आलोक पुराणिक
चर्चित व्यंग्यकार
एक मित्र परेशान रहते हैं कि हाय एकदम टाइम नहीं है, कुछ भी करने का टाइम नहीं है. यही मित्र रोज फेसबुक पर कम से कम 80 सेल्फी ठोंकते हैं. मतलब सेल्फी लगाने के टाइम को वह गिनते नहीं हैं, उसे सांस लेने जैसा कुछ काम समझते हैं. सेल्फी लेकर फेसबुक पर लगाना कुछ लोगों के लिए सांस लेने जैसा हो गया है.
चलो जी सेल्फी ले लो, फेसबुक पर लगा लो, पर फिर मित्रों से पूछना भी होता है कि कैसी लगी वो वाली सेल्फी. इस सवाल का कोई जवाब दे दे-अच्छी.
तो कई मामलों में पलट-सवाल आ जाता है-सिर्फ अच्छी? बहुत अच्छी या बेस्टम-बेस्ट जैसा कुछ नहीं? अब इसके आगे कोई क्या कह सकता है. सेल्फी लगाना हरेक का अपना अधिकार है, पर हर सेल्फी पर लाइक मांगना दूसरे के मानवाधिकार का हनन है. फेसबुक के मानवाधिकारों पर अभी चर्चा होनी बाकी है.
कई स्मार्ट-फोन ऐसे आ गये हैं, जिनके इश्तिहार में बताया जाता है कि इनसे सेल्फी बेहतरीन ली जा सकती है. भई फोन ले रहे हैं, बातचीत-मैसेज के लिए या इस फोटूबाजी के लिए! फोन सेल्फी के लिए भी होता है, बल्कि कई मामलों में तो फोन सेल्फी के लिए ही होता है. बंदा या बंदी अस्सी सेल्फी पोस्ट करके सौ लोगों को कॉल करता या करती है-देखो फेसबुक पर, अभी नयी पोस्ट की है. देखो, देखो, अभी ही देखो. जिंदगी सेल्फ से निकलकर सेल्फी पर आ जाती है.
सेल्फीमय इस दौर में मुङो लगता है कि हर बड़ी घटना या दुर्घटना के पीछे सेल्फी ही रही होगी. महाभारत क्यों हुआ होगा-दुर्योधन द्रौपदी से जिद कर रहा होगा कि तुम्हारे साथ सेल्फी खिंचानी है. द्रौपदी ने डपट दिया होगा. मारधाड़ हो गयी होगी और महाभारत मच गया होगा. हर बड़ी घटना या दुर्घटना के पीछे सेल्फी ही होनी चाहिए.
रावण ने सीता से पंचवटी में छल किया होगा कि आपकी कुटिया के साथ मुङो अपनी सेल्फी लेनी है, आप कुटिया के सामने से हट जायें. हटते-हटते वह लक्ष्मण-रेखा से बाहर हो गयी होंगी और रावण ने फिर उनका अपहरण कर लिया होगा.
कर्ण महाभारत में कैसे मरा होगा-उसके रथ का पहिया धंस गया होगा, वह पहिया ठीक करने उतरा होगा. उतरने के बाद उसे पता लगा होगा कि रथ के पहिये के साथ ली गयी सेल्फी तो यूनिक सेल्फी होगी. चलो एक सेल्फी लेते हैं. सेल्फीबाजी में फंसे रहने के चक्कर में ही उसका काम तमाम हो गया होगा.
खैर सोचिये, पाकिस्तान बतौर मुल्क अपनी सेल्फी ले, तो कुछ यूं होगी- सिर आतंकवादी का होगा, शरीर पर सेना के तमाम मैडल टंगे होंगे. पूरे बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ और सिर्फ निहायत फटी-लुटी चड्ढी होगी, जिस पर लिखा होगा-लोकतंत्र.
पुनश्च- डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरने पर आम आदमी बेवकूफ ना बने कि रुपया गिरा तो कभी गिर कर उसके यहां भी पहुंचेगा. सच बात यही है कि रुपया चाहे जितना गिरे, जितना भी गिरे, वह गिर कर पहुंचेगा वहीं, जहां बहुत सारा रुपया पहले से ही जमा है.