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शिक्षा को बनायें मौलिक अधिकार
वर्तमान युग शिक्षा प्रधान है. दुनिया में जितने भी देश विकसित हुए हैं, सभी में शिक्षा ही विकास का आधारस्तंभ रहा है. प्राचीनकाल में भी भावी शासक ज्ञानी व गुणी जनों द्वारा राजकाज के समुचित ज्ञान लाभ के पश्चात ही शासन की बागडोर संभालते थे. आधुनिक युग में वही राष्ट्र आगे है जिनके नागरिक सुशिक्षित […]
वर्तमान युग शिक्षा प्रधान है. दुनिया में जितने भी देश विकसित हुए हैं, सभी में शिक्षा ही विकास का आधारस्तंभ रहा है. प्राचीनकाल में भी भावी शासक ज्ञानी व गुणी जनों द्वारा राजकाज के समुचित ज्ञान लाभ के पश्चात ही शासन की बागडोर संभालते थे. आधुनिक युग में वही राष्ट्र आगे है जिनके नागरिक सुशिक्षित एवं कर्मठ हैं.
संसार के उन सभी देशों ने भौगोलिक व प्राकृतिक अक्षमता के बावजूद अपने पौरुष के बल पर सभी प्रकार की बाधाओं पर विजय पायी है तो उसके भी मूल में शिक्षा ही रही है. दूसरी ओर कई ऐसे भी देश हैं जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद पिछड़े हुए हैं जिसके मूल कारणों में एक वहां के नागरिकों में उचित शिक्षा का अभाव है.
भारत जैसे देश के संदर्भ में, जहां चीन के बाद विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या रहती है, शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है. परंतु देश मे व्याप्त तमाम विषमताओं के कारण आज भी देश के करोड़ों नौनिहालों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा भी नहीं मिल पाती है. उचित शिक्षा के अभाव में भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी मुख्यधारा से कोसों दूर है.
जो राष्ट्र के विकास का भागीदार बनते वही शिक्षा के अभाव में आज विकास में सबसे बड़ी बाधा व बोझ साबित हो रहे हैं. अत: शिक्षा को जीवन का प्राथमिक लक्ष्य मानते हुए देश के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय उन्नति व विकास में सहायक बनने की जरूरत है.
हमारे देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अपनी दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण इस महती कार्य को पूरा करने मे असफल साबित हो रही है अत: इसमें समुचित जनोपयोगी बदलाव लाने की आवश्यकता है. मानव का सर्वागीण विकास करना शिक्षा का मूल ध्येय होना चाहिए.
महादेव महतो, तालगड़िया
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