फौजिया रियाज
स्वतंत्र टिप्पणीकार
एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए लोगों को पीड़ित की कहानी में दिलचस्पी होना जरूरी है. अगर हम पीड़ित और उसके परिवार के साथ खड़े नहीं हो सकते, तो कम-से-कम इतना तो करें कि उन्हें उनकी लड़ाई पर शर्मिदगी महसूस न हो.
दुनिया में ‘अपनों’ का दायरा आमतौर पर धर्म, जाति, देश या सभ्यता से तय होता है. मानव अपनी मनोवृत्ति के चलते मुश्किल वक्त में ‘अपनों’ को ही बचाता है, बल्कि जरूरत पड़ने पर इन ‘अपनों’ से अलग किसी को इंसान मानने से भी इनकार करता है. सलमान खान के ‘हिट एंड रन’ केस में सेशन कोर्ट के फैसले ने भारत में मौजूद ‘अपनों’ के दो समूह उजागर किये हैं.
ये दोनों ही समूह दुनियाभर में पाये जाते हैं, लेकिन इस फैसले के बाद देश में इनकी सक्रियता अचानक बढ़ गयी है. यह बात सच है कि जब इंसान खुद को किसी समूह का हिस्सा मानता है, तो उसका पहला लक्ष्य अपने समूह के बीच सुरक्षाभाव स्थापित करना होता है. इसके अलावा समूह का वह सदस्य दूसरे समूहों को हीनभाव से देखना भी शुरू कर देता है.
सलमान खान मामले में हमने टीवी पर उनके फैंस के मेलोड्रामा को फूहड़पन में बदलते देखा. सलमान के प्रति फिल्म इंडस्ट्री की सहानूभूति भी दिखी. ये दोनों ही लोग सलमान से जुड़े दो अलग-अलग समूहों का हिस्सा हैं. पहला समूह भरे पेट, भरे बैंक-बैलेंस और नाम व शोहरत वालों का है.
हमने इनकी बेहूदगी के नजारे वैसे तो कई बार देखे हैं, हमने इन्हें क्लबों में लड़ते-झगड़ते देखा है, किसी खास जगह पर एंट्री ना मिलने के चलते सिक्योरिटी गार्ड से भिड़ते देखा है, शराब पीकर मीडिया से गाली-गलोज करते भी देखा है. सभी ने ये सब देखा, पर इस समूह की हर खता माफ है. दुनिया दो तरीकों से चलती है, पहला कानून और दूसरा नैतिक दायित्व.
इंसान कानून से छेड़छाड़ कर भी दे, तो उसके अंदर समाज के प्रति मौजूद नैतिक दायित्व संतुलन संभाल लेता है. शराब पीकर गाड़ी चलाना, लोगों को ‘हिट’ करना कानून का उल्लंघन है और जब सड़क पर आपकी गाड़ी के नीचे दब कर लोग कराह रहे हैं, उस वक्त वहां से ‘रन’ कानून और नैतिकता दोनों को ही मुंह चिढ़ाता है. पहला समूह कहता है कि सड़क सोने के लिए नहीं होती, सड़क पर कुत्ते सोते हैं, बड़ी सफाई से ये लोग इस बात को दरकिनार कर देते हैं कि सड़क शराब पीकर आधी रात को गाड़ी चलाने के लिए भी नहीं होती.
दूसरा समूह फैंस का है. ‘फैन’ शब्द अंगरेजी के ‘फैनेटिक’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘कट्टरपंथी’. जब बात फिल्म एक्टरों की आती है, तब ये शाब्दिक अर्थ बड़ी आसानी से व्यावहारिकता में बदल जाती है. फैंस के मनपसंद एक्टर ने किसी को पीट दिया, किसी को गाली दे दी, उसके घर से हथियार निकले हों या फिर चाहे उसकी लापरवाही से किसी की जान ही क्यों न चली गयी हो, फिर भी ये फैंस कट्टरपंथियों की तरह आंख बंद करके सिर्फ पूजा करते हैं.
दरअसल, सवाल यह है कि ये अंधभक्त बने कैसे? ग्लैमर, पैसा, स्टाइल, ओवर द टॉप जिंदगी की चमक इसका बड़ा कारण है. हम एक खास तरह का जीवन चाहते हैं, पर उसे पा नहीं सकते, ऐसे में हम खुद को इन सेलेब्रिटियों में तलाशना शुरू करते हैं. जॉन डी मोर (पीएचडी, कंफ्यूजिंग लव विद ऑब्सेशन के लेखक) ने इस एहसास को ‘सेलेब्रिटी वर्शिप सिंड्रोम’ माना है. इस सिंड्रोम में पड़े लोग किसी खास सेलेब्रिटी के लिए लड़-भिड़ सकते हैं.
सलमान हिट एंड रन मामले में इन दोनों ही समूहों का तर्क है, पिछले बारह साल में सलमान का चैरिटी के कामों से जुड़ा रहना. मुद्दा यह नहीं है कि सलमान कितना दान-पुण्य करते हैं और इस आधार पर उन्हें माफी नहीं मिल सकती. बेशक किसी का बदलना, समाज को बेहतर बनाने की कोशिश करना एक सराहनीय कदम है, इसकी प्रशंसा होनी चाहिए. मगर यहां हालात अलग हैं.
भारत में कानूनी प्रकरण थोड़ा लंबा चलता है. इस बीच गवाह, अभियुक्त और पीड़ित इंसाफ के लिए एक लंबा सफर तय करते हैं. अगर कानून व्यवस्था का इतना बुरा हाल न होता, तो सलमान को दस साल पहले ही सजा मिल चुकी होती. चूंकि देश में कानून प्रक्रिया धीमी है, इसलिए इसका फायदा सीधा अभियुक्त को मिलता है.
यकीनन, अपने हक और इंसाफ के लिए लड़ना कभी आसान नहीं होता. मजबूत से मजबूत लोग हिम्मत हार जाते हैं. ऐसे में जिनके पास रहने के लिए अपना घर तक न हो, वो कैसे खुद के लिए खड़े होंगे?
एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए लोगों को पीड़ित की कहानी में दिलचस्पी होना जरूरी है. अगर हम पीड़ित और उसके परिवार के साथ खड़े नहीं हो सकते, तो कम-से-कम इतना तो करें कि उन्हें उनकी लड़ाई पर शर्मिदगी महसूस न हो.
समझना होगा कि अगर ये लोग पलट कर आये और इन्होंने खुद को इंसान समझना छोड़ दिया, तो चहारदीवारी कितनी भी ऊंची हो, जब ये चढ़ाई करेंगे, तो आपको कोई कानून और नैतिकता नहीं बचायेगी, क्योंकि उन्हें तो आपने खुद ही एड़ी-चोटी का जोर लगा कर कत्ल किया है. आप उन्हें इंसाफ नहीं दे सकते, तो कम-से-कम इंसाफ का एहसास तो रहने ही दीजिए. याद रखिए, इतिहास इस बात का गवाह है कि इसमें नुकसान आपका ही होगा.