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‘प्राइवेसी’ पॉलिसी कहीं धोखा तो नहीं?

आपाधापी के जीवन में हम रोजमर्रा की वस्तुओं के चयन में अक्सर ठगे जाते हैं. इस बात का एहसास तब होता है, जब हम गहराई से सोचते हैं. बीमा पॉलिसी को ही ले लें. बड़े अक्षरों में लिखी बातों को पढ़ कर हम सीधे उस पॉलिसी को चुन लेते हैं, लेकिन छोटे अक्षरों में लिखे […]

आपाधापी के जीवन में हम रोजमर्रा की वस्तुओं के चयन में अक्सर ठगे जाते हैं. इस बात का एहसास तब होता है, जब हम गहराई से सोचते हैं. बीमा पॉलिसी को ही ले लें. बड़े अक्षरों में लिखी बातों को पढ़ कर हम सीधे उस पॉलिसी को चुन लेते हैं, लेकिन छोटे अक्षरों में लिखे नियम व शर्तो को नहीं पढ़ते हैं.
कहीं हमारे साथ यहीं पर धोखा तो नहीं हो रहा. संभव हो, यह कंपनियों की ओर से दिया जानेवाला धोखा ही हो, जिसे बाद में पूरा करने में हम पूरी तरह असमर्थ हों. आजकल सोशल साइटों और इंटरनेट पर प्राइवेसी पॉलिसी जैसी चीजों से भी रू-ब-रू होना पड़ता है, जिसे हम बिना पड़े ही स्वीकार कर लेते हैं.
यहां तक कि हम निजी सूचनाएं भी चंद लमहों में ही उपलब्ध करा देते हैं, लेकिन हम यह कभी नहीं सोचते कि कहीं यह हमारे निजी जीवन में झांकने का तरीका तो नहीं है.
शेखर चंद, करमा, चतरा

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