।। कमलेश सिंह।।
(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)
तुम पप्पू हो, तुम फेंकू हो. तुम इटली से आयी हो, तुम गुजरात के कसाई हो. तुम फासीवादी, तुम विलासीवादी. तेरे सारे स्कैम उजागर, तुम मौत के सौदागर. तुम लूटने को आतुर. तुम रावण; तुम भस्मासुर. तुम कोयले के अंदर, तुम झाड़ पर चढ़े बंदर. तुम हिटलर हो, तुम नटवर हो. प्रधानमंत्री चोर है, तेरा इतिहास-भूगोल कमजोर है.
ये भाषणों के कुछ अंश हैं, मर्म हैं, क्योंकि आपके मसले ठंडे पड़ गये, सियासत के मसले गर्म हैं. कीचड़ में कुश्ती है, धींगा-मुश्ती है. अभी जुबान से अदब तक नाता टूटा है, हमाम तक आते आते सब नाते तमाम होंगे. समाज की सांस्कृतिक समृद्धि भाषा में झलकती है और जहां अधोगति का अंश होता है, वहां शब्द छोटे होते जाते हैं, बड़ा अपभ्रंश होता है. हर तू-तू का एक मैं-मैं. हर डाल-डाल का पात-पात. तर्क का कुतर्क, स्वर्ग का नर्क, फर्क का बेड़ा गर्क. तुमने सिखों को मारा. तुमने मुसलमानों को मारा. 2002 बनाम 1984. तुम सांप्रदायिक हो का जवाब तुम तुष्टिकरण करते हो. हमने इतनी सड़कें बनायी, स्वर्णिम चतुभरुज कौन लाया भाई! इधर से 2जी, कोयला, घोटाला ही घोटाला. उधर से तहलका, ताबूतवाले तेरा मुंह काला. नानी याद दिला देंगे पर छठी का दूध. दूध में धुला तो कोई नहीं. छह महीने हैं अभी, जब हम दो बुराइयों में से कम बुरे को चुनेंगे, पर तब तक ये तार-तार पैरहन किसके तन बचेगा? जैसी मार-धाड़, चीर-फाड़ जारी है, कुछ भी नहीं है जिसकी पर्दादारी है. हमारे लिए अच्छा है कि मुखौटे उतरें, पर यूं सरेआम बेपैरहन हो जायेंगे, तो प्रधान बनकर भी वह दुनिया को क्या मुंह दिखायेंगे!
मियां मिट्ठू का मुंह हमारी बला से, पर मुसीबत यह है कि इस गर्द में देश का दर्द गुम हो गया है. गरीबी, भुखमरी, मंहगाई, रोजगार, आंतरिक सुरक्षा, बाहरी दैत्य; सब अरसे से सुरसे सा मुंह बाये खड़े हैं. पांच-पांच साल मीठी आंच पर पकाते हैं, पर जब हमारी बारी आती है, तो बहस का मुंह मोड़ जाते हैं. हम माथा पकड़ते हैं, वो दिल पे चोट करते हैं. मेरे पिताजी को मारा, मेरी दादी को मारा, मुङो भी मार डालेंगे. अरे भइया! कौन मार डालेगा? मच्छर! मुङो मच्छर ने काटा मध्य प्रदेश में. सरदार पटेल तक को मुद्दा बना दिया. जो लोग 14 साल साथ रहे, वे अब एक दूसरे को छू लें, तो अशुद्ध हो जायें. और इस पर शुद्ध बहस भी होती है.
गांधी मैदान में आतंकी आये, बम रख गये. जानें गयीं, पर इनकी भाषण का विषय उनका भाषण रहा. वक्त बचा तो राशन भी आयेगा भाषण में, जैसे ईमान आ जाये प्रशासन में और पूरा ना आये. सब तरक्की करें, इसका इंतजाम क्यों करें? हम दो रुपये किलो चावल देंगे. हम पांच रुपये में पेट भर देंगे. अंत्योदय योजना का आटा खाइए. जिंदगी जिस हाल में है वैसे ही बिताइए. नेताजी के बच्चे विदेश में पढ़ेंगे, आपके बच्चे मिड-डे मील खाकर जिंदा हैं, शुक्र मनाइए. शिक्षा के स्तर पर मत जाइए. जो पारा शिक्षक हैं, पूरे शिक्षक होंगे. जो आधे शिक्षक हैं, अधूरे शिक्षक होंगे. खाली है तो भरती करेंगे और जो उपलब्ध हैं, उसी से तो भरेंगे.
गरीबी हटायेंगे, भ्रष्टाचार मिटायेंगे, बेरोजगारी घटायेंगे, आपके दादाजी को सुनाये थे, आपको भी सुनायेंगे. क्योंकि मसले वही हैं, वहीं हैं. हल नहीं थे, नहीं हैं. अगर हल हो गये, तो कल नये नारे कहां से लायेंगे! चलो, युवाओं को रिझायेंगे. इतने युवा दुनिया के किसी देश में नहीं. डेमोग्राफिक डिविडेंड नाम दिया इस संपत्ति को. स्किल, ट्रेनिंग, शिक्षा, सहायता जब देना था, तब भूल गये. अब जो एसेट था, लाइबिलिटी होने लगा है. हल ही नहीं, तो बैल किस काम को. बिना हल के बैल खेत खा जाते हैं. जिसे इंजीनियर होना था, वह क्रिमिनल हो रहा है. वकील हो सकता था, वह नक्सल हो रहा है. कुछ यूं बेरोजगारी का हल हो रहा है. बिजली कौन लाया, फोन कौन लाया, ये सुनाते हैं! साठ साल में आप सड़क गांव तक लाये तो. देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो. हमको हमारा ही हक दे कर हम पर ही हक जताते हैं. हम ऐसे निरा सीधे कि एहसान तले आड़े हो जाते हैं.
अगर संतोष सबसे बड़ा धन है, तो हम दुनिया के कुबेर हैं. कछुए और खरगोश की दौड़ में कछुआ इसलिए जीता, क्योंकि कहानी कछुए ने लिखी थी. हम कहानियां लिख कर अपने गौरवशाली इतिहास को और गौरवशाली बताते हैं. चीन, अमेरिका, जापान, जर्मनी, ताइवान, थाईलैंड, श्रीलंका, सबका अपना गौरवशाली इतिहास है फिर भी सब भविष्य को वर्तमान बना रहे हैं. हम भूत से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं. दो भूतों की लड़ाई में, झाड़-पात का निनान. गुरु गोविंद में काके लागूं पांय का हल तो बलिहारी गुरु आपने दियो बताय. पर पहले मैं-पहले मैं वाले पप्पू और फेंकू में से पांच साल के लिए किसे सर कर लें ये गुरु तो छोड़िए, गोविंद भी ना बता पायें.