।। श्याम कुमार।।
(राजनीतिक विश्लेषक)
रविवार को पटना के गांधी मैदान में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैली में लाखों लोगों की भीड़ जमा थी. इस रैली के शुरू होने से पहले व रैली के दौरान जिस तरह से मैदान में और मैदान के चारों ओर ताबड़तोड धमाके किये गये, उससे सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा होता है. इस घटना में 7 लोग मारे गये और लगभग 100 लोग घायल हुए. यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर काफी चिंताजनक स्थिति का संकेत देती है. घटना क्यों हुई, इस घटना में किसका हाथ था, पुलिस-प्रशासन भारी भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के इंतजाम करने में क्यों विफल रहा, ये सारी बातें विस्तृत जांच के बाद ही सामने आयेंगी. इन बम धमाकों की जांच के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के लोग पहुंच गये हैं और जांच शुरू हो चुकी है. कहा जा रहा है कि इस घटना को अंजाम देने या साजिश रचनेवाले आरोपियों की धरपकड़ जारी है. उम्मीद है जांच एजेंसियां शीघ्र ही किसी नतीजे पर पहुंचेंगी और घटना के कारणों का पता लग सकेगा.
लेकिन, इस सब के बीच देखने में आ रहा है कि घटना के बाद बिहार और देश की जनता को आश्वस्त करने के बजाय हमारे राजनीतिक दल और इन दलों से जुड़े नेता बयानबाजी में लग गये हैं. एक दूसरे को घटना का जिम्मेवार ठहराया जा रहा है. आरोप-प्रत्यारोप मढ़े जा रहे हंै और घटना से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की जा रही है. यह स्थिति ठीक नहीं है. जो काम जांच एजेंसियों को करना चाहिए था, उसे हमारे राजनेता करने में लगे हुए हैं. अपने-अपने तरीके से तर्क गढ़े जा रहे हैं. कोई कह रहा है कि यह घटना राज्य सरकार की नाकामी है, तो राज्य सरकार का कहना है कि सुरक्षा व्यवस्था में कोई कोताही नहीं बरती गयी. इंटेलीजेंस की तरफ से कोई इनपुट नहीं दिया गया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से खबर आ रही है कि पहले ही राज्य सरकार को एलर्ट दिया गया था. सवाल सिर्फ इतना नहीं है. सवाल बिहार की व्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने का है. गांधी मैदान में पहले भी रैलियां होती रही हैं. जेपी ने भी वहां बड़ी रैली की थी. लालू प्रसाद ने इसी गांधी मैदान में कई रैलियां की हैं. अन्य दलों द्वारा भी यहां रैलियां की जाती रहीं हैं, आगे भी होंगी. लेकिन इस तरह की घटना बिहार में पहले नहीं घटी है. उन दिनों में भी नहीं, जब बिहार जातीय संघर्ष के दौर से गुजर रहा था, जहां-तहां से नरसंहार की खबरें आ रही थीं. बिहार के लोग हर कीमत पर आपसी सौहार्द बना कर रखने में विश्वास करते हैं. लेकिन विगत महीनों में जिस तरह बोधगया में आंतकी हमले हुए और अब गांधी मैदान की घटना में आतंकी संगठनों के शामिल होने के संकेत मिल रहे हैं, उसमें साफ नजर आ रहा है कि जनता के बीच कायम सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है. यह उन लोगों की साजिश लग रही है, जो बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
बिहार आज नये मुहाने पर खड़ा है. लोग अतीत को पीछे छोड़ते हुए बिहार को भविष्योन्मुखी बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं. बिहार तेजी से प्रगति कर रहा है. जिस तरह से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्ली में नीतीश कुमार द्वारा रैली की गयी, उस रैली के दबाव में केंद्र सरकार ने राज्यों के पिछड़ेपन का मानक तय करने के लिए रघुराम राजन के नेतृत्व में समिति बनायी. उस समिति ने बिहार के पिछड़ेपन को स्वीकार करते हुए विशेष उसे सुविधा देने की वकालत की है, उससे बिहार की जनता में नयी उम्मीद बंधी है. लेकिन पटना में यह घटना कैसे हुई, यह वक्त इसकी राजनीतिक पड़ताल का नहीं है. इस बात से किसी को इनकार नहीं होगा कि बिहार में कानून- व्यवस्था की स्थिति सुधरी है और इसी की बदौलत हम विकास की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं.
जांच कार्य आगे बढ़ने के बाद जो तथ्य सामने आते हैं, उससे सबक लेते हुए आगे आयोजित होनेवाली राजनैतिक रैलियों में पुख्ता इंतजाम हो, इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए. इससे आतंकियों या समाज विरोधी तत्वों पर अंकुश लगेगा. हमारे राजनीतिक नेतृत्व को गंभीरता का परिचय देते हुए मौके की नजाकत को समझ कर व्यर्थ की बयानबाजी से बचना होगा. उन्हें मूल मुद्दे से न भटकते हुए, बिहार के विकास के मद्देनजर हर हाल में जनता के बीच सद्भाव का माहौल बना कर रखना होगा, ताकि बिहार को आगे ले जाया जा सके. राजनेता अगर इस तरह की घटनाओं के बाद आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलङो-रहेंगे, तो सही मायने में समाज विरोधी तत्वों की ही मदद होगी, जो वे चाहते हैं.