।। प्रो हरि देसाई ।।
(गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार)
– इशरत मामला कई राज खोल सकता है. सत्ता के मद में धृतराष्ट्र बने शासकों को इतिहास से बोधपाठ ग्रहण करने का वक्त शायद ही कभी मिलता है. काश, मोदी उनमें अपवाद बन पाते. –
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गुजरात में मुठभेड़ में हुई ज्यादातर मौतों को सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी घोषित करते हुए फैसले दिये हैं. इशरत जहां मुठभेड़ केस भी उनमें शामिल होने की राह पर है. इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ ने मोदी के कई आला पुलिस अधिकारियों के साथ आइबी अधिकारी के कारनामों को भी बेनकाब किया है, लेकिन भाजपा इसे दूसरा रूप देकर केंद्र सरकार को दोषी ठहराना चाहती है.
मोदी को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ और गुजरात की जनता में हीरो बनाने के लिए मुसलिमों के फर्जी एनकाउन्टर करा कर चुनाव जीते जाते रहे हैं. ज्यादातर एनकाउन्टर के वक्त मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के साथ-साथ गृहमंत्री भी थे. उनके गृह राज्यमंत्री अमित शाह ‘लोकप्रिय मुख्यमंत्री की हत्या के लिए गुजरात आ रहे आतंकियों का सफाया करने’ के लिए आला पुलिस अधिकारियों के कार्यकलापों की सराहना करते रहे.
मोदी ने अक्तूबर, 2001 में मुख्यमंत्री पद संभाला, तब तक गुजरात में आतंकी घटनाओं का इतिहास नहीं था. इस लेखक ने एक अंगरेजी टीवी चैनल के कार्यक्रम में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल एवं भाजपा नेता अरुण जेटली से जब इस संदर्भ में खुल कर सवाल किया, तो मोदी के राजनीतिक सलाहकार माने जानेवाले काकुभाई (परिन्दु) भगत ने रात में साढ़े ग्यारह बजे फोन कर इसे गुजरात विरोधी सवाल करार दिया था.
उस समय उन्हें सद्गत कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ का ‘इंदिरा इज इंडिया’ कथन स्मरण कराते हुए कहा गया था कि ‘मोदी इज नॉट गुजरात’. हालांकि बाद में मोदी की ‘मार्केटिंग गिमिक्स’ ने गुजरात और मोदी को एक-दूजे का पर्याय बनाने का माहौल रचा. अब मोदी प्रधानमंत्री पद के सपने देख रहे हैं. ऐसे में उपरोक्त फर्जी मुठभेड़ों से लाभान्वित होना उनके लिए नये संकट निर्माण करने जा रहा है. मुसलिमों के प्रति द्वेषपूर्ण रवैया मोदी और उनके शासन के लिए कोई नयी बात नहीं है. अब सांप्रदायिक सद्भाव का राग आलापने लगे मोदी का अतीत सदैव उनका पीछा करता रहेगा.
गुजरात भाजपा को ‘अपना तोता’ बनाने वाले मोदी ‘अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं’ को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय भाजपा को भी अपना तोता बनाने पर तुले हैं. लालकृष्ण आडवाणी एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर मोदी अपने निष्ठावानों की सेना के सहारे प्रधानमंत्री पद की रेस में जीतना चाहते हैं. हालांकि उनके लिए दिल्ली अभी दूर है.
कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे मोदी जैसा आक्रामकता एवं युवा पीढ़ी को जोड़नेवाला कोई अन्य चेहरा संघ को अभी नजर नहीं आ रहा. यही कारण है कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजपुरुष की जगह मोदी जैसा विदेशी मसलों पर भी राजनीति करनेवाला राजनेता अब संघ का ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बना हुआ है. संघ मोदी में हिंदूवादी छवि देखना चाहता है, पर मोदी मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए सद्भावना यात्राएं निकाल रहे हैं. इस कड़ी में ‘धूमिल छविवाले’ कुछ मुसलिम नेताओं और कांग्रेस से ‘आयातित’ चेहरों से भाजपा को मजबूत करने की मोदी की व्यूहरचना भाजपा और संघ को कितनी दूर तक रास आयेगी, यह कहना मुश्किल है.
गुजरात के बाहर मोदी के ‘गुजरात विकास मॉडल’ की जो मार्केटिंग हो रही है, वह भी बाहरी लोगों को भ्रमित करनेवाली है. सत्ता में कोई भी पार्टी या मुख्यमंत्री रहे हों, कुछ चीजों में गुजरात हमेशा नंबर वन रहा है. यानी गुजरात के विकास की नींव पहले से ही पक्की है.
मोदी ने अपनी मार्केटिंग में जिन उपलब्धियों को गिनाया है, उसकी तह में जाकर अध्ययन करनेवालों को पता चलेगा कि मोदी का हौवा कितना खोखला है. राज्य में कांग्रेस का संगठन कमजोर है. मोदी उसे और कमजोर करने के लिए कांग्रेसी नेताओं को सत्तासुख का प्रलोभन देकर भाजपा से जोड़ते रहे हैं. उनके लगातार राजनीतिक विजय का यही तो राज है.
गोधरा कांड से संबंधित कानूनी मामलों को ही नहीं, शोराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़, कौसर बी फर्जी मुठभेड़, तुलसी राम प्रजापति फर्जी मुठभेड़, सादिक फर्जी मुठभेड़ जैसे अन्य बहुचर्चित मामलों को भी कानूनी दावंपेच एवं अदालतों में कई साल तक अटकाये रखने में मोदी शासन सफल रहा है. किंतु अब उनकी पोल खुलने की घड़ी करीब आती लग रही है. इशरत जहां केस में गत तीन जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सीबीआइ की चार्जशीट को झुठलाना मुश्किल होगा. यह केस मोदी की ‘जादुई दुनिया’ को बेनकाब करने का एक अवसर बन सकता है और प्रधानमंत्री पद के उनके ख्वाब को चकनाचूर कर सकता है!
सीबीआइ को ‘कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन’ करार देना केंद्र में सत्ता से विमुख भाजपा एवं मोदी के लिए सुविधाजनक हो सकता है, लेकिन केंद्र में सत्ता प्राप्ति के लिए लालायित भाजपा के कार्यकलापों में जो अहंकार है, वह आनेवाले दिनों में भारी पड़ना स्वाभाविक है. केंद्र सरकार के खिलाफ आयी कैग की रिपोर्टो को बेनकाब करने में जैसा उत्साह भाजपा नेता दिखाते हैं, वह उत्साह मोदी शासन के कारनामों पर आयी कैग रिपर्टो के बारे में नहीं दिखता. मोदी शासन ने विकास का जो हौवा खड़ा किया है, उसे किस कीमत पर स्वीकारा जाये, यह सोचने का वक्त आ गया है.
पिछले 13 वर्षो की शासनावधि में मोदी ने गुजरात के अपने निष्ठावान प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के माध्यम से ‘हम कहें सो कायदा’ जैसा राज्य स्थापित किया है और ‘हमसे जो टकरायेगा मिट्टी में मिल जायेगा’ का संदेश न केवल विपक्ष, बल्कि अपनी पार्टी और संघ के नेताओं को भी दिया है. इसी व्यूह के अंतर्गत केशुभाई पटेल, प्रवीण मणियार, डॉ प्रवीण तोगड़िया सहित भाजपा, संघ और विहिप के कई कद्दावर माने जानेवाले नेताओं को मोदी सेना ने गुजरात में बेअसर कर दिया.
आज स्थिति यह है कि मोदी को जो अप्रिय लगे, ऐसी बात करने की हिम्मत कम से कम गुजरात में किसी नेता-कार्यकर्ता नहीं है. अभी गुजरात में ‘मोदी चालीसा’ चलता है, जैसे कभी बिहार में ‘लालू चालीसा’ या देश में ‘इंदिरा इज इंडिया’ का बोलबाला था. मोदी को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि उसके बाद इंदिरा गांधी और लालू प्रसाद का क्या हाल हुआ. लेकिन सत्ता के मद में धृतराष्ट्र बने शासकों को इतिहास से बोधपाठ ग्रहण करने का वक्त शायद ही कभी मिलता है. काश, मोदी उनमें अपवाद बन पाते.
ढाई हजार करोड़ रुपये की लागत से सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण कर उसे भुनाने की कोशिश कर रहे मोदी राष्ट्रनायक सरदार पटेल के आदर्शो को ताक पर रखते रहे हैं. सरदार पटेल ने कहा था, ‘भारत देश को हिंदू राष्ट्र कहना मूर्खो का ख्याल है, यह राष्ट्र न तो हिंदुओं का है, न मुसलमानों का, यह हिंदुस्तानियों का है.’
इससे पहले मोदी ने सरकारी खजाने को लुटाते हुए विवेकानंद के नाम पर यात्राएं निकालीं, पर उसका इस्तेमाल भी स्वामी विवेकानंद के आदर्शो को प्रचारित करने की बजाय केंद्र सरकार और कांग्रेस की आलोचना करने में किया. अब बारी सरदार पटेल की है. काश, देश की जनता को सरदार पटेल के आदर्शो का परिचय मिलता.