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नारी की सही स्थित का आकलन

कई शताब्दियों से महिलाओं की बदतर स्थिति में सुधार लाने की दिशा में काम किये जा रहे हैं. आजादी के बाद से देश में मानवीय परिस्थितियों के अनुसार उनकी स्थिति में सुधार के लिए सरकार और देश के राजनीतिक दलों द्वारा लगातार कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. देश के ग्रामीण इलाकों से लड़कियों को शिक्षा […]

कई शताब्दियों से महिलाओं की बदतर स्थिति में सुधार लाने की दिशा में काम किये जा रहे हैं. आजादी के बाद से देश में मानवीय परिस्थितियों के अनुसार उनकी स्थिति में सुधार के लिए सरकार और देश के राजनीतिक दलों द्वारा लगातार कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं.
देश के ग्रामीण इलाकों से लड़कियों को शिक्षा पाने के लिए स्कूल-कॉलेजों की ओर जाते देख कर नारी मुक्ति कार्यक्रम से हुए बदलाव का आकलन करना गलत है. इस बात की कलई तब खुलती है, जब हम ईंट भट्ठों, मंझोले उद्योगों और अन्य निजी संस्थानों में कार्यरत महिलाओं को बदहाली में देखते हैं. ग्रामीण दुराग्रह और पिछड़ेपन के आधार जातीय मानसिकता वाले स्कूल संचालकों द्वारा गठित माता समितियों की स्थिति देख महिलाओं की सही वस्तुस्थिति का पता चलता है, जो एक द्वंद्व पैदा करता है.
कुसुम दास/वीरेंद्र वर्मा, धनबाद

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