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धर्म निजी पसंद का मामला है
आज देश के कोने-कोने से धर्मातरण और घरवापसी की आवाज गूंज रही है. इस तरह की आवाज उठानेवालों को शायद धर्म का अर्थ समझ में ही नहीं आ रहा है. जिस प्रकार तपती धूप में शीतल जल और छाया पा जाने के बाद जीव-जंतु को सुकून मिलता है, वैसे ही धर्म का आश्रय लोगों को […]
आज देश के कोने-कोने से धर्मातरण और घरवापसी की आवाज गूंज रही है. इस तरह की आवाज उठानेवालों को शायद धर्म का अर्थ समझ में ही नहीं आ रहा है. जिस प्रकार तपती धूप में शीतल जल और छाया पा जाने के बाद जीव-जंतु को सुकून मिलता है, वैसे ही धर्म का आश्रय लोगों को सुकून देता है. यह हमारी निजी और आंतरिक भावना है कि हम किस पेड़ की छाया में विश्रम करना ज्यादा उचित समझते हैं.
अक्सर आदमी उस धर्म की तलाश करता है, जहां उसे शांति, सद्भाव, समभाव, सम्मान, सहयोग और मानवता का परिचय मिलता है. यह हमारा व्यक्तिगत मामला है कि हम किस धर्म का अनुपालन करते हैं. इसमें दूसरे लोगों के हस्तक्षेप की क्या आवश्यकता है? कोई पानी पीये या फिर दूध, इससे किसी को क्यों तकलीफ होगी? देश में कुछ खास लोगों द्वारा चलायी जा रही मुहिम को देख कर लगता है कि हमें ऐसे लोगों से परहेज ही करना चाहिए.
हमारे देश में विविधता में एकता बसती है. यहां सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों को जीवन जीने का बराबर का हक है. जो जहां खुश नजर आता है, उसे वहीं रहने दिया जाना चाहिए. यदि कोई उसकी राह में रोड़ा अटकाने का प्रयास करता है, तो यह उसकी दखलंदाजी कही जायेगी. वहीं, यदि आप भारत के सच्चे नागरिक हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सच्चे दिल से प्यार करते हैं, उनके बयानों का सम्मान करना चाहिए.
अत: देशवासियों से निवेदन है कि वे ऐसे संकीर्ण विचारों, नारों तथा भाषणों से दूर रहें. पहले धर्म के मर्म को समङों, बूङों और फिर कदम उठायें. इसी में हम सबकी भलाई है और यह देशहित में भी बेहतर होगा. लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए आपसी सौहार्द बनाये रखना जरूरी है.
अणिमा प्रसाद, चक्रधरपुर
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