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रूस दौरे से उम्मीदें

यदि कुछ शुभ होने को होता है, तो उसके संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा से तुरंत पहले कुछ ऐसे ही संकेत मिले. पिछले हफ्ते खबर आयी कि रक्षा मंत्रालय ने 40 हजार करोड़ की एक रूसी एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली एस-400 की खरीद को मंजूरी दी है. इससे […]

यदि कुछ शुभ होने को होता है, तो उसके संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा से तुरंत पहले कुछ ऐसे ही संकेत मिले. पिछले हफ्ते खबर आयी कि रक्षा मंत्रालय ने 40 हजार करोड़ की एक रूसी एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली एस-400 की खरीद को मंजूरी दी है. इससे पहले खबर आयी थी कि भारत और रूस साथ मिल कर 200 कामोव-226टी हेलीकॉप्टर का निर्माण करेंगे.
यह निर्माण जहां मेक इन इंडिया मिशन के लिहाज से महत्वपूर्ण है, वहीं एस-400 की खरीद रक्षा मामलों में रूस पर भारत के परंपरागत भरोसे के निरंतर बढ़ते रहने का सूचक है. इन दोनों बातों की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार हो रही थी. मास्को और नयी दिल्ली के बीच द्विपक्षीय संबंधों को विस्तार देने के लिए शीर्षस्तर की बातचीत साल 2000 से लगातार चलती आयी है. बातचीत की इस निरंतरता ने ही दोनों देशों को बदली हुई अंतरराष्ट्रीय स्थिति में एक-दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाया है.
प्रधानमंत्री की यात्रा दोनों राष्ट्रों के बीच शीर्ष स्तर की 16वें दौर की बातचीत के बाद हो रही है. ठीक इसी कारण ऐतिहासिक मैत्री की निरंतरता के भीतर सोचते हुए प्रधानमंत्री का यह भरोसा सच लगता है कि मानवीय गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में दोनों देश आपसी सहयोग के नये रास्तों पर साथ चलेंगे. भारत के लिहाज से रूस की निकटता दो मामलों में महत्वपूर्ण है. उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत में ऊर्जा की जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं. खनिज तेल के सर्वाधिक आयात के मामले में भारत अमेरिका और चीन के तुरंत बाद तीसरे नंबर पर है. रूस में प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है और वह खनिज तेल के उत्पादक अग्रणी राष्ट्रों में एक है.
रूस की इस स्थिति का उपयोग भारत तेल व गैस के उत्खनन से जुड़ी परियोजनाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाने और उर्जा जरूरतों को पूरा करने में कर सकता है. तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान व पाकिस्तान होते हुए भारत आनेवाली गैस पाइप लाइन के लिए भी रूस का सहयोग महत्वपूर्ण है. नाभिकीय ऊर्जा के मामले में भारत-रूस परंपरागत सहयोग को भी इस यात्रा से नयी दिशा मिल सकती है.
दूसरा मामला निवेश का है. भारत फ्रेंड्स ऑफ इंडिया कार्यक्रम से भी उम्मीद बांध सकता है. रूसी व्यावसायियों को भारत में निवेश के लिए उत्साहित करने और भारत-रूस आर्थिक सहयोग को मौजूदा 10 अरब डॉलर से 30 अरब डॉलर तक ले जाने में यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण है. यूरेशिएन जोन में मुक्त व्यापार संधि की योजना और आतंकवाद पर रणनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाने में भी इस यात्रा से बहुत उम्मीदें हैं.

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