।। चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)
भिंगू के पिछवाड़े जोरदार सुट्कुनी लगी और वह छिऊछिआयं के जोर से भागा. उसके साथ के सारे हमउम्र बच्चे भी भागे, जो चौराहे पर प्लास्टिक जला कर हाथ सेंक रहे थे. उमर दरजी ने सुट्कुनी वहीं फेंक दिया और आ गये चिखुरी के पास. क्या देखते हैं कि भिंगू की माई गरियाती हुई उमर दरजी के अब्बा मरहूम तक को ‘बखानते’ चौराहे तक आ खड़ी हुई. उसने जब चिखुरी वगैरह को देखा, तो जबान संभली और घूंघट एक इंच आगे बढ़ गया. चिखुरी से शिकायत की- बाबू! उमर बे वङो.. लाल्साहेब ने बीच में ही रोका- उमर के कुकुर ना काटे है कि बे वङो किसी को मारत घूमी. बीस बार इन लौंडों को समझाया कि प्लास्टिक मत जलाओ, इसका धुआं बहुत खतरनाक होता है, पर ससुरे सुनते नहीं. भिंगू की मां के लिए यह बिलकुल नयी बात रही. अखा केवटान, जोलहटी घर-घर प्लास्टिक जलाके उस पर ओद लकड़ी रखके चूल्हा जलाते हैं.. लाल्साहेब ने घुड़का-जहर से भी ज्यादा खतरनाक है. भिंगू की माई समझी कि नहीं, लेकिन इतना समझ गयी कि अब जदी भिंगुआ प्लास्टिक जलाया तो मार फिर खायी. चुनांचे बुदबुदाते हुए चली गयी. कयूम ने अड़ी दिया- तो जनाबेआली! प्लास्टिक इस कदर जहाबुर्ता है?
-जहरबुता ही नहीं, ऊपरवाले से भी ज्यादा उम्र है ससुरे प्लास्टिक की. न सड़ता है न गलता है बस जस क तस बना रहता है. कई पीढ़ी बाद इसे खोद कर निकालो ठीक वैसै टटका मुंह बाये हंसता हुआ मिलेगा.
तो इसे बनाया किसने? और इ ससुरा गांव में कैसे परच गया? लखन कहार का सवाल कटी पतंग की तरह नीम की फुनगी पर जा अटका. किसी को नहीं मालूम कि इसकी खोज किसने की. लेकिन एक बात से सब मुतमईन रहे कि सैकड़ों साल हुए गांव ने कोई खोज नहीं की है, बल्कि जो पुरखा-पुरनिया दे गये थे, हमने उसे भी गंवा दिया. हमारे गांव की खोज हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे, बिना कोई नुकसान किये. लेकिन आज सब एक-एक कर बिला रहा है. ‘पुरवट’ से खेत की सिंचाई होती रही. आज पुरवट गायब है और उसके साथ बीसियों शब्द गायब हैं. नार, मोट, जुआ, सैल, धुरी, गड़ारी.. हम भाषा में दरिद्र तो हुए ही, भिखारी भी बना दिया है इस शहर ने. अब पानी की कीमत देनी होती है, क्योंकि शहर ने पंपिंग सेट की खोज कर ली है.. भइये, हम खंदक में जा रहे हैं.
शहर ने प्लास्टिक पर रोक लगा दिया है. शहर में नहीं बिकेगा, लेकिन प्लास्टिक बनेगा जरूर. कम्बख्त तुम्हारा निजाम क्या है? प्लास्टिक पर प्रतिबंध, लेकिन प्लास्टिक की फैक्ट्री को लाइसेंस? और वह कचड़ा ससुरा आकर गिरेगा गांव में? चिखुरी अपनी रौ में थे. नवल ने टोका- तो एकर इलाज बताया जाये? हम खुदै परेशान अही ससुरा प्लास्टिक से. परसों क किस्सा बतायीं..झूलन मिसिर के घर तिलक रहा. खूब खर्च भवा. पर बर्तन में गिलास, पत्तल, दोना..सब प्लास्टिक क. हमरे घर से उनका खाब-दाना बंद है. पूरा दुआर प्लास्टिक से भरि गा. जब भी पुरवईया चली सब दोना-पत्तल उड़के हमरे दरवाजे.. जब बोला तो जवाब मिला-हवा हमरे घर में ना बनत.. अब बताओ. मजा मारे गाजी मियां औ धक्का सहें मुजावर? चिखुरी काका एकर इलाज बताव?
इसका एकै इलाज है, गांव भर बैठ के फैसला करो..बाईकाट. प्लास्टिक क कोइ भी समान हम इस्तेमाल नहीं करेंगे. और जिन दुकानों पर ये समान जैसे पन्नी, गिलास, दोना, पत्तल बिकता है उनसे कहा जाये कि इसे बेचना बंद कर दो. बस. अगर ना माना तो? उमर का सवाल वाजिब था, लेकिन चिखुरी का जवाब और भी माकूल- दुकानदार को बोल दिया जाये कि भाई अगर तुमने प्लास्टिक बेचा, तो दूसरे दिन इस्तेमाल किया हुआ सारा सामान तुम्हारे दरवाजे पर होगा. बस तब देखो मजा. और अगर बीच में पुलिस आयी तो? यह सवाल नवल उपाधिया की तरफ से था. जवाब मुस्कुराते हुए कयूम मियां ने दिया- बेटवा नवल! एसई समय के लिए तो हम तोहरी माई के बिआह के ले आय रहे. नवल समझ गये और हंसते हुए वहां से खिसक जाने में ही भलाई समङो.
सुना है कल बरगद के नीचे पूरा गांव इकट्ठा हो रहा है. सलीम पूरे गांव में डुग्गी पीटेंगे. लेकिन उसका रिहल्सल चौराहे पर हो रहा है. सुना जाय, गांव के हर बासिंदे को यह इत्तला दी जाती है कि कल सब लोग औरत, मर्द, बच्चे बरगत तले दोपर में इकट्ठा हों. कल वहीं पर प्लास्टिक की होली जलेगी और लोगों का मुंह मीठा कराया जायगा..
अबे, ये मुंह की बात कहां से आ गयी? लाल्साहेब ने अंदाज लगा लिया कि सलीम की निगाह हमारे गुड़ पर लगी है, इसीलिए ससुरा यह बेतुकी बात हियां ला रहा है. उमर ने लाल्साहेब को चुटकी काटी- तो क्या गांव वाले मुंह घर पे रख कर आयेंगे? अब देखना है कल क्या होता है..