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कैराना कस्बे का क्लेश
रोजी-रोजगार की तलाश में ग्रामीण या कस्बाई इलाके से शहरों की ओर पलायन आज देशभर में सामान्य घटना है. विकास की मौजूदा राह की यह एक कड़वी हकीकत है. हां, कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां अपराध बढ़ने और रंगदारी से परेशान होकर कारोबारियों का पलायन तेज हुआ है. कुछ न्यूज चैनलों की पड़ताल बताती […]
रोजी-रोजगार की तलाश में ग्रामीण या कस्बाई इलाके से शहरों की ओर पलायन आज देशभर में सामान्य घटना है. विकास की मौजूदा राह की यह एक कड़वी हकीकत है. हां, कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां अपराध बढ़ने और रंगदारी से परेशान होकर कारोबारियों का पलायन तेज हुआ है. कुछ न्यूज चैनलों की पड़ताल बताती है कि पलायन की खबरों के साथ सुर्खियों में छाये पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना कस्बे का सच भी इन्हीं तथ्यों में छिपा है
लेकिन, इसे लेकर जारी राजनीतिक बयानबाजियों पर गौर करें तो मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें साफ नजर आती हैं. यहां से हिंदू आबादी के पलायन के किस्से में यह जिक्र नहीं आता है कि कैराना मानव विकास के सूचकांकों के लिहाज से पिछड़ा कस्बा है. वहां साक्षरता दर (47 फीसदी) यूपी की औसत साक्षरता दर (67 फीसदी) से बहुत कम है.
दरअसल, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी से जूझ रहे समाज को धार्मिक आधार पर गोलबंद करना चुनावी राजनीति का पुराना नुस्खा रहा है. चूंकि रोजमर्रा की मुश्किलों से जूझ रहे आम जन के लिए उसे हाशिये पर धकेलते जा रहे व्यवस्थागत कारणों को खोजना-समझना मुश्किल होता है, सो वह राजनेताओं के बयानों के आधार पर गैर-मजहबियों को अपने दुखों का कारण मान कर उनके प्रति वैमनस्य भाव पालने लगता है.
जिन जगहों पर दंगों की स्मृति ज्यादा पुरानी न हो, वहां ऐसा करना और भी आसान होता है. सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के लिहाज से कैराना की परिस्थितियां आदर्श कही जा सकती हैं. मसलन, यह कस्बा उसी मुजफ्फरनगर जिले का हिस्सा है, जहां लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों ने दंगे भड़कने की स्थितियां पैदा की, इसलिए दंगे की स्मृतियां ताजा है.
दूसरा, कैराना मुसलिम बहुल कस्बा है. पिछली जनगणना के मुताबिक, यहां की 89 हजार की आबादी में हिंदू करीब 30 फीसदी हैं. ऐसे में इस आबादी को यह बताना आसान है कि तुम्हारे दुखों का कारण तुम्हारा पड़ोसी गैरमजहबी समुदाय है. इस विचार को तूल देने के लिए ही कैराना की हिंदू आबादी के पलायन के किस्से को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है और कुछ नेता आग उगलती बयानबाजियों से माहौल को जहरीला बना रहे हैं.
राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे वोट के लिए सांप्रदायिक विषवमन की बजाय समाज में शांति और सौहार्द की स्थापना में योगदान दें. इससे पहले कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश फिर से दंगों के दावानल में जले, राज्य सरकार को चाहिए कि धार्मिक मनभेद पैदा करने की कोशिशों पर लगाम लगाने और इलाके में अपराध नियंत्रण के लिए त्वरित एवं गंभीर प्रयास करे.
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