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ऐसे लोकतंत्र का क्या मतलब?
लोकतंत्र कैसे चल रहा है, राजनीतिक दल कैसे चलते हैं, इन्हें चलाने के लिए पैसे कहां से आते हैं? क्या लोकसभा के आगे ग्रामसभा का कोई मोल नहीं? और, क्या जनता को पांच सालों में सिर्फ एक वोट डालने के अलावा कोई अधिकार नहीं है? जनता की राय का आखिर महत्व क्या है, जब बंद […]
लोकतंत्र कैसे चल रहा है, राजनीतिक दल कैसे चलते हैं, इन्हें चलाने के लिए पैसे कहां से आते हैं? क्या लोकसभा के आगे ग्रामसभा का कोई मोल नहीं? और, क्या जनता को पांच सालों में सिर्फ एक वोट डालने के अलावा कोई अधिकार नहीं है?
जनता की राय का आखिर महत्व क्या है, जब बंद कोठरी में ही कानून बनाना हो? प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून का संबंध इन्हीं प्रश्नों से है. विकेंद्रीकरण तो लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन आजाद भारत में भी केंद्रीकृत नीतियों को बढ़ावा मिले और किसानों की भारी उपेक्षा हो, तो फिर ग्रामसभा बनाने का क्या मतलब? विशाल परियोजनाओं और शक्तिशाली शासन की जुगलबंदी उस लोकतंत्र के नाम पर चल रही है, जिसे लाने के लिए हमारे पुरखों ने सब कुछ त्याग दिया था. क्या हम इतने कृतघ्न हैं?
विनय भट्ट, हजारीबाग
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