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इस विरोध के लिए सरकार भी दोषी है

आकार पटेल वरिष्ठ पत्रकार यह हमें स्वीकार करना होगा कि अनेक समूह अपने को घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं तथा भाजपा की हरकतों और बयानों से उन्हें खतरे का अहसास है. अगर योग के मसले पर उनमें उत्तेजना है, तो हमें इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. मेरे विचार से भारतीय विद्यालयों में शारीरिक […]

आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
यह हमें स्वीकार करना होगा कि अनेक समूह अपने को घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं तथा भाजपा की हरकतों और बयानों से उन्हें खतरे का अहसास है. अगर योग के मसले पर उनमें उत्तेजना है, तो हमें इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
मेरे विचार से भारतीय विद्यालयों में शारीरिक व्यायाम, विशेष रूप से योग, को अनिवार्य करना अच्छी बात है. विद्वान वेंडी डॉनिगर ने लिखा है कि योग का आधुनिक स्वरूप प्राचीन नहीं, बल्कि बहुत बाद की चीज है.
पतंजलि के योग-सूत्र में किसी आसन का कोई उल्लेख नहीं है, और आधुनिक योग भारत में 18वीं और 19वीं शताब्दी में यूरोपीय लोगों के साथ आया था. वे रूसो की किताब ‘एमिले’ से प्रोत्साहित होकर व्यायाम के लाभों का पता कर रहे थे. बहुत-से लोग इस तथ्य को खारिज करते हैं और उनका मानना है कि योग प्राचीन है.
सच्चाई चाहे जो हो, तथ्य यह है कि योग एक ऐसा व्यवहार है, जिससे करोड़ों भारतीय परिचित हैं. हममें से बहुत लोगों ने कभी-न-कभी इसे करने का प्रयास जरूर किया है. विद्यालयों में छात्रों को एथलेटिक्स और जिमनास्टिक के प्रशिक्षकों की तुलना में योग सिखानेवाले लोगों की उपलब्धता अधिक आसान होगी. उच्च स्तरीय सक्रियता के संदर्भ में यह विशेष रूप से सच है.
बहुत साल पहले आर्ट ऑफ लिविंग के एक कार्यक्रम में मुङो योग के कुछ लाभों का पता चला था. एक बात, जिसका मुङो अहसास हुआ, यह थी कि योग के द्वारा शरीर का उपयोग मस्तिष्क को शांति देने के लिए किया जा सकता है. यह अनुभव मुङो सुदर्शन क्रिया नामक सांस की एक विधि के दौरान हुआ. इस क्रिया में कई तरह से सांस ली जाती थी, जिनमें एक तेज-तेज सांस लेना होता था. मस्तिष्क में खूब ऑक्सीजन जाने से कुछ देर के लिए ही सही, पर आनंददायक अनुभूति होती थी.
उस सत्र में कक्षा के सामने आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर की तसवीर रखी गयी थी. लोग इच्छानुसार उसके आगे नतमस्तक हो सकते थे, किंतु इसकी कोई अनिवार्यता नहीं थी. मुङो ऐसा करने में कुछ परेशानी थी, इसलिए मैंने उस तसवीर के सामने सर नहीं झुकाया. उस कार्यक्रम के गुरु के उत्तर से संतुष्ट नहीं था, जो उसने किसी के इस प्रश्न पर दिया था कि रविशंकर ने अपने नाम के आगे दो श्री क्यों लगाया है. उस गुरु के अनुसार, ‘तीन श्री उनके लिए बहुत अधिक थे और एक श्री बहुत कम.’
बहरहाल, मैंने इस कहानी का उल्लेख इसलिए किया है कि किसी धार्मिक भावना के प्रति समर्पण के बिना भी योग के लाभ का आनंद उठाया जा सकता है और इसके सामूहिक सत्र में सम्मिलित हुआ जा सकता है.
इस सप्ताह सरकार को 21 जून को देशभर के विद्यालयों में ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के अवसर पर किये जानेवाले आसनों में से सूर्य नमस्कार को हटाने पर मजबूर होना पड़ा. यह निर्णय ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के बाद लिया गया. बोर्ड का आरोप था कि भारतीय जनता पार्टी मुसलिम छात्रों को हिंदू धर्म के आचरण को स्वीकार करने के लिए बाध्य कर रही है.
मेरी राय में यह दुर्भाग्यपूर्ण प्रकरण है, क्योंकि सूर्य नमस्कार एक संपूर्ण आसन है और संभवत: यह एक बेहतरीन व्यायाम है, जिसे कोई भी कर सकता है, भले ही वह किसी भी धर्म या नस्ल से संबंधित हो. इसमें खड़े होने, झुकने, लेटने, पैर चलानेवाली आदि क्रियाएं होती हैं. सूर्य नमस्कार में हल्के व्यायाम और कसरत होते हैं. इससे शरीर के विभिन्न अंग मजबूत होते हैं.
तो क्या यह धार्मिक है? नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता हूं. योग करनेवाले लोगों में, जिनमें लाखों अमेरिकी और यूरोपीय भी शामिल हैं, कुछ ही लोग मानते हैं कि सूर्य नमस्कार सूर्य की पूजा है. वे इसे इसलिए करते हैं, क्योंकि यह एक अच्छा व्यायाम है. मेरी राय में इन मामलों को लेकर मुसलिम समूहों को लचीला रुख अपनाना चाहिए और मुद्दे को किसी तरह के टकराव के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए.
फिर भी, क्या मुसलिम समूहों की प्रतिक्रिया जरूरत से अधिक है? सरकार और इसके मंत्रियों के इतिहास और पृष्ठभूमि के मद्देनजर, इस सवाल का जवाब कुछ और ही है.
जिम्मेवार पदों पर बैठे लोगों द्वारा अल्पसंख्यक समाज पर भद्दी टिप्पणियों से लगातार हमले किये जाते रहे हैं. यह हमें स्वीकार करना होगा कि अनेक समूह अपने को घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं तथा भारतीय जनता पार्टी की हरकतों और बयानों से उन्हें खतरे का अहसास होता है. अगर योग के मसले पर उनमें उत्तेजना है, तो हमें इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
मुङो नहीं लगता है कि योग को प्रोत्साहन देने के पीछे सरकार की कोई दुर्भावना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से योग के प्रति समर्पित हैं. बहुत पहले मेरे द्वारा संपादित होनेवाले एक गुजराती समाचार-पत्र ने उनके नियमित रूप से व्यायाम करने पर एक रिपोर्ट भी छापी थी, जिसके लिए उनके कार्यालय ने विभिन्न आसन करते हुए उनकी तसवीरें भी भेजी थीं.
उनके लिए यह व्यक्तिगत जीत का एक अवसर था, जब उनके अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निर्णय लिया और 175 से अधिक देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.
इससे उत्साहित होकर सरकार अपने सभी विभागों को, जिनमें सबसे बड़ा विभाग रेल भी शामिल है, उस दिन योग से संबंधित कार्यक्रम करने का निर्देश दे रही है. हालांकि, इसमें कुछ समस्या भी है, क्योंकि 21 जून को रविवार है.
खैर, यह बेहतर होता कि सरकार इस मामले से, संबंधित विवादों से स्वयं को अलग रखती. मैंने पहले ही कहा है कि यह एक अच्छी पहल है और सबके लिए, विशेष रूप से बच्चों के लिए, बहुत लाभदायक है.
इसमें विफलता के लिए सरकार खुद भी कुछ हद तक जिम्मेवार है और उसेहर समुदाय तक पहुंच कर उन्हें भरोसे में लेने की कोशिश करनी चाहिए थी. अपने रिकॉर्ड और छवि को देखते हुए उसे यह अनुमान कर लेना चाहिए था कि इस मामले को लेकर विवाद खड़े हो सकते हैं.

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