झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने कहा है कि तीन माह के अंदर राज्य से नक्सलियों का सफाया कर दिया जायेगा. उन्हें सरेंडर पॉलिसी में भरोसा नहीं है. यह कड़ा बयान है और इस बात का संकेत है कि सरकार अब हर हाल में राज्य से नक्सलवाद खत्म करना चाहती है. मुख्य सचिव ने यह बयान ऐसे ही नहीं दिया है. राज्य बनने के बाद से सरकार की नक्सलियों के प्रति नीति बदलती रही है. नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाने के बाद कई बार राजनीतिक दबाव में अभियान रोक दिया जाता था.
कई संगठनों को तो पुलिस ने ही खड़ा किया. लोहा से लोहा काटने की सरकार ने नीति बनायी. इसका कुछ जगहों पर असर भी पड़ा. कहीं माओवादी भारी पड़े, तो कहीं सरकार द्वारा पोषित संगठन. ये संगठन भी आतंक मचाने में पीछे नहीं रहे. अभी सिमडेगा, खूंटी, गुमला, लोहरदगा और पश्चिम सिंहभूम में पीएलएफआइ ने आतंक मचा रखा है. इन जिलों में विकास का काम बंद है.
शिक्षकों का अपहरण होता है, हत्या होती है. इसलिए सरकार ने लोभ दिया कि समर्पण करो और विकास की मुख्यधारा में शामिल हो. कुछ समर्पण होते हैं, लेकिन बहुत लाभ नहीं होता. केंद्र की नीति भी स्पष्ट है. वहां से भी हरी झंडी है. इसलिए अब झारखंड सरकार दबाव की नीति अपना रही है. झारखंड का इतिहास रहा है कि जब भी पुलिस सक्रिय होती है और राजनीतिक दबाव नहीं होता है, तो नक्सलवाद पर अंकुश लगता है. वर्तमान मुख्य सचिव और डीजीपी खुद जंगल-झाड़ में जाने में विश्वास रखते हैं. इससे पुलिस और अभियान में शामिल अफसरों का मनोबल बढ़ता है. मुख्य सचिव के बयान का अर्थ यह है कि अब यह अभियान रुकने वाला नहीं है, यानी सरकार अब पीछे हटने वाली नहीं है. सरकार अभी नयी-नयी बनी है.
राज्य के विकास के लिए यहां कानून-व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए. उद्योगों को भी देश-विदेश में संदेश जाना चाहिए कि झारखंड अब बदल चुका है. इसलिए झारखंड सरकार पूरी ताकत झोंक रही है. अगर पुलिस सक्रिय रहे, ईमानदारी से अभियान चलाये, दूरदराज के इलाकों में बंद काम फिर से शुरू करे, ग्रामीणों को विश्वास में ले, उसे प्रताड़ित नहीं करे और सरकार ग्रामीण युवाओं को रोजगार दे, तो नक्सलवाद का ऐसे ही खात्मा हो जायेगा.