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बदल रही दुनिया, नक्सली भी बदलें
नक्सल और नक्सली बीते कई महीनों से भारतीय राजनीति की सुर्खियों में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी तक अपने बयानों में नक्सलियों की चर्चा किये बगैर नहीं रह पाते. जीतन राम मांझी ने तो यहां तक कह दिया […]
नक्सल और नक्सली बीते कई महीनों से भारतीय राजनीति की सुर्खियों में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी तक अपने बयानों में नक्सलियों की चर्चा किये बगैर नहीं रह पाते. जीतन राम मांझी ने तो यहां तक कह दिया है कि नक्सली कोई गैर नहीं, बल्कि अपने ही लोग हैं.
शोषण, अत्याचार, भ्रष्टाचार, भेदभाव और सामंतवाद के खिलाफ उत्पन्न विचारधारा का नाम नक्सलवाद है. नक्सली कोई विदेशी षड्यंत्रकारी नहीं हैं, बल्कि देश के ही लोग हैं. बीते दिनों आधिकारिक तौर पर ऐसा बयान झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी दे चुके हैं. इसमें किंतु परंतु की कोई गुंजाइश नहीं है. चूंकि जो लोग ये बयान दे रहे हैं, उन्होंने भी गैर बराबरी का दंश ङोलते हुए राजनीति का शिखर छुआ है.
देश की कानून-व्यवस्था से खिन्न नक्सली अपनी तरह की व्यवस्था कायम करना चाहते हैं, जिससे गैर बराबरी का दंश ङोल रहे देश की अधिकांश आबादी को इंसाफ मिल सके. ये सदियों से उपेक्षित और औपनिवेशिक जिंदगी जी रहे हैं. इससे मुक्ति के विकल्प को लक्ष्य कर ये राजनीतिक दलों की भांति क्षेत्रीय स्तर पर संगठन को मजबूत कर सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं, परंतु भारत जैसे विशाल देश में ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता.
वहीं, नक्सली यथार्थ से दूर निकल कर इस पंक्ति का अनादर कर रहे हैं. कहना अनुचित नहीं होगा कि नाभि में कस्तूरी होने के बाद भी वे जंगलों की खाक छान रहे हैं. दुनिया बदल रही है, नक्सलियों को भी अपने अंदर बदलाव लाकर समाज की मुख्यधारा से जुड़ने का प्रयत्न करना चाहिए.
बैजनाथ महतो, बोकारो
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