झारखंड को विशेष राज्य का दरजा देने की मांग को लेकर बरही से बहरागोड़ा तक एनएच-33 पर आजसू कार्यकर्ताओं का हुजूम उतरा. मानव श्रृंखला बनायी. झमाझम बारिश के बावजूद कार्यकर्ता डटे रहे. बरही, हजारीबाग, रामगढ़, तमाड़, चांडिल सहित कई जगहों पर महिलाओं की भी अच्छी भागीदारी रही. दरअसल, ऐसे आयोजनों में जन-भागीदारी होना स्वाभाविक होता है.
लोग अपने राज्य के हक-हुकूक के लिए सड़कों पर उतर कर अपनी बात कहने में गर्व महसूस करते हैं. वैसे भी झारखंड आंदोलन की धरती रही है. यहां स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अलग राज्य की मांग तक कई बड़े आंदोलन हुए हैं. बहरहाल, विशेष राज्य का दरजा ऐसी मांग है जिस पर काफी हलचल शुरू हो चुकी है. केंद्र अपनी तरफ से पहल करते हुए झारखंड को अति पिछड़े राज्यों की श्रेणी में शामिल कर चुका है. जानकारों का मानना है कि देर-सबेर ही सही झारखंड को बिहार की तरह विशेष राज्य का दरजा मिल ही जायेगा.
लेकिन इस मामले में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि झारखंड केंद्र से विशेष आर्थिक सहायता चाहता है, पर जो मदद उसे पहले से मिल रही है, उसका भरपूर लाभ नहीं उठा पाता. कई केंद्रीय योजना का लाभ राज्य इसलिए नहीं ले पाता कि जो हिस्सा उसे देना है, वह नहीं जुटा पाता. केंद्र की कई योजनाओं का आवंटन पूरी तरह से खर्च भी नहीं हो पाता है. केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश समेत संबंधित सचिव भी इस मामले में कई बार राज्य सरकार से आपत्ति जता चुके हैं. हाल ही में मनरेगा को लेकर भी इसी तरह की बात कही गयी.
कहा गया कि इस योजना का पूरा पैसा राज्य सरकार खर्च ही नहीं कर पायी. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि सरकारी मशीनरी की कार्यशैली किस तरह की है कि यहां खर्च करने के लिए मिला पैसा वापस हो जाता है और हम गरीबी और अभाव का रोना रोते रहते हैं. विशेष राज्य का दरजा अगर हमें मिलता है, तो क्या हम विशेष सुविधाओं और योजनाओं के तहत मिली राशि को खर्च कर पायेंगे? क्या राज्य सरकार ऐसी कार्य संस्कृति बना पायेगी जिससे कल्याणकारी योजनाओं का पूरी तरह से क्रियान्वयन हो सके? अगर ऐसा हुआ, तभी विशेष राज्य के दरजे की सार्थकता हो पायेगी.