दिल्ली जैसी जगह में जहां विश्वविद्यालय के चुनाव में भी पैसा और शराब हावी रहती हो, वहां ‘आप’ की जीत पर सहसा विश्वास नहीं होता. जहां एक ओर नेताओं के भाषण सुनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे थे, वहीं अरविंद केजरीवाल चंद रुपये खर्च कर प्रचार कर रहे थे. एक ओर मोदी जी का मुखौटा लगा कर प्रचार हो रहा था, तो दूसरी ओर आम आदमी अपने चेहरे को केजरीवाल का चेहरा मान कर प्रचार कर रहा था.
केजरीवाल की पार्टी पर सभी ने मिल कर आरोप लगाये, किंतु ‘सत्यमेव जयते’ वाली बात ठीक निकली. ऐसा नहीं है कि मीडिया के लोग अनुरंजन झा को नहीं जानते थे, लेकिन चैनलवाले तो ब्रेकिंग न्यूज के भूखे हैं, सो उनके स्टिंग ऑपरेशन को बिना जांचे-परखे चुनाव से पहले चला दिया. यदि ऐसा नहीं हुआ होता, तो आज केजरीवाल बहुमत में होते. अच्छी बात है कि राहुल जी ने सच स्वीकार किया, नहीं तो उनकी पार्टी केजरीवाल को खारिज करने में ही लगी थी. वैसे, राहुल जब सक्रिय राजनीति में आये, तो उनके आह्वान पर कुछ दिन तक युवा गांधी टोपी लगा कर ‘आम आदमी का सिपाही’ बन कर घूमते रहे. लेकिन यह योजना फ्लॉप हो गयी.
राहुल जी के इसी कांसेप्ट को केजरीवाल अपना कर देश के हीरो बन गये. राहुल जी के बयान से ऐसा लगता है कि आने वाले समय में कांग्रेस में आमूल चूल परिवर्तन होगा. भाजपा चार राज्यों में जीत से उत्साहित है. मुख्तार अब्बास नकवी जैसे उसके बड़बोले नेता केजरीवाल की पार्टी को ‘आम अमरूद पार्टी’ बताने में लगे हैं. वे भूल रहे हैं कि ‘आप’ के लिए संभावना पूरे देश में है. इसके अलावा, विभिन्न राज्यों में भी तीसरी ताकतें मौजूद हैं जो 2014 में भाजपा की राह रोक सकती हैं.
राजेश ठाकुर, रांची