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उम्मीद के भरोसे विश्व कप
अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर यह उम्मीद करें कि धौनी की अगुवाई में टीम इंडिया 2011 जैसा करतब फिर दिखलाये. धौनी में यह क्षमता है कि वह औसत खिलाड़ी से भी बड़ा से बड़ा काम करवा लेते हैं. इसलिए एक बार फिर धौनी की परीक्षा होगी. टीम इंडिया वर्ल्ड कप का खिताब बचाने […]
अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
यह उम्मीद करें कि धौनी की अगुवाई में टीम इंडिया 2011 जैसा करतब फिर दिखलाये. धौनी में यह क्षमता है कि वह औसत खिलाड़ी से भी बड़ा से बड़ा काम करवा लेते हैं. इसलिए एक बार फिर धौनी की परीक्षा होगी.
टीम इंडिया वर्ल्ड कप का खिताब बचाने के लिए मैदान में उतरेगी. 14 मार्च से दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट उत्सव यानी वर्ल्ड कप ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में शुरू होने जा रहा है. टीम इंडिया के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती खिताब बचाने की है. महेंद्र सिंह धौनी की अगुवाई में 2011 में टीम इंडिया वर्ल्ड चैंपियन बनी थी. इस बार भी धौनी ही कप्तान हैं, लेकिन विजेता टीम के अधिकतर चेहरे इस बार नहीं दिखेंगे.
वर्ल्ड कप के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब टीम इंडिया बगैर गावस्कर या सचिन के उतरेगी. 1975 से 1987 तक टीम में गावस्कर होते थे. 1992 से 2011 तक यह जिम्मा सचिन के कंधे पर था.
भारत का नाम भले ही वर्ल्ड कप के दावेदारों में हो, लेकिन काम इस बार इतना आसान नहीं है. उसी ऑस्ट्रेलिया (कुछ मैच न्यूजीलैंड में) में वर्ल्ड कप हो रहा है, जहां हाल में टीम इंडिया खेली है. बल्लेबाजों ने जहां कमाल दिखाया, वहीं गेंदबाजों ने निराश किया. टीम में कोई एक गेंदबाज नहीं दिखा, जिसने मैच जितानेवाली गेंदबाजी की हो. अगर ऐसी ही गेंदबाजी वर्ल्ड कप में की गयी, तो कैसे वर्ल्ड कप जीतेंगे? ठीक है टीम इंडिया में विराट कोहली जोरदार फॉर्म में हैं. कुछ अन्य बल्लेबाजों ने भी अच्छी पारियां खेली हैं. लेकिन दो-तीन खिलाड़ियों के बेहतरीन प्रदर्शन से वर्ल्ड कप नहीं जीता जा सकता. जिस तरीके से ऑस्ट्रेलिया में धौनी ने टेस्ट से संन्यास लेने की अचानक घोषणा की, उससे यही संदेश गया कि टीम के भीतर कुछ परेशानी है.
अगर इन कमियों को दूर नहीं किया गया, टीम एकजुट नहीं हुई, तो बेहतर परिणाम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. यह वर्ल्ड कप है, इसलिए एक संतुलित टीम चाहिए, जो सभी टीमों को हराते हुए आगे बढ़ने की क्षमता रखती हो.
1983 में हम वर्ल्ड कप इसलिए जीत पाये थे, क्योंकि उसमें ऑलराउंडर भरे पड़े थे. हर खिलाड़ी ने अपना योगदान दिया था. याद कीजिए गेंदबाजी की ताकत. बड़ा नाम नहीं होने के बावजूद दो बार की वर्ल्ड चैंपियन वेस्टइंडीज (जिसमें ग्रीनिज, हेंस, रिचर्डस, लॉयड, बैकस, गोम्स जैसे खिलाड़ी थे) को सिर्फ 140 रन पर औसत दज्रे के भारतीय गेंदबाजों ने समेट दिया था. यह संभव इसलिए हुआ था, क्योंकि मोहिंदर अमरनाथ, मदनलाल ने विकेट लिये थे. उस वर्ल्ड कप की भारतीय टीम में कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ, मदनलाल, रोजर बिन्नी, कीर्ति आजाद यानी पांच-पांच ऑलराउंडर थे. इस बार टीम ऐसी नहीं है. हां, बिन्नी के बेटे टीम में हैं, लेकिन उन्हें जो भी मौका मिला है, उसमें कोई चमत्कार नहीं दिखाया है. अश्विन बल्लबाजी भी कर लेते हैं. गेंदबाजी का कमजोर पक्ष भारत को परेशान कर सकता है.
2011 में भारतीय टीम जब गयी थी, तो उसमें धौनी के अलावा कई ऐसे दिग्गज थे, जिनके नाम पर विपक्षी टीम पर दबाव होता था. सेहवाग और गंभीर की ओपनिंग जोड़ी थी. सचिन थे, जिन्होंने वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा रन, सबसे ज्यादा शतक बनाये हैं. विराट-रैना-धौनी तब भी थे, इस बार भी होंगे. तब युवराज सिंह थे, जिन्होंने लगभग सभी मैचों में बेहतरीन खेल दिखाया था. बल्ले और गेंद दोनों से. इन खिलाड़ियों की जगह नये खिलाड़ियों को मौका मिला है. नयी और युवा टीम ने बल्लेबाजी में अच्छा प्रदर्शन किया है. कागज पर बल्लेबाजी में टीम इंडिया मजबूत है. रोहित शर्मा ने वनडे में 264 रन बनाये थे.
रैना वनडे के माहिर खिलाड़ी हैं. इस युवा टीम को अपनी ताकत दिखानी होगी.
हाल के दिनों में क्रिकेट के खेल में काफी तेजी आयी है. खास कर गेल जैसे कुछ ओपनिंग बल्लेबाजों ने खेल ही बदल दिया है. दुनिया के कई देशों ने वनडे के लिए टेस्ट से बिल्कुल अलग टीम बना ली है. इन खिलाड़ियों को अंकुश में रखना भारतीय गेंदबाजों के लिए चुनौती होगी. अगर चूक हुई, तो पहले 20 ओवर में ही मैच हाथ से निकल जायेगा. अब एक माह से कम समय बचा है.
खिलाड़ियों पर भी इसका दबाव होगा. उन्हें इन दबावों को ङोलना होगा. टीम इंडिया के खिलाड़ी युवा हैं. अधिकांश में अनुभव की कमी है. ऐसे में सीनियर खिलाड़ियों को आगे आना होगा. सचिन-सेहवाग जिंदगी भर नहीं खेल सकते. जो खिलाड़ी हैं, उन्हें ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा, तभी कुछ उम्मीद बनेगी. वर्ल्ड कप में एक भी गलती टीम को बाहर कर सकती है. बांग्लादेश के खिलाफ भी भारत की मजबूत टीम हार सकती है. यही क्रिकेट है.
किसी टीम को कमजोर मानना आत्मघाती होता है. हां, हाल में भारतीय टीम का जो ऑस्ट्रेलिया दौरा हुआ है, उसका लाभ टीम को मिल सकता है. लेकिन आरंभ के मैच भारत को न्यूजीलैंड में खेलना होगा, जहां का मौसम भारतीय बल्लेबाजों पर भारी पड़ता रहा है. यह उम्मीद करें कि धौनी की अगुवाई में टीम इंडिया 2011 जैसा करतब फिर दिखलाये. धौनी में यह क्षमता है कि वह औसत खिलाड़ी से भी बड़ा से बड़ा काम करवा लेते हैं. इसलिए एक बार फिर धौनी की परीक्षा होगी.
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