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मच्छर के आगे सिट्टी-पिट्टी गुम

अंशुमाली रस्तोगी व्यंग्यकार इंसान का इंसान के प्रति डर खत्म हुए बरसों हुए. अब इंसान को भगवान का भी डर न रहा. जिन्हें भगवान का थोड़ा-बहुत डर सताता भी है, तो वे उसे जप-तप के बहाने बहला लेते हैं. और, भगवान मान भी जाता है. समय और बदलते परिवेश के साथ भगवान ने खुद को […]

अंशुमाली रस्तोगी

व्यंग्यकार

इंसान का इंसान के प्रति डर खत्म हुए बरसों हुए. अब इंसान को भगवान का भी डर न रहा. जिन्हें भगवान का थोड़ा-बहुत डर सताता भी है, तो वे उसे जप-तप के बहाने बहला लेते हैं. और, भगवान मान भी जाता है. समय और बदलते परिवेश के साथ भगवान ने खुद को भी बदल डाला है.

मगर, एक प्राणी से इंसान इन दिनों बहुत डरा-सहमा हुआ है. उस प्राणी ने इंसान की नाक में दम कर रखा है. न जागते चैन लेने दे रहा है, न सोते. वह खरचा तो करवा ही रहा है, साथ-साथ ऊपर का टिकट भी कटवा दे रहा है.

दरअसल, यह प्राणी कोई और नहीं एक साधारण-सा मच्छर है, डेंगू का मच्छर. डेंगू के डर के मारे क्या इंसान, क्या शैतान, क्या अमीर, क्या गरीब, क्या भक्त, क्या संत, सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम है. डेंगू के मच्छर के डंक ने ऐसा कहर बरपाया है कि हर रोज दो-चार के निपटने की खबरें आ ही जाती हैं.

हालांकि, डॉक्टर लोग डेंगू से बचने के उपाय निरंतर बतला रहे हैं, लेकिन बचाव फिर भी नहीं हो पा रहा है. गंदगी डेंगू के मच्छर को भी पसंद है और हमें भी. तो फिर बचाव हो तो कैसे? अब तो भीड़ में जाते, लोगों से मेल-मुलाकात करते हुए भी डर-सा लगता है. क्या पता वहीं पर डेंगू का डंक कहीं हमला न बोल दे!

डेंगू के मच्छर का लार्वा इंसान से भी कहीं ज्यादा ‘ढीठ’ है. तगड़े से तगड़े कीटनाशक का उस पर कोई असर नहीं होता. चाहे क्वॉइल जला लो या हिट छिड़क लो, मगर डेंगू का मच्छर न मरता है न ही दूर भागता है. और, कब हमें आकर डंक मार कर भाग लेता है, यह भी पता नहीं चल पाता. ससुरा डंक भी ऐसा मारता है िक अगर समय पर डाइग्नोस न हो, तो अगला खर्च ही हो ले.

कहिए कुछ भी मगर डेंगू के मच्छर ने इंसान की सारी की सारी ‘हेकड़ी’ निकाल कर उसके हाथ में रख दी है. अपने ही घर में डेंगू के मच्छर से ऐसा डरा-डरा घूमता है, मानो कोई भूत-प्रेत हो.

मजबूरी है, डेंगू के मच्छर को डांट-फटकार भी तो नहीं सकता. मच्छर का क्या भरोसा, कब बुरा मान पीछे से डंक भोंक दे. और, काम तमाम कर जाये.

कोशिशें तो खूब की जा रही हैं, डेंगू के डंक से निपटने की, पर मुझे नहीं लगता डेंगू से निपटता इत्ता आसान होगा. आखिर पी तो वो इंसान का खून ही रहा है न. अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि इंसान के खून में कित्ता जहर घुला हुआ है. एक साधारण से मच्छर ने इंसान को चारों खाने चित्त कर दिया है. बताइए, इत्ता बड़ा इंसान पिद्दी भर के मच्छर से पनाह मांग रहा है.

मैं तो चाहता हूं, इंसान को डेंगू का डर हमेशा बना रहे. किसी से नहीं डरता, इस बहाने, मच्छर से तो डरेगा ही. डर बहुत जरूरी है, चाहे मच्छर का हो या बिच्छू का. डंक लगने के बाद तो डर और भी मारक हो जाता है. फिर बंदा न घर का रह पाता है न घाट का.

डेंगू के मच्छर का कहर बरपाना इसे ही तो कहते हैं…

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