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गरीबों का प्याज गरीबों का ना रहा
धमेंद्रपाल सिंह वरिष्ठ पत्रकार एक समय था, प्याज गरीबों के भोजन का अनिवार्य हिस्सा थी. जब कंगाल आदमी को दाल-सब्जी नसीब नहीं होती थी, वह प्याज के साथ रोटी खाकर गुजारा करता था.लेकिन आज इसकी कीमतें बढ़ने के कारण प्याज गरीबों की थाली से गायब हो चुकी है. महज दो हफ्तों में इसका थोक मूल्य […]
धमेंद्रपाल सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
एक समय था, प्याज गरीबों के भोजन का अनिवार्य हिस्सा थी. जब कंगाल आदमी को दाल-सब्जी नसीब नहीं होती थी, वह प्याज के साथ रोटी खाकर गुजारा करता था.लेकिन आज इसकी कीमतें बढ़ने के कारण प्याज गरीबों की थाली से गायब हो चुकी है.
महज दो हफ्तों में इसका थोक मूल्य 25 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ चुका है. अक्तूबर में नयी फसल आने तक उछाल का सिलसिला जारी रहने की संभावना है. इसी कारण केंद्र सरकार के हाथ-पैर फूले हुए हैं.इस संदर्भ में 7 जनवरी, 2011 की एक घटना का जिक्र जरूरी है. तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे.
उन्होंने बेकाबू मूल्यों पर नियंत्रण की नीयत से आयकर विभाग को महाराष्ट्र में प्याज के कुछ बड़े थोक व्यापारियों के ठिकानों पर छापे मारने का आदेश दिया. छापे पड़े और रातों-रात प्याज की कीमत 60 प्रतिशत गिर गयी. लेकिन पिछले एक माह में प्याज का भाव रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है, फिर भी केंद्र सरकार खामोश है.
बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक्स चेंज फॉर दि कम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया की साल 2012 में आयी रिपोर्ट के मुताबिक, थोक व्यापारियों का एक शातिर गंठबंधन है, जो अपनी मर्जी से प्याज का मूल्य तय करता है.रिपोर्ट में महाराष्ट्र और कर्नाटक की मंडियों का सर्वे कर बताया गया है कि वहां किसी नये व्यापारी के प्रवेश की अनुमति नहीं है. अकेले एक व्यापारी की मुट्ठी में देश का 20 प्रतिशत बाजार है.
जिसका मंडियों पर कब्जा है, वह जिस मूल्य पर प्याज खरीदता है, उससे 150 फीसदी अधिक पर बेचता है. कीमत बढ़ने का लाभ किसानों को नहीं, व्यापारियों को होता है.
चीन के बाद भारत ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है. यहां प्याज की खेती करनेवाले अधिकांश किसान बहुत छोटे हैं, जिनकी हैसियत जमाखोरी करने की कतई नहीं है.
प्याज की पैदावार सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में होती है, जहां भाजपा की सरकारें हैं.एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी महाराष्ट्र के लासलगांव (नासिक) में है, जहां के मुट्ठीभर थोक व्यापारी ही इसका देशव्यापी मूल्य तय करते हैं. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पिछले आठ साल में प्याज की पैदावार दोगुना हो चुकी है, फिर भी इसका मूल्य आसमान छू रहा है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2013-2014 के दौरान 1.94 करोड़ टन तथा 2014-2015 में 1.93 करोड़ टन प्याज बाजार में आयी. प्याज का उत्पादन इतना है कि घरेलू मांग पूरी करने के बाद मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, दुबई और खाड़ी के कुछ और देशों को हम हर साल 10 से 20 लाख टन प्याज निर्यात करते हैं.
प्याज का जन्म एशिया में हुआ था और पिछले पांच हजार साल से निरंतर इसका उपयोग हो रहा है. चरक संहिता में प्याज के गुणों का विस्तार से बखान किया गया है. मिस्र के प्राचीन समाज में इसे एक पवित्र वस्तु माना जाता था.
यदि भारत में इसकी बढ़ी कीमतों पर काबू नहीं पाया जा सका, तब वह दिन दूर नहीं जब लोग मिठाई और मेवों के स्थान पर भेंट में प्याज देने लगेंगे.
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