मनुष्य के जीवन में महिलाएं सर्वव्यापी हैं. भारतभूमि हमारी माता है जिसकी गोद में हमने जन्म लिया है. हमारी धरती, खुली वादियां, हमारी सांसें हमारी भाषा, बोली, शिक्षा, जिज्ञासा, संस्कृति, परंपराएं स्त्रीजन्य हैं. हमारी आंखें, जीभ, देह, काया नारी रूप में ही वर्णित है. हमारी सोच, भावनाएं, आत्मा, इच्छा, आशा, भूख, प्यास सब स्त्रीबोधक ही हैं. ये सब मिलकर हमारी आकृति को पुरुष रूप देते हैं.
पैदाइश के लिए मां, परवरिश के लिए ममता भरी गोद, साधना के लिए देवी और शांति के लिए मौत चाहिए ही. दुनिया में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची है और हम स्त्रियों पर पाबंदियां लगाने में व्यस्त हैं. लड़कियों को राखी बांधने की नसीहतें दे रहे हैं. क्या पुरुष आदर्श मानकों पर खरे हैं? नसीहतें सिर्फ औरतों के लिए हीं हैं? अपने अस्तित्व के लिए नसीहतें नहीं! नारी को सम्मान दें.
एमके मिश्र, रांची