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दहशतगर्दी की इंतहा
रविवार की शाम पाकिस्तान के लाहौर में हुए फिदायीन हमले में मरनेवालों की संख्या 70 से अधिक हो चुकी है, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं. तकरीबन 400 घायलों का इलाज शहर के विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से संबद्ध गिरोह जमात-उल-अहरार ने हमले की जिम्मेवारी लेते हुए अल्पसंख्यकों और शैक्षणिक संस्थाओं […]
रविवार की शाम पाकिस्तान के लाहौर में हुए फिदायीन हमले में मरनेवालों की संख्या 70 से अधिक हो चुकी है, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं. तकरीबन 400 घायलों का इलाज शहर के विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से संबद्ध गिरोह जमात-उल-अहरार ने हमले की जिम्मेवारी लेते हुए अल्पसंख्यकों और शैक्षणिक संस्थाओं को निशाना बनाने की धमकी भी दी है.
कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम कसने के लिए पाकिस्तानी सरकार और सेना की सक्रियता के बावजूद दहशतगर्दी और अतिवादी गतिविधियां बदस्तूर जारी हैं. शनिवार को इसलामाबाद हवाई अड्डे पर गायक और धर्म-प्रचारक जुनैद जमशेद के साथ कथित ईश-निंदा के लिए मार-पीट की गयी, तो रविवार को पंजाब के पूर्व गवर्नर उदारवादी सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी के हजारों समर्थकों ने पूरे शहर में हिंसक प्रदर्शन किया. कादरी को फरवरी में फांसी दी गयी थी. इन घटनाओं से यही जाहिर होता है कि देश में अतिवाद का जोर बाकी है. दशकों से पाकिस्तानी शासन और सेना के बड़े तबके की नीति अफगानिस्तान और भारत में अस्थिरता फैलाने की रही है. इस कारण चरमपंथी तत्व धार्मिक और सामाजिक रूप से काफी प्रभावशाली हैं.
आतंकी गुटों के अलावा ऐसे अनेक सामाजिक और धार्मिक संगठन पाकिस्तान में हैं, जो खुलेआम अल्पसंख्यकों, इसलाम के अन्य संप्रदायों को माननेवालों, उदारवादियों, लोकतंत्र-समर्थकों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले की वकालत करते हैं. कादरी-समर्थकों ने मांग की है कि बहुसंख्यक तबके के लोगों को विशेषाधिकार दिये जायें और अल्पसंख्यकों की संस्थाओं पर पाबंदी लगायी जाये.
परंतु, पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक दबाव के कारण पाकिस्तानी सरकार के रुख में सकारात्मक बदलाव आया है तथा आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जा रही है. इन प्रयासों के लिए पाकिस्तानी सरकार और सेना की वैश्विक स्तर पर सराहना भी हुई है.
लाहौर हमले के बाद भारत समेत दुनिया के विभिन्न देशों ने संवेदना जताते हुए हरसंभव मदद की पेशकश की है. निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान के शासन और लोगों के साथ खड़े होने की जरूरत है, क्योंकि उनके विरुद्ध खड़े दहशतगर्द न सिर्फ पाकिस्तान के लिए, बल्कि पूरी मानवता के दुश्मन हैं. लेकिन, मूल रूप से इस संघर्ष की जिम्मेवारी पाकिस्तानी सरकार और समाज की ही है तथा उन्हें अपनी नीतियों और सामाजिक चेतना में ठोस बदलाव करने की जरूरत है.
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