हमारा देश विविधताओं और भौगोलिक रूप से परिपूर्ण है. देश के किसी न किसी हिस्से में हमेशा प्राकृतिक आपदा आने के साथ मानवीय उथल-पुथल होता ही रहता है. बीते साल उत्तराखंड में आयी केदारनाथ की प्राकृतिक त्रसदी हो या अभी हाल के महीनों में जम्मू-कश्मीर में आयी भयानक बाढ़. इन सबके आने-जाने से हमारे जनमानस पर भले ही कोई फर्क नहीं पड़ता हो, लेकिन दोनों ही राज्यों में आयी प्राकृतिक आपदा ने कई अहम बातों को उजागर किया है. वह यह कि इन आपदाओं के आने के लिए प्रकृति से अधिक देश के निवासी जिम्मेदार हैं. सुंदर और हरी-भरी धरती को हम रोजना बरबाद कर रहे हैं. विकास के नाम पर विनाश का व्यापार चला रहे हैं. जंगलों को काट कर रिहायशी और कारोबारी इमारतें बनायी जा रही हैं. कंक्रीट की इमारतों के निर्माण के समय हम प्रकृति को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं. सही मायने में देखा जाये, तो जम्मू-कश्मीर में वर्षाजल की निकासी के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाती, तो बाढ़ इतना भयानक रूप धारण नहीं कर पाती.
गौर करनेवाली बात यह भी है कि जो जनता तुच्छ और घटिया राजनीतिक बयानबाजी से उग्र हो जाती है और एक-दूसरे के खिलाफ जंग करने पर उतारू हो जाती है, वह अक्सर ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के समय खामोश ही रहती है. प्रकृति के साथ छेड़छाड़ तथा इससे पैदा होनेवाली आपदाओं की जिम्मेदारी सरकार और हम सबकी है. अगर प्रकृति से छेड़छाड़ का सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा यह अत्याधुनिक विकास विनाश का कारण बने. इससे पहले कि हमारा यह विकास हमें लील ले, हम सभी को हर साल आनेवाली भयानक प्राकृतिक आपदाओं से सबक लेना होगा.
असलम अशरफ , धनबाद