर स्नो से क्षमा सहित इस पुस्तक के नाम में भी ‘रेड हैमर’ शब्द है क्योंकि ‘रेड हैमर’ काल और देश की भिन्नता के साथ बंगाल में भी हुआ. मूलत: कलकत्ता विश्व विद्यालय में कम्युनिस्टों ने अपने शासन में क्या किया, यह किताब इसका दस्तावेज है. एक जानेमाने प्राध्यापक व अर्थशास्त्री द्वारा लिखित, एक वाइसचांसलर के प्रत्यक्ष अनुभव.
योग्यता की जगह अन्य तत्वों को तरजीह दी. स्तरीय गुणवत्ता के साथ समझौता. राजनीतिक लाभ से प्रेरित कदम उठाये जाने लगे. हर स्तर पर हस्तक्षेप. नियम-कानूनों का मजाक. नियुक्तियों के आदेश. विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कामों में पग-पग पर हस्तक्षेप. इस तरह एक श्रेष्ठ संस्थान मीडियॉकर (अतिसामान्य) बना दिया गया. यहां तक की अंग्रेजों के शासन में भी 1947 तक इसमें दुनिया के विशिष्ट लोग थे. प्रो नीलरतन सरकार, प्रो भूपेंद्रनाथ बोस, जदुनाथ सरकार, आशुतोष मुखर्जी जैसे लोग वाइसचांसलर रहे.
देश का नाम दुनिया में रोशन करनेवाले अध्यापक यहां रहे. प्रो जगदीशचंद्र बोस, प्रो सी वी रमण, प्रो प्रफुल्लचंद्र राय, डॉ गणेश प्रसाद, प्रो सत्येंद्रनाथ बोस, प्रो मेगानंद साहा, डा अवनींद्रनाथ टैगोर, सर्वपल्ली राधाकृष्णनन वगैरह. राजेंद्र प्रसाद और सुभाषचंद्र बोस जैसे विद्यार्थी रहे. यहां से निकले लोगों ने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी, रहनुमाई की.
इस तरह कलकत्ता विश्वविद्यालय का एकेडमिक वर्ल्ड, ‘रेड हैमर’ के नीचे आ गया. विश्वविद्यालय में चुनी गयी प्रशासकीय इकाई अचानक बरखास्त कर दी गयी. नॉमिनेटेड काउंसिल बनी. इस काउंसिल में सत्तारूढ़ पार्टी के लोग और उनके सहयोगी थे. लेखक कहते हैं कि यह स्टालिन की डेमोक्रेसी थी. प्रो संतोष भट्टाचार्य जब वाइसचांसलर बने, तो सरकार और पार्टी ने कैसे उनका काम करना बंद करा दिया, इसके सारे कागजात और दस्तावेज इस पुस्तक में संकलित किये गये हैं.
‘द गॉड दैट फेल्ड’ दुनिया की अत्यंत चर्चित पुस्तकों में से रही है. 1949 में यह पुस्तक छपी थी. इस पुस्तक को उन लोगों ने लिखा जो पहले कट्टर साम्यवादी थे, जिन्होंने इसमें मानव मुक्ति का सपना देखा था. पर साम्यवाद की असलियत देखकर जिनका मोह भंग हो गया. इस पुस्तक का संपादन किया था ब्रिटेन के रिचर्ड क्रॉसमैन ने. इस पुस्तक में दुनिया की छह जानीमानी हस्तियों ने अपने अनुभव लिखे. लुइस फिशर, आंद्रे गिडे, आर्थर कोसलर, इगनेजियो सिलोन, सिटेफन स्पेंडर और रिचर्ड राइट.