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ये पूजा का चंदा है या फिर रंगदारी?

सरस्वती पूजा के नाम पर अब डर लगने लगा है. एक तो हमारा भारतीय समाज वैसे ही विभिन्न रोगों से ग्रस्त है, ऊपर से चंदा वसूली करने का एक नया रोग पैदा हो गया है. सालों भर कोई न कोई पूजा- पर्व, रैली, समारोह और सम्मेलनों का आयोजन होता रहता है. इन सभी आयोजनों में […]

सरस्वती पूजा के नाम पर अब डर लगने लगा है. एक तो हमारा भारतीय समाज वैसे ही विभिन्न रोगों से ग्रस्त है, ऊपर से चंदा वसूली करने का एक नया रोग पैदा हो गया है. सालों भर कोई न कोई पूजा- पर्व, रैली, समारोह और सम्मेलनों का आयोजन होता रहता है.
इन सभी आयोजनों में लोगों को चंदे की जरूरत होती है. चंदा न दिया जाये, तो जोर-जबरदस्ती करने से भी बाज नहीं आते. इन छद्म आयोजकों और चंदेबाजों की हरकतों से समाज का शांतिप्रिय, शिष्ट-शालीन वर्ग तबाह है. जब पूजा करने की सामथ्र्य नहीं है, तो फिर क्यों करते हो? परमुंडे फलाहार. आम समाज ने चंदा देने का ठेका तो नहीं ले रखा है? जहां देखो पूजा के नाम पर तनाव और तोड़-फोड़. ये चंदा है या फिर रंगदारी? ये कैसी संस्कृति हर? इसे रोकनेवाला भी कोई नजर नहीं आता. कोई तो उद्धारक बनो भाई.
प्रो लखन कुमार मिश्र, रांची

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