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दल-बदलुओं से परहेज करें पार्टियां
भारत के इतिहास में चाणक्य से बड़ा कूटनीतिज्ञ आज तक कोई नहीं हुआ. आज भी नेता उनकी नीतियों का अनुसरण करते हैं, लेकिन दल-बदलू नेताओं की अपनी कोई नीति और सिद्धांत नहीं होता. ऐसे नेता निजी फायदे के हिसाब से विभिन्न पार्टियों में आते-जाते हैं. हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर […]
भारत के इतिहास में चाणक्य से बड़ा कूटनीतिज्ञ आज तक कोई नहीं हुआ. आज भी नेता उनकी नीतियों का अनुसरण करते हैं, लेकिन दल-बदलू नेताओं की अपनी कोई नीति और सिद्धांत नहीं होता. ऐसे नेता निजी फायदे के हिसाब से विभिन्न पार्टियों में आते-जाते हैं. हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर में दूसरे राजनीतिक दलों का सूपड़ा साफ हो गया.
दूसरी पार्टी के नेता अपनी सीट जीतने और खुद की अहमियत बरकरार रखने के लिए भाजपा की शरण में पहुंच गये. ऐसे नेता जो सिर्फ धन कमाना चाहते हैं, उन्हें शरण देना गलत है. यहां पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का कथन प्रासंगिक प्रतीत होता है. एक समय लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने बिहार में कमल को नहीं खिलने देने की बात कही थी. आज वही भाजपा के साथ मिल कर केंद्र में मंत्री बने हैं.
चंदा साहू, देवघर
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