।। बृजेंद्र दुबे।।
(प्रभात खबर, रांची)
पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आ चुके हैं. कहीं खुशी, तो कहीं गम है. जनता ने जहां राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश को भाजपा को स्पष्ट बहुमत देकर कांग्रेस को बहुत पीछे धकेल दिया, वहीं दिल्ली के सबसे समझदार लोगों ने बहुत चालाकी में सारा गुड़ गोबर कर दिया है. पूरे देश की नजरें दिल्ली पर लगी हैं. कोई मिलता है, तो सबसे पहले पूछता है कि दिल्ली में क्या हुआ.. किसकी सरकार बनेगी. केजरीवाल माने या नहीं? भाजपा सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ में जुटी है या नहीं?
उधर, इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी भाजपा के हर्षवर्धन कहते हैं कि हमारे पास संख्या बल नहीं है और हम जोड़-तोड़ नहीं करेंगे.. न ही सरकार बनाने का दावा करेंगे. आम आदमी पार्टी के नेता तो और भी कमाल हैं. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया कहते हैं कि हमने तो पहले ही कह दिया था कि न किसी का समर्थन लेंगे न देंगे..हम तो विपक्ष में बैठेंगे. किरण बेदी और प्रशांत भूषण के फामरूले को भी केजरीवाल एंड कंपनी रद्दी की टोकरी में डाल दिया है. इससे हमारे गजोधर भइया बहुत नाराज हैं. मिलते ही बोले, आप वाले पगला गये हैं क्या? इनको तो कहना चाहिए कि हां, हम दिल्ली की जनता के लिए अल्पमत सरकार बनायेंगे और चलायेंगे भी. हमें अपनी तिजोरी थोड़ी भरनी है..
हमें तो आम लोगों का काम करना है, हमारे काम करने में जो अड़ंगा डालेगा या विरोध करेगा.. जनता उसका बेड़ा गर्क करेगी. मैंने कहा, गजोधर भाई.. सरकार बनाने के लिए संख्या बल की जरूरत होती है. बहुमत के लिए 36 विधायक चाहिए और केजरीवाल के पास सिर्फ 28 हैं. इसपर गजोधर भड़क गये.. बोले-आप तो कुछ समझते ही नहीं. राजनीति का मूल सिद्धांत है कि जो भी मौका मिले उसको हथिया लो.. फिर आगे की सोचो. अरे आपको याद नहीं है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने यह जानते हुए कि उनके पास संख्या बल नहीं है, लेकिन उन्होंने केंद्र में 13 दिन की सरकार बनायी. फिर छह महीने के लिए प्रधानमंत्री बने.. इसका फायदा उन्हें मिला और वह फुल टाइम के लिए प्रधान मंत्री बने.
गजोधर आगे बोले.. आपको लगता नहीं कि केजरीवाल एंड कंपनी के बोल-चाल से अहंकार की बू आने लगी है. अब इनमें लालच आ गया है.. इनको अब विधानसभा नहीं संसद दिखने लगी है. अरे पहले शुरुआत तो करो. फिर मोदी-सोनिया का विकेट गिराने की सोचो. वरना.. आधी छोड़ पूरी को धावे आधी मिले न पूरी पावे.. वाला मामला हो जायेगा. गजोधर बोले. मुङो दो लाइनें और याद आ रही हैं. सुन लीजिए. बड़े कमजर्फ होते हैं ये गुब्बारे.. दो फूंक मारो फूल जाते हैं. मैंने गजोधर की हां में हां मिलाते हुए कहा, हां भाई ..दिल्ली (सत्ता) किसी की नहीं है.. इसने बहुतों को पहले सिर-आंखों पर बिठाया, फिर बे-आबरू कर दिया.. इस लिए केजरीवाल सर जी जनता की भावनाओं को समझो!