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वैश्विक तापमान का खतरा

अंतरिक्ष विज्ञान की प्रसिद्ध अमेरिकी संस्था नासा के नये आंकड़ों की मानें, तो बीती फरवरी वैश्विक तापमान के लिहाज से बीते सौ सालों में सबसे गर्म महीना साबित हुआ है और नासा के इन प्रारंभिक आंकड़ों की पुष्टि करते अन्य शोध संस्थानों के समधर्मी सर्वेक्षणों के मुताबिक, साल 2016 सदी का सबसे गर्म साल साबित […]

अंतरिक्ष विज्ञान की प्रसिद्ध अमेरिकी संस्था नासा के नये आंकड़ों की मानें, तो बीती फरवरी वैश्विक तापमान के लिहाज से बीते सौ सालों में सबसे गर्म महीना साबित हुआ है और नासा के इन प्रारंभिक आंकड़ों की पुष्टि करते अन्य शोध संस्थानों के समधर्मी सर्वेक्षणों के मुताबिक, साल 2016 सदी का सबसे गर्म साल साबित होने जा रहा है.
साल 2015 ने भी भूतल के तापमान की बढ़त के मामले में एक रिकार्ड बनाया था. ब्रिटेन के मौसम विज्ञान विभाग से संबंधित आंकड़ों में बताया गया था कि 2015 में औसत तापमान 1961 से लेकर 1990 के बीच मौजूद वैश्विक तापमान के औसत से 0.75 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा था.
साल 2016 से संबंधित नासा के नये आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी में औसत वैश्विक तापमान 1951-1980 के बीच कायम रहे इस महीने के औसत तापमान से 1.35 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा था और मात्र एक महीने यानी जनवरी से फरवरी के बीच तापमान में 0.20 सेंटीग्रेड की बढ़ोत्तरी हो गयी. वैश्विक तापमान की बढ़ती का यह रुझान सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं, बल्कि नीति-निर्माताओं के लिए भी अत्यंत चुनौतीपूर्ण है.
पिछले साल दिसंबर में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आयोजित पेरिस सम्मेलन में राय बनी थी कि वैश्विक तापमान को किसी भी सूरत में आगे 2 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जा सकता और बेहतर यही होगा कि ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में दुनिया के सारे देश इस सीमा तक कटौती करें. नासा के नये आंकड़े पेरिस सम्मेलन के इस आशावाद को तकरीबन झुठला रहे हैं.
ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में कटौती को आर्थिक वृद्धि की रफ्तार में कमी लाने की एक युक्ति के रूप में देखा जाता है. विकासशील देशों का तर्क होता है कि बीती दो सदी में वैश्विक जलवायु-परिवर्तन के कारक ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सा चंद विकसित देशों का रहा है. आबादी के हिसाब से आज भी प्रतिव्यक्ति ग्रीन-हाऊस गैसों के उत्सर्जन के मामले में विकसित देश आगे हैं. अगर मानवता का भविष्य साझा है, तो फिर मानवता को बचाने की जिम्मेवारी को यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि यह जिम्मा तुम्हें ज्यादा निभाना है और मुझे कम.

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