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जाति और आरक्षण पर हो पुनर्विचार

वास्तव में जाति का मूल जन्म नहीं, बल्कि पेशा है. बहुत संभव है कि भविष्य में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों और हवाई जहाज के पायलटों की जातियां सृजित हो जायें. दरअसल, गड़बड़ी जाति को जन्म से जोड़ने में हुई है. देश में जाति का कलंक जारी है. जाति के बाहर विवाह करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की […]

वास्तव में जाति का मूल जन्म नहीं, बल्कि पेशा है. बहुत संभव है कि भविष्य में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों और हवाई जहाज के पायलटों की जातियां सृजित हो जायें. दरअसल, गड़बड़ी जाति को जन्म से जोड़ने में हुई है.

देश में जाति का कलंक जारी है. जाति के बाहर विवाह करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्र का उसी के माता-पिता ने कत्ल कर दिया. बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि उच्च जातियों के लोग आर्यो का वंशज होने के कारण विदेशी हैं. जाट बाहुल्य हरियाणा में पंजाबी मनोहर लाल खट्टर और मराठा दबदबे वाले महाराष्ट्र में ब्राrाण देवेंद्र फड़नविस मुख्यमंत्री बने हैं. गत आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में आम जनता ने जाति के समीकरण को दरकिनार करते हुए भाजपा को वोट दिया था. यह उथल-पुथल हमें जाति तथा आरक्षण पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करती है.

जति जैसी समस्या अनेक देशों में है. मलेशिया में मलय भूमिपूत्रों तथा चीनियों के बीच खाई थी. व्यापार चीनियों के हाथ में था, जबकि बहुमत भूमिपुत्रों का. सत्तर के दशक में वहां यूनिवर्सिटी तथा सरकारी नौकरियों में भूमिपुत्रों के लिए आरक्षण लागू हुआ. हाल में मलेशियाई प्रधानमंत्री ने आरक्षण की मात्र में कटौती की है. दक्षिण अफ्रीका में नस्लवाद की समाप्ति के बाद काले लोगों के लिए आरक्षण लागू किये गये थे. सॉलिडेरिटी के अध्ययन में कहा गया है कि आरक्षण के प्रभाव से ब्लैक संभ्रांत मध्य वर्ग स्थापित हो गया है. बहुसंख्यक ब्लैक लोग घोर गरीबी में जी रहे हैं. इन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला है. संस्था ने कहा है कि आरक्षण की जगह स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना चाहिए.

1965 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉनसन ने शासनसदेश जारी किया था, जिसके अनुसार सरकारी एवं निजि क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के लिए सभी नागरिकों को बराबर मौके देना जरूरी बना दिया गया था. ब्लैक नेता मार्टिन लूथर किंग की यह प्रमुख मांग थी. इसमें आरक्षण को गैरकानूनी बताया गया था. आज अमेरिका में ब्लैक राष्ट्रपति ओबामा सत्तारूढ़ हैं. अमेरिका का अनुभव बताता है कि बिना आरक्षण के पिछड़े वर्गो का उत्थान संभव है. समाज का ध्यान ब्लैक लोगों की क्षमता में विकास करने पर केंद्रित रहा न कि आरक्षण की बैसाखी के सहारे बढ़ाने का. वैश्विक सोच आरक्षण से हट कर पिछड़ों की क्षमता में सुधार पर ध्यान देने की ओर मुड़ रही है. भारतीय उद्यमियों ने भी निजि क्षेत्रों में आरक्षण का विरोध किया है. कहा है कि पिछड़े वर्गो के लोगों के लिए शिक्षा के मौके बढ़ाये जायें, उन्हें रोजगार देने को टैक्स में छूट दी जाये. टैक्स के इन्सेंटिव से ज्यादा संख्या में पिछड़े वर्गो को रोजगार मिल सकेगा.

गांधीजी भी आरक्षण को पसंद नहीं करते थे. वे मानते थे कि आरक्षण के माध्यम से पिछड़े वर्गो के ऊपर पिछड़ी जाति का ठप्पा लग जायेगा. उन्होंने डॉ आंबेडकर के आग्रह पर अल्प समय के लिए आरक्षण को स्वीकार किया था. अब स्थितियां बदल गयी हैं. हमारे दलित भाई उच्च पदों पर आसीन हैं. अब जरूरत है कि हम आरक्षण से स्किल डेवलपमेंट की ओर मुड़ें. आसान ऋण जैसे कार्यक्रम स्थापित करें.

दरअसल, आरक्षण को जारी रखने में नेताओं और सरकारी कर्मियों का स्वार्थ निहित है. आम आदमी गरीब बना हुआ है. नेताओं के लिए चुनौती है कि गरीब का ध्यान गरीबी से भटका कर कहीं और केंद्रित किया जाये. यह आरक्षण के माध्यम से किया जा रहा है. आरक्षण दो तरह से काम करता है. पिछड़े वर्गो के श्रेष्ठ युवाओं को आरक्षण के माध्यम से शोषक वर्ग में जोड़ लिया जाता है. आज दलित आइएएस अधिकारी उच्च वर्गो से साझा कर दलितों का शोषण कर रहे हैं. दूसरे, आम दलित का ध्यान नेताओं के आर्थिक शोषण से हट कर ऊंची जातियों द्वारा किये जा रहे सामाजिक अत्याचार की ओर मुड़ जाता है. समाज को दलित और उच्च जातियों के बीच बांट दिया गया है. भ्रष्ट नेताओं-सरकारी कर्मियों का भ्रष्ट गंठबंधन समाज को बांट कर अपना हित साध रहा है.

वास्तव में जाति का मूल जन्म नहीं, बल्कि पेशा है. बहुत संभव है कि भविष्य में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों और हवाई जहाज के पायलटों की जातियां सृजित हो जायें. दरअसल, गड़बड़ी जाति को जन्म से जोड़ने में हुई है. हालांकि, बड़ी संख्या में लोगों के पारिवारिक पेशे को छोड़ कर नये पेशों से जुड़ने से उनका परंपरागत जाति से जुड़ाव कम हो रहा है. इसे और गति देने के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए. बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में उच्च स्तर के रोजगार बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनानी चाहिए. श्रम कानूनों के सरलीकरण के साथ-साथ कम संख्या में श्रमिकों को रोजगार देनेवाले उद्यमों पर ‘बेरोजगारी टैक्स’ लगाना चाहिए. पिछड़े वर्ग के लोगों को रोजगार देने पर टैक्स में छूट देनी चाहिए. इससे रोजगार के मौके बढ़ेंगे. सरकारी कर्मियों के वेतन में भारी कटौती करनी चाहिए. ऐसा करने पर दलित युवकों के लिए सरकारी नौकरी का मोह नहीं रहेगा; उन्हें शोषक वर्ग में सम्मिलित नहीं किया जा सकेगा और वे दलितों के सर्वागीण विकास की मांग करेंगे. सबसे अहम बात- भ्रष्ट नेताओं और सरकारी कर्मियों के अपवित्र गंठबंधन को तोड़ने की जरूरत है.

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

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Prabhat Khabar Digital Desk
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