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बढ़ती जनसंख्या से लाभ लीजिए

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्‍त्री 2010 के बाद चीन की विकास दर कम होने का कारण कार्यरत वयस्कों की घटती आबादी है. श्रमिकों की संख्या कम होने से वेतन और उत्पादन लागत बढ़ेगी, जिससे चीन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जायेगा. ऐसा ही परिणाम दूसरे देशों के अनुभव से मिलता है. चीन की सरकार कर्मचारियों […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

अर्थशास्‍त्री

2010 के बाद चीन की विकास दर कम होने का कारण कार्यरत वयस्कों की घटती आबादी है. श्रमिकों की संख्या कम होने से वेतन और उत्पादन लागत बढ़ेगी, जिससे चीन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जायेगा. ऐसा ही परिणाम दूसरे देशों के अनुभव से मिलता है.

चीन की सरकार कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने का विचार कर रही है. फिलहाल सामान्य महिला कर्मी 50 वर्ष, महिला सिविल सर्वेट 55 वर्ष और पुरुष 60 वर्ष की उम्र पर रिटायर करते हैं. श्रमिकों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ा कर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव है. चीन ने सत्तर के दशक में एक संतान की पॉलिसी अपनायी थी. नियम की अनदेखी करने पर भारी फाइन लगाया जाता और न देने पर गर्भपात करा दिया जाता था. चीन को इसका लाभ भी मिला है.

1950 से 1980 के बीच वहां लोगों ने अधिक संख्या मे संतान उत्पन्न की थी. 1990 के आसपास यह आबादी कार्य करने लायक हो गयी. इनकी ऊर्जा संतानोत्पत्ति के स्थान पर धनोपार्जन करने में लग गयी. इस कारण 1990 से 2010 तक चीन की आर्थिक विकास दर अप्रत्याशित रूप से 10 प्रतिशत की रही.

2010 के बाद हालात बदले. 1980 के बाद संतान कम उत्पन्न होने के चलते 2010 के बाद कार्यक्षेत्र में प्रवेश करनेवाले वयस्कों की संख्या घटने लगी. उत्पादन में हो रही वृद्धि में ठहराव आ गया. साथ ही, बुजुर्गो को संभालने का बोझ बढ़ता गया और इसे वहन करनेवालों की संख्या घटने लगी. कई परिवारों में एक कार्यरत व्यक्ति को दो पेरेंट्स और चार ग्रेंडपेरेंट्स की देखभाल करनी होती है. नागरिकों की ऊर्जा उत्पादन के स्थान पर वृद्धों की देखभाल में लगने लगी.

विश्‍लेषकों के मुताबिक, 2010 के बाद चीन की विकास दर कम होने का कारण कार्यरत वयस्कों की घटती आबादी है. कार्यरत वयस्कों की संख्या मौजूदा 98 करोड़ से घट कर 2050 में 71 करोड़ होने का अनुमान है. श्रमिकों की संख्या कम होने से वेतन और उत्पादन लागत बढ़ेगी, जिससे चीन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जायेगा. ऐसा ही परिणाम दूसरे देशों के अनुभव से सत्यापित होता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलेंड के प्रोफेसर जुलियन साइमन बताते हैं कि हांगकांग, सिंगापुर, हॉलैंड और जापान जैसे जनसंख्या-सघन देशों की आर्थिक विकास दर अधिक है, जबकि विरल आबादी वाले अफ्रीका में आर्थिक विकास दर धीमी है. सिंगापुर के प्रधानमंत्री के अनुसार जनता को अधिक संख्या में संतान उत्पन्न करने को प्रेरित करना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.

उनकी सरकार ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, हाउसिंग अलाउन्स तथा पैटर्निटी लीव में सुविधाएं बढ़ायी हैं. दक्षिण कोरिया ने दूसरे देशों से आप्रवासन को बढ़ावा दिया है. इंगलैंड के सांसद केविन रुड ने कहा है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यदि आप्रवासन को बढ़ावा दिया गया होता, तो इंग्लैंड की विकास दर न्यून रहती. जबकि यूएन पोपुलेशन फंड के मुताबिक, आबादी ज्यादा होने से बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पाती. इससे उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है.

यह तर्क सही नहीं है. शिक्षा मुहैया कराने के लिए आबादी घटाने के बदले अनावश्यक खपत को रोका जा सकता है. देश में शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा मात्र से उत्पादन में वृद्धि नहीं होती है. संयुक्त राष्ट्र का तर्क है कि बढ़ती आबादी से जीवन स्तर गिरता है. मैं इससे सहमत नहीं. लोग यदि उत्पादन में रत रहें, तो जीवन स्तर सुधरता है. समस्या लोगों को रोजगार दिलाने की है, न कि जनसंख्या की अधिकता की.

जनसंख्या के आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए चीन सरकार दो कदमों पर विचार कर रही है. श्रमिकों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी जाये और एक संतान पॉलिसी में कुछ ढील दी जाये.

अब तक केवल वे दंपती दूसरी संतान उत्पन्न कर सकते थे, जिनमें पति और पत्नी दोनों ही अपने पेरेंट्स की अकेली संतान थे. अब इसमें छूट दी गयी है. वे दंपती भी दूसरी संतान पैदा कर सकेंगे, जिनमें पति अथवा पत्नी में कोई एक अपने पेरेंट्स की अकेली संतान थी.

चीन के साथ-साथ भारत को भी समझना चाहिए कि आबादी सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा. जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले. आबादी सीमित करने के पक्ष में एक तर्क पर्यावरण का है. बिजली, पानी, अनाज आदि मुहैया कराने की धरती की सीमा है.

इस समस्या का दो समाधान हो सकता है. पहला यह कि जनसंख्या सीमित कर दी जाये. लेकिन यह उपाय कारगर नहीं होगा, चूंकि मौजूदा आबादी की बढ़ती खपत का बोझ बढ़ता जायेगा. दूसरा उपाय है कि हम कम खपत में उन्नत जीवन स्थापित करने का प्रयास करें. जीवन-स्तर का मूल्यांकन खपत के स्थान पर चेतना के विकास से करें, तो समस्या का समाधान हो सकता है.

तब जनसंख्या अधिक, खपत कम और चेतना उन्नत का टिकाऊ संयोग स्थापित हो सकता है. पर्यावरण पर बढ़ते बोझ को सादा जीवन अपना कर मैनेज करना चाहिए. आज अपने देश के अनेक विद्वान बढ़ती जनसंख्या को अभिशाप मानते हैं. चीन के अनुभव को देखते हुए हमें इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.

Prabhat Khabar Digital Desk
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