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बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं. छात्र बड़े तनाव में हैं. तनाव है कि परीक्षा कैसी जायेगी? अच्छे नंबर आयेंगे या नहीं? फेल हो गये तो क्या होगा? ढेरों नकारात्मक विचार मन में आ रहे हैं. इसकी वजह से जो आता है वह भी भूल जा रहे हैं. हिम्मत टूट रही है. ऐसे में छात्र उन […]

बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं. छात्र बड़े तनाव में हैं. तनाव है कि परीक्षा कैसी जायेगी? अच्छे नंबर आयेंगे या नहीं? फेल हो गये तो क्या होगा? ढेरों नकारात्मक विचार मन में आ रहे हैं. इसकी वजह से जो आता है वह भी भूल जा रहे हैं. हिम्मत टूट रही है. ऐसे में छात्र उन लोगों से प्रेरणा पा सकते हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी मुकाम हासिल किया है.

कौन कहता है कि केवल औपचारिक शिक्षा लेने से ही कोई सब कुछ हासिल कर सकता है. फोर्ड मोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी ठीक से शिक्षा नहीं मिल पायी थी. आखिर हार क्यों मानें हम? अब्राहम लिंकन भी तो 15 बार चुनाव हारने के बाद ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. जज्बा था, तभी तो गरीबी में पले-बढ़े अब्दुल कलाम इतने बड़े वैज्ञानिक और फिर देश के राष्ट्रपति भी बन गये.

स्वास्थ्य कभी अच्छा, तो कभी खराब रहता ही है, लेकिन खराब स्वास्थ्य का बहाना बना कर हम क्यों सफलता पाने से पीछे रह जायें? ऑस्कर विजेता अभिनेत्री मरली मेटलिन भी तो बचपन से ही बहरी और अस्वस्थ थीं. कामयाब बनने का इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि आप पैदल चल रहे हैं या फिर साइकिल या मोटर बाइक पर. निरमा के करसनभाई पटेल ने भी साइकिल पर निरमा बेच कर ही आधी जिंदगी गुजारी. अगर आप किसी दुर्घटना के शिकार हो गये. अपाहिज हो गये. फिर भी आप में हिम्मत है, तो आपकी सफलता का कारवां रुकेगा नहीं. प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चंद्रन के पैर नकली हैं, फिर भी वे पूरे जोश-खरोश के साथ प्रस्तुति देती हैं.

क्या हो गया लोग यदि आपको मंदबुद्धि बुलाते हैं? थॉमस अल्वा एडिसन को भी बचपन में मंदबुद्धि कहा जाता था, पर आखिर उन्होंने दुनिया को कई नये आविष्कार दिये. पिता यदि बचपन में ही गुजर गये तो क्या, प्रख्यात संगीतकार एआर रहमान के भी पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था. कई लोगों को बचपन से ही परिवार की जिम्मेवारियां अपने कंधों पर उठानी पड़ती हैं. उनसे घबराना कैसा? लता मंगेशकर को भी बचपन से ही परिवार की जिम्मेवारी उठानी पड़ी थी. लंबाई कम होने से भी कुछ नहीं होता. सचिन तेंडुलकर भला कौन से लंबे हैं? नौकरी छोटी है, तो क्या? धीरूभाई अंबानी ने भी तो शुरुआत छोटी नौकरी से की थी.

कंपनी दिवालिया हो गयी तो क्या, फिर से खड़ा कर लेंगे. पेप्सी कोला भी दो बार दिवालिया हो चुकी है. नर्वस ब्रेकडाउन से क्या फर्क पड़ता है? खुद पे भरोसा होना चाहिए. डिज्नीलैंड बनाने के पहले वाल्ट डिजनी का तीन बार नर्वस ब्रेकडाउन हुआ था. आइिडया है आपके पास, पर बार-बार अस्वीकृति से डरते हैं. जेरॉक्स फोटो मशीन के आइिडया को भी तो ढेरों कंपनियों ने नकार दिया था, पर परिणाम आज सबके सामने हैं. कमजोर पड़ने के बहाने हजार हैं, लेकिन जीतने का सूत्र केवल एक ही है. वह है खुद पर भरोसा. आइए, पदचिह्न् पर चलें और पदचिह्न् बनाते भी चलें.

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

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